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चौतरफा घिरी गहलोत सरकार, राजभवन की ‘घेराबंदी’ के पीछे की वजह समझिए

गहलोत सरकार पर गहरे होते जा रहे हैं खतरे के बादल

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राजस्थान का सियासी नाटक अब कर्नाटक के नाटक से भी ज्यादा उलझता दिख रहा है. सचिन पायलट समेत 19 विधायकों की बगावत के बाद अब गहलोत सरकार में खलबली सी मची हुई है. मामला हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, विधानसभा, रिजॉर्ट, राजभवन के बीच उलझ गया है. गहलोत अब चाहते हैं कि राज्यपाल सत्र बुलाएं और उन्हें फ्लोर टेस्ट का मौका दें , लेकिन ये भी नहीं हो रहा है. नाराज गहलोत ने राजभवन की घेराबंदी शुरू कर दी है. इसे समझने के लिए मौजूदा संख्याबल का हिसाब किताब समझना होगा.

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दरअसल सीएम अशोक गहलोत खेमे को फिलहाल कहीं से भी राहत मिलती हुई नजर नहीं आ रही है. बागी विधायकों ने हाईकोर्ट में अयोग्यता से बचने के लिए अपील की, जिसके बाद स्पीकर ने ये सोचकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि उन्हें उनके अधिकार वापस मिल जाएंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कुछ नहीं कहा और फैसला हाईकोर्ट पर ही छोड़ दिया.

इसके बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने भी बागी विधायकों को फिलहाल बचा लिया. हाईकोर्ट ने कहा कि अभी यथास्थिति बनी रहेगी और स्पीकर कोई एक्शन नहीं लेंगे.

राज्यपाल को भी खुली चेतावनी

अब चारों तरफ से मिल रहे झटकों के बाद राजनीति के खेल के पुराने खिलाड़ी अशोक गहलोत प्लान बी की तरफ देख रहे हैं. इसीलिए अब उन्होंने राज्यपाल से विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की है. सरकार गिरने का खतरा झेल रहे गहलोत ने राज्यपाल को चेतावनी भी दे डाली. गहलोत ने राजभवन जाने से ठीक पहले मीडिया के सामने आकर राज्यपाल को कहा कि वो किसी भी दबाव में अपना फैसला न लें. गहलोत ने कहा,

“महामहिम राज्यपाल महोदय से मिलने जा रहे हैं. उनसे निवेदन है कि वो किसी के दबाव में न आएं, उनका संवैधानिक पद है, जिसकी उन्होंने शपथ ली हुई है. लोकतंत्र की भावना से वो फैसला लें. वरना ऐसा भी हो सकता है कि अगर पूरी प्रदेश की जनता राजभवन को घेरने के लिए आ गई तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी.”

इसके बाद गहलोत अपने सभी विधायकों को लेकर राजभवन पहुंच गए और वहां राज्यपाल से कहा कि वो विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी दें. वहीं बाहर बैठे विधायकों ने धरना शुरू कर दिया और वी वॉन्ट जस्टिस के नारे लगाए.

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वहीं अगर इस वक्त राज्यपाल के रुख की बात करें तो उन्होंने मन बना लिया है कि वो अभी कोई विधानसभा सत्र नहीं बुलाने वाले हैं. उन्होंने इसके लिए कोरोना का तर्क दिया है और कहा है कि बीजेपी और कांग्रेस के कुछ विधायक कोरोना पॉजिटिव हैं. हालांकि गहलोत खेमे ने इससे साफ इनकार किया है.

विधानसभा सत्र को लेकर इतनी हड़बड़ी क्यों?

अब सवाल ये है कि विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर गहलोत और कांग्रेस विधायक इतना जोर क्यों लगा रहे हैं? ऐसा इसलिए हो रहा है कि राजस्थान सरकार के लिए अब हालात करो या मरो वाले हो चुके हैं. इसीलिए गहलोत की रणनीति अब ये है कि अगर राज्यपाल सत्र बुलाने के लिए मान जाते हैं तो ऐसे में वो सदन में अपना बहुमत साबित कर सकते हैं. इससे दो चीजें हो सकती हैं,

एक तो बागी विधायकों को सत्र में हिस्सा लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है, क्योंकि स्पीकर एक बार फिर व्हिप जारी कर सकते हैं. अगर बागी विधायक रिजॉर्ट से बाहर निकलकर राजस्थान में आते हैं तो ये गहलोत के लिए सुनहरा मौका होगा. कुछ बागी वापस भी आ सकते हैं. वहीं दूसरा ये कि अगर बागी विधायक नहीं भी पहुंचते हैं तो वो एक बार फिर व्हिप का उल्लंघन करेंगे, वहीं गहलोत के पास अपने और सहयोगी दलों के इतने विधायक होंगे कि वो सदन में बहुमत साबित कर सकते हैं. जिसके बाद अगले 6 महीने के लिए उन्हें राहत की सांस मिलेगी.

हालांकि गहलोत और कांग्रेस विधायकों की ये कोशिश सफल होती नजर नहीं आ रही है. राज्यपाल पर इस दबाव का कोई भी असर नहीं पड़ने वाला है. वहीं अगर पिछली सरकारों के साथ राज्यपालों का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो उसे देखकर भी कुछ ऐसा ही लगता है.
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सीएम के कहने पर राज्यपाल को विधानसभा सत्र बुलाना होता है लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. इस बीच अदालतों में भी मामला लंबा खिंच रहा है. ऐसे में गहलोत को चिंता है कि कहीं कुछ विधायक छिटक गए, खासकर निर्दलीय तो क्या होगा. इस बीच बीजेपी भी सरकार गिराने का गिराने के लिए और समय मिल जाएगा. वो तो खुलेआम कह चुकी है कि उसकी कोशिश होगी सरकार न चलने पाए. जो लोग भी खरीद-फरोख्त में शामािल हैं, उनको भी और समय मिलेगा.

कोर्ट में सुनवाई पर सुनवाई

अब बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को होने वाली सुनवाई के बारे में, राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब केस सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान के स्पीकर ने याचिका दायर कर दो बातें कहीं थीं. उन्होंने पहली मांग ये की थी कि जब तक वो बागी विधायकों पर कोई फैसला नहीं लेते हैं, तब तक कोर्ट केस को कैसे सुन सकता है? इसीलिए इस सुनवाई पर रोक लगाई जाए. वहीं दूसरा उन्होंने ये कहा था कि राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले तक विधायकों पर कोई एक्शन लेने से मना किया है, इस पर उन्हें राहत दी जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा नहीं किया. कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में विरोध करने का अधिकार होना चाहिए. वहीं स्पीकर के पक्ष में भी कहा गया कि उनके अधिकार पर विचार किया जाना जरूरी है.

यानी सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की बात रखी, लेकिन कोई फैसला नहीं दिया. अब हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट में दो बातों को लेकर चर्चा होगी. एक तो ये कि क्या स्पीकर के नोटिस पर कोर्ट वाकई स्टे लगा सकता है या नहीं, वहीं दूसरा ये कि सचिन पायलट ने कहा है कि ये उनकी अभिव्यक्ति की आजादी की बात है. अगर कुछ गलत होता है तो उन्हें उसका विरोध करने का अधिकार है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में स्पीकर की शक्तियों और बागी विधायकों के अधिकार पर चर्चा होगी. अब सुप्रीम कोर्ट इस मसले को सुलझाने के लिए किसी बेंच का गठन भी कर सकता है. यानी मामला काफी लंबा भी खिंच सकता है.

इससे पहले ऐसा मामला कर्नाटक की सरकार गिरने के दौरान भी सामने आया था. लेकिन वहां मामला तब कोर्ट पहुंचा था जब स्पीकर विधायकों के खिलाफ कार्रवाई कर चुके थे. लेकिन यहां स्पीकर के अधिकारों का इस्तेमाल अब तक हुआ ही नहीं है. इसीलिए स्पीकर का पक्ष भी मजबूत दिखता है.

BSP के विधायकों का मामला बिगाड़ सकता है गेम

लेकिन हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अलावा भी एक और चीज है जो गहलोत सरकार की नींव हिला सकती है. बीएसपी के 6 विधायकों ने कांग्रेस का दामन थामा था, इस मामले को लेकर अब बीजेपी विधायक मदन दिलावर हाईकोर्ट पहुंच चुके हैं. जिसमें उन्होंने कहा है कि इन विधायकों की योग्यता को रद्द किया जाना चाहिए. साथ ही स्पीकर पर भी उन्होंने सवाल खड़े किए हैं. क्योंकि सभी विधायक एक साथ कांग्रेस में आए थे, इसीलिए उन पर दल बदल कानून के तहत कार्रवाई नहीं हुई थी.

अब इस मामले पर सोमवार को राजस्थान हाईकोर्ट में सुनवाई होगी. लेकिन अगर हाईकोर्ट का फैसला बीएसपी विधायकों के पक्ष में नहीं आता है तो गहलोत सरकार को अल्पमत में आने से कोई नहीं बचा सकता.

क्योंकि गहलोत सरकार चारों तरफ से घिर चुकी है, इसीलिए अब राजभवन को आखिरी रास्ते के तौर पर देखा जा रहा है. अगर इस स्थिति में फ्लोर टेस्ट होता है तो गहलोत सरकार को थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन अगर मामला ऐसा ही लटका रहा तो कहीं न कहीं गहलोत सरकार के लिए खतरे की घंटी और तेज बजनी शुरू हो जाएगी.

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क्या है नंबर गेम?

पायलट के धड़े के अलग होने से पहले कांग्रेस के कुल अपने 107 विधायक थे. अब अगर पायलट समेत 19 विधायकों को कम कर दिया जाए तो कांग्रेस के पास 88 विधायक रह जाते हैं. अब इसमें सीपीएम और भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो-दो विधायक और आरएलडी के एक विधायक को जोड़ दें तो आंकड़ा 93 तक पहुंचता है. इसके बाद 13 निर्दलीय विधायकों को भी जोड़कर कुल संख्या 106 होती है. ऐसे में अभी फ्लोर टेस्ट होने की स्थिति में सरकार बच जाएगी, लेकिन अगर बीएसपी के विधायकों के खिलाफ फैसला आता है तो गहलोत सरकार 100 पर पहुंच जाएगी, जो बहुमत से एक विधायक कम है.

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