गुजरात में चुनावी सरगर्मी के बीच राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से सीधे सूरत और राजकोट पहुंचे और जनसभा की. इस दौरान आदिवासियों को ‘वनवासी’ कहे जाने पर पीएम मोदी पर निशाना भी साधा. ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि हिमाचल प्रदेश चुनाव में राहुल गांधी ने प्रचार नहीं किया, लेकिन गुजरात के मैदान में क्यों उतर गए? खासकर सूरत और राजकोट में लोगों को संबोधित करने के पीछे क्या वजह हो सकती है?
2017 में बीजेपी जहां कमजोर दिखी थी- राहुल का वहीं पर हमला
राहुल गांधी का सौराष्ट्र से चुनाव-प्रचार करने की एक बड़ी वजह पिछले चुनाव में कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन है. साल 2017 में पाटीदार आंदोलन के चलते पटेल बहुल सौराष्ट्र क्षेत्र में बीजेपी को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. सौराष्ट्र के इलाके की कुल 54 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 23 सीटें ही जीत सकी थी, जबकि कांग्रेस को 30 सीटें मिलीं. एक सीट अन्य के खाते में गई थी.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सौराष्ट्र से 35 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. हालांकि, राजकोट में कांग्रेस को फायदा नहीं मिला था. राजकोट की 8 सीटों में से कांग्रेस ने सिर्फ 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 6 सीटों पर बीजेपी काबिज रही.
सौराष्ट्र में आदिवासी निर्णायक भूमिका में-AAP लगा सकती है सेंध
सौराष्ट्र क्षेत्र में पाटीदार और आदिवासी वोटर अहम है. माना जाता है कि आदिवासी कांग्रेस का वोटबैंक है. कुछ अन्य सीटों पर कोली, क्षत्रिय, राजपूत और गरासिया भी जीत-हार तय करता है. हालांकि, इस बार बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की नजर सौराष्ट्र इलाके में पटेल और आदिवासी वोटों पर है. इसी के चलते सौराष्ट्र में मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना बन गई है. आम आदमी पार्टी का पूरा फोकस खासकर उन ग्रामीण और आदिवासी इलाकों पर है, जहां 2017 में कांग्रेस को अधिक समर्थन मिला था. यानी अबकी बार कांग्रेस को लिए चुनौती बड़ी है. उनके वोट बैंक में आम आदमी पार्टी सेंध लगा सकती है.
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शहरी सीटों को छोड़कर ग्रामीण इलाकों की सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था, जिसका नतीजा था की वो बीजेपी को 99 सीटों पर रोक पाई थी और 77 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इनमें कांग्रेस के लिए सौराष्ट्र का इलाका सबसे अहम रहा था. सौराष्ट्र के अमरेली, मोरबी और सोमनाथ जिलों में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी और हार का समाना करना पड़ा था. ऐसे में कांग्रेस को राहुल गांधी की इन रैलियों से काफी उम्मीदें हैं. हालांकि, चुनाव परिणाम ही बताएंगे की राहुल की इन रैलियों का वोटरों पर कितना असर पड़ा.
सूरत में बीजेपी ताकतवार, कांग्रेस को कहां दिख रही उम्मीद
साल 2017 के विधानभा चुनाव में सूरत की 16 सीटों में से बीजेपी ने 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी. कांग्रेस सिर्फ मांडवी सीट पर जीत हासिल कर पाई थी. मांडवी सीट अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित थी. इस सीट से कांग्रेस के चौधरी आनंद भाई मोहनभाई विधायक हैं. राहुल गांंधी की रैली भी इसी को ध्यान में रखते हुए हुई है. गुजरात का कार्यभार संभाल रहे गुजरात के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सूरत में बीजेपी की पैठ को तोड़ने के लिए ही राहुल की रैली कराई है, ताकी वोटरों में कांग्रेस के प्रति आकर्षित किया जा सके.
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राजकोट की कुल 8 विधानसभा सीटों में से 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2 सीट कांग्रेस के खाते में आई थी. सौराष्ट्र का राजकोट ही एक ऐसा जिला था, जहां बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था. राजकोट में राहुल गांधी की रैली एक संकेत है कि कांग्रेस राजकोट में पैठ बनाना चाहती है और पिछले चुनाव के नतीजों को बदलना चाहती है.
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