राजस्थान (Rajasthan) में एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गई है, लेकिन इस बार इस हलचल के पीछे गहलोत सरकार में मंत्री राजेंद्र गुढ़ा (Rajendra Gudha) है. गुढ़ा ने विधानसभा में अपनी ही सरकार के खिलाफ बयान दिया, जिसके बाद उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया.
लेकिन उन्होंने ऐसा क्या कहा जिसके बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया, गुढ़ा की अपनी ही सरकार से क्या नाराजगी है, इससे कांग्रेस पर क्या असर पड़ सकता है और गुढ़ा का अगला कदम क्या हो सकता है? इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.
राजेंद्र गुढ़ा ने अपनी ही सरकार के खिलाफ क्या कहा?
21 जुलाई को राज्य विधानसभा में कांग्रेस के कुछ विधायकों ने मणिपुर में महिलाओं को नग्न कर परेड कराए जाने का विरोध किया. इसके ठीक बाद राजेंद्र गुढ़ा ने विधानसभा के पटल पर कहा कि, "जिस तरह से हम राजस्थान में महिलाओं को सुरक्षा देने में असफल रहे हैं और महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं, उसे देखते हुए मणिपुर का मुद्दा उठाने की बजाय हमें अपनी गिरेबां में झांकना चाहिए."
बस इसी बयान के बाद विवाद हो गया और अशोक गहलोत ने गुढ़ा को अपनी कैबिनेट से बाहर निकाल दिया.
कौन हैं राजेंद्र गुढ़ा?
मंत्री पद से बर्खास्त होने के ठीक पहले राजेंद्र गुढ़ा के पास सैनिक कल्याण (स्वतंत्र प्रभार), होम गार्ड और नागरिक सुरक्षा, पंचायती राज और ग्रामीण विकास राज्य मंत्री का पद था.
राजेंद्र गुढ़ा झुंझुनूं जिले की उदयपुरवाटी विधानसभा सीट से विधायक हैं.
2008 में गुढ़ा पहली बार बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते थे. तब उन्होंने अपनी पार्टी के विधायकों के साथ गहलोत सरकार को समर्थन दिया था. गुढ़ा तब गहलोत की कैबिनेट में शामिल थे.
2013 में गुढ़ा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गए और फिर बीएसपी में शामिल हो गए.
2018 के चुनाव में गुढ़ा फिर बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीते थे और गहलोत सरकार को समर्थन दिया था.
लेकिन सालभर बाद ही सितंबर 2019 में गुढ़ा समेत बीएसपी के 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए, और गुढ़ा गहलोत सरकार में फिर मंत्री बनें.
अपनी ही सरकार से अब क्यों नाराज हैं गुढ़ा?
ये कोई पहला मौका नहीं है जब गुढ़ा ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बयान दिया हो. वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश जैमिनी ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि, "राजेंद्र गुढ़ा के बयानों से समझ आता है कि उनका कांग्रेस में मन नहीं लग रहा है. जब उनपर अपहरण का मामला दर्ज हुआ था तब भी उन्होंने गहलोत के खिलाफ बयान दिया था, फिर वे सचिन पायलट के समर्थन में कई बार बयान देते हुए नजर आए. पिछले कई समय से वो गहलोत सरकार के खिलाफ बयान दे रहे हैं. अब तक कांग्रेस आलाकमान उन्हें नजरअंदाज कर रहा था लेकिन अब चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में आलाकमान ऐसे नेताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाना चाहता है और तभी ये कार्रवाई हुई है."
राजेंद्र गुढ़ा कई बार पायलट के समर्थन में बयान दे चुके हैं. वे पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग भी उठाते आ रहे हैं. नवंबर 2022 को गुढ़ा ने कहा था- पार्टी आलाकमान को हर विधायक से बात करनी चाहिए. मैं कह रहा हूं कि अगर 80 फीसदी विधायक सचिन पायलट के साथ नहीं हैं तो वह अपना दावा छोड़ देंगे. इसके बाद उन्हें पायलट के समर्थक के रूप में देखा गया है.
कभी गहलोत के थे कट्टर समर्थक
हाल फिलहाल में भले ही राजेंद्र गुढ़ा को सचिन पायलट का समर्थक बताया जा रहा हो लेकिन इससे पहले गुढ़ा हमेशा से गहलोत के कट्टर समर्थक रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश जैमिनी ने कहा, "अशोक गहलोत और राजेंद्र गुढ़ा के रिश्ते अच्छे रहे हैं. हाल ही के कई उदाहरण है. गहलोत का वो कई बार समर्थन करते आए हैं, यहां तक की राजस्थान सरकार के धर्मेंद्र राठौर के घर जब आईटी रेड पड़ी, तब भी उन्होंने मोर्चा संभाला था."
साल 2020 में जब सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ बगावत की थी, तब सरकार को गिरने से बचाने में बीएसपी विधायकों ने ही अहम भूमिका निभाई थी. तब राजेंद्र गुढ़ा समेत बीएसपी के सभी 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
क्या बीजेपी में शामिल हो सकते हैं गुढ़ा?
वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश जैमिनी ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि, "ये मुश्किल है, बीजेपी उनके लिए ठीक नहीं है क्योंकि गुढ़ा का वोटबैंक अलग है. उन्हें अल्पसंख्यकों के वोट चाहिए. उनके लिए बीएसपी ही उचित पार्टी है. वे पहले भी बीएसपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे और फिर बीएसपी से टिकट ले लिया था, तो हो सकता है इस बार भी ले आएं."
क्या हो सकता है राजेंद्र गुढ़ा का अगला कदम?
वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश जैमिनी ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि, "हाल ही में गुढ़ा ने AIMIM के प्रमुख ओवैसी से मुलाकात की है. तो राज्य में एक तीसरा धड़ा बनने की जो चर्चा चल रही है, गुढ़ा उसका हिस्सा हो सकते हैं. इस तीसरे हिस्से में ओवैसी, आरएलपी के हनुमान बेनिवाल है, आम आदमी पार्टी हो सकती है, बीएसपी हो सकती है और भी तमाम क्षेत्रीय दल हैं जो मिलकर थर्ड फ्रंट बना कर जीत सुनिश्चित करें."
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