पंजाब के संगरूर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव (Sangrur Bypoll Election) में आम आदमी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है, जो मुख्यमंत्री भगवंत मान का घरेलु मैदान है. इस चुनावी जीत के साथ शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के प्रमुख सिमरनजीत सिंह मान (Simranjit Singh Mann) ने भी वापसी की है. उन्होंने AAP उम्मीदवार गुरमेल सिंह (Gurmail Singh) को 5822 वोटों के अंतर से हराया है.
इस जीत का मतलब है कि सिमरनजीत सिंह मान 18 साल के लंबे अंतराल के बाद संसद में वापसी कर रहे हैं. इससे पहले वह 1999 से 2004 के बीच संगरूर से सांसद रहे थे. इस आर्टिकल में हम इन तीन सवालों का जवाब खोजने की कोशिश करेंगे:
AAP के लिए यह हार बड़ी बात क्यों है?
सिमरनजीत सिंह मान कौन हैं?
संगरूर के इस चुनावी परिणाम का क्या मतलब है?
AAP के लिए यह हार बड़ी बात क्यों है?
कुछ ही महीने पहले पंजाब विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर कर प्रचंड जीत के साथ सरकार बनाने वाले आम आदमी पार्टी के लिए संगरूर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे चौकाने वाले हैं. "यहां से पार्टी का हारना बड़ी बात क्यों है"- इस सवाल का जवाब हम इन तथ्यों में खोज सकते हैं:
संगरूर लोकसभा सीट मुख्यमंत्री भगवंत मान का घरेलू मैदान है.
संगरूर एक ऐसी सीट है जिसपर भगवंत मान 2019 के लोकसभा चुनावों में भी नहीं हारे थे, जब AAP सबसे कमजोर थी. उन्होंने यहां से एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की और यहां के नौ में से सात विधानसभा क्षेत्रों में नंबर 1 के पायदान पर थे.
2022 पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने संगरूर के सभी नौ विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की थी.
2009 से लेकर अबतक पंजाब में हुए सभी उपचुनावों में से लगभग लगभग 90 प्रतिशत उपचुनाव में उसी पार्टी को जीत मिलती आई है जिसकी सरकार राज्य में होती है.
सिमरनजीत सिंह मान कौन हैं?
संगरूर लोकसभा सीट से जीतने वाले नेता सिमरनजीत सिंह मान का जन्म 1945 में शिमला में हुआ था. उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) जोगिंदर सिंह मान अकाली दल के नेता और 1967 में पंजाब विधानसभा के स्पीकर भी थे. खास बात है कि सिमरनजीत सिंह मान और पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह संबंधी हैं.
1967 में सिमरनजीत मान भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में शामिल हुए और आगे SSP फिरोजपुर, SSP फरीदकोट, ग्रुप कमांडेंट CISF (बॉम्बे) जैसे पदों पर काम किया. हालांकि उन्होंने जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में इस्तीफा दे दिया.
आगे वह पंजाब में सरकार की नीतियों, खासकर मानवाधिकार हनन के कड़े आलोचक बन गए. उन्होंने यह भी कहा कि वह खालिस्तान का समर्थन करते हैं लेकिन लोकतांत्रिक, अहिंसक तरीकों से वह इसे हासिल करना चाहते हैं. मान को कई सालों तक जेल में रहना पड़ा और उन्हें कैद के दौरान यातना का सामना करना पड़ा.
जेल में रहते हुए उन्होंने साल 1989 में तरनतारन से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. उनकी पार्टी SAD (अमृतसर) ने उस चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया और 13 में से 6 सीटों पर जीत हासिल की थी.
याद रहे कि सरकार ने पंजाब में 1991 के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था और आखिरकार 1992 में कई प्रतिबंधों के बीच चुनाव हुए थे. उस चुनाव का अकाली दल के लगभग सभी गुटों ने बहिष्कार किया था, जिसमें SAD (अमृतसर) भी शामिल थी. मान 1996 और 1998 में हार गए लेकिन 1999 में उन्हें फिर से जीत मिली. 1999 में वो संगरूर लोकसभा सीट से जीते थे.
2000 के दशक में अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल गुट ने पंजाब और सिख बॉडीज में अन्य अकाली नेताओं को पीछे छोड़ते हुए अपनी राजनीतिक ताकत को मजबूत करना शुरू कर दिया था. लेकिन जब 2015 के आसपास बेअदबी के मामलों और गोलीबारी के बाद बादल परिवार की स्थिति कमजोर हुई तो सिमरनजीत सिंह मान की राजनीति फिर चमकी.
कुछ लोगों ने सिमरनजीत सिंह मान को सिख पहचान और समुदाय के लिए न्याय के मुद्दों पर "खड़ा रहने वाला आखिरी आदमी" के रूप में देख रहे हैं. कृषि कानूनों के खिलाफ गुस्से ने एक दृढ, पंजाब-केंद्रित और सिख-केंद्रित राजनीतिक आवाज की आवश्यकता को और बढ़ा दिया.
चुनावी रूप से इसका असर 2022 के विधानसभा चुनावों में साफ हुआ, जिसमें सिमरनजीत सिंह मान को उस समय भी अमरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से लगभग 30 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए जब पूरे मालवा में आम आदमी पार्टी की लहर थी. उनके इस प्रदर्शन में दीप सिंह सिद्धू की मौत से उपजी सहानुभूति का भी योगदान था. मालूम हो कि सिद्धू ने मान के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया था.
चुनावी मैदान पर शानदार वापसी और बादल परिवार के कमजोर होने को देखते हुए, यह शुरू से ही साफ था कि सिमरनजीत मान संगरूर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. यह सीट AAP के भगवंत मान के सीएम बनने पर इस्तीफा देने के बाद खाली हो गई थी.
संगरूर के इस चुनावी परिणाम का क्या मतलब है?
संगरूर उपचुनाव पर सिद्धू मूसे वाला की दुखद हत्या का असर रहा. हालांकि मूस वाला के पिता बलकौर सिंह सिद्धू ने किसी भी पार्टी का उम्मीदवार बनने से इनकार कर दिया था और साथ ही पार्टियों से चुनाव में मूसेवाला के नाम का इस्तेमाल नहीं करने का अनुरोध किया था. इसके बावजूद माना जा रहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मूसे वाला की हत्या ने चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
लगता है कि मूसे वाला की सुरक्षा कम करने के लिए आलोचनाओं का सामना करने वाली AAP सरकार को चुनाव में लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा है.
पंजाब में सीएम भगवंत मान को "कमजोर" और AAP के "दिल्ली नेतृत्व" के नियंत्रण में देखा जा रहा है. संगरूर में AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल के प्रचार के दौरान भगवंत मान की एक गाड़ी से लटकी हुई तस्वीर वायरल हुई थी और इसने वोटरों के बीच गलत संकेत भेजा.
उपचुनाव में 50 प्रतिशत से भी कम वोटों का पड़ना भी नतीजों के पीछे का एक महत्वपूर्ण कारक रहा. ऐसा लगता है कि कई वोटर्स, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में AAP का समर्थन किया था, वे इसबार वोट डालने बाहर नहीं निकले.
दूसरी ओर सिमरनजीत मान के समर्थकों को पता था कि यह उनके वापसी का एक शानदार मौका है और वे वोट डालने बड़ी संख्या में निकले क्योंकि सिमरनजीत मान ने भावनात्मक मोर्चे पर चुनाव लड़ा था.
बीजेपी ने भी आश्चर्यजनक रूप से अच्छा प्रदर्शन कर आम आदमी पार्टी को यहां नुकसान पहुंचाया. बीजेपी ने कांग्रेस से दलबदल कर आए केवल ढिल्लों को मैदान में उतारा था, जिन्होंने 10 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं. ढिल्लों ने AAP के वोटों के साथ-साथ उनकी पुरानी पार्टी कांग्रेस के वोटों का एक हिस्सा अपने पाले में कर लिया होगा.
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