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शिवपाल के ‘समाजवादी सेक्युलर मोर्चा’ के पीछे किसका दिमाग? 

डेढ़ साल से भतीजे की बेरूखी झेल रहे चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अपनी खुद की पार्टी “समाजवादी सेक्युलर मोर्चा” बना ली

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डेढ़ साल से भतीजे की बेरूखी झेल रहे चाचा शिवपाल सिंह यादव ने आखिर अपनी खुद की पार्टी “समाजवादी सेक्युलर मोर्चा” बना ली. राजनीति और परिवार में अपना वजूद बचाये रखने के लिए उनके पास शायद ये आखिरी रास्ता था. जिस पर वो काफी दिनों से आगे-पीछे हो रहे थे. ये रास्ता वो अखिलेश को डराने के लिये हथियार की तरह भी इस्तेमाल कर रहे थे. लेकिन जब अखिलेश ने कोई तरजीह नहीं दी तो शिवपाल ने कहा कि वो छोटी-छोटी पार्टियों को जोड़कर ताकत बड़ी बनेंगे.

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शिवपाल के लिए पार्टी चलाना बहुत मुश्किल

पार्टी बनाना और फिर उसे चलाना क्या इतना आसान है? कतई नहीं, वो भले ही समाजवादी पार्टी के अच्छे सेनापति रहें हों, लेकिन उनकी हैसियत कभी निर्णायक की नहीं रही. राजनीति के इस युद्ध के लिये उन्होंने जिसे अपना सारथी ( मुलायम सिंह यादव) चुना है, असल में वो कभी उनके साथ रहकर भी साथ नही दिखे.

मुलायम के भरोसे बैठे रहे शिवपाल 

डेढ़ साल से भतीजे की बेरूखी झेल रहे चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अपनी खुद की पार्टी “समाजवादी सेक्युलर मोर्चा” बना ली
अखिलेश ने पापा-चाचा एंड कंपनी से हार नहीं मानी
(फोटो: क्विंट)

वैसे ये काफी दिनों से चल रहा था . शिवपाल सिंह यादव लंबे वक्त से नेताजी का इंतजार कर रहे हैं. उन पर भरोसा किया लेकिन एसपी में उनके अच्छे दिन नहीं आये. उम्मीद करते रहे कि भतीजे को एक दिन उनकी काबिलियत का अहसास होगा. क्योंकि संगठन तो वो ही संभालते थे. लेकिन विधान सभा में बुरी तरह से हारने के बावजूद अखिलेश ने पापा-चाचा एंड कंपनी से हार नहीं मानी. उन्होंने उपचुनावों में जो दो सीटें बीजेपी से छीनी वो सौ सीटों के बराबर थीं.

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उपचुनाव की जीत से अखिलेश ने नेताजी की जगह ले ली

इन जीत से अखिलेश ने मुलायम को रिप्लेस कर दिया. अब बात संगठन की.. तो जो कार्यकर्ता चुनाव के पहले थोड़ा भी कन्फ्यूज थे वो भी समझ चुके थे कि अब पार्टी में पापा और चाचा नहीं, बल्कि भइया ही भइया है. ऐसे हालात में शिवपाल ने मोर्चा का गठन कर बड़ा चैलेंज लिया है.

शिवपाल के मोर्चे के पीछे किसकी शह

तमाम चर्चाएं चल रही हैं. पिछले दो-तीन महींनों के घटनाक्रम के हिसाब से कई अलग-अलग चीजें सामने आएंगी. मोर्चा गठन से एक हफ्ते पीछे चलते हैं. सब जानते हैं कि राजनीति में कार्यकर्ताओं और शुभचिन्तकों की भीड़ भी राजनीतिक होती है. फायदे के अनुसार दिखते और छिपते हैं. विधानसभा चुनाव से ही हाशिए पर चल रहे शिवपाल के पास शुभचिन्तक के तौर पर वही बचे हैं जिनकी अखिलेश टीम में नो इंट्री है. रक्षा बंधन के दिन शिवपाल ने कहा कि अब कितना बर्दाश्त करूं. सब्र की भी कोई सीमा होती है. और बुधवार को इसका ऐलान कर दिया.

अखिलेश से अलग होकर शिवपाल ने बनाई पार्टी,एसपी के लोगों को न्योता

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मोर्चे के एलान के बाद अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव के समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाये जाने पर कहा चुटकी ली

‘‘मैं भी नाराज हूं, मैं कहां चला जाऊं.‘‘ अभी जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आएगा, बहुत कुछ दिखेगा.

मोर्चा के पीछे बीजेपी के होने के बारे में पूछे जाने पर एसपी अध्यक्ष ने कहा ‘‘इसके पीछे बीजेपी है, ऐसा मैं नहीं कहता, पर आज और कल की बात को देख लें तो शक तो उन पर जाएगा ही.

डेढ़ साल से भतीजे की बेरूखी झेल रहे चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अपनी खुद की पार्टी “समाजवादी सेक्युलर मोर्चा” बना ली
यूपी में एसपी, बीएसपी और कांग्रेस विपक्षी दलों के गठबंधन से बीजेपी टेंशन में है
(फोटोः Quint Hindi)

अखिलेश के संदेह की वजह

जानकारों के मुताबिक यूपी में एसपी, बीएसपी और कांग्रेस विपक्षी दलों के गठबंधन से बीजेपी टेंशन में तो है. लिहाजा वो ऐसे लोगों को तलाश रही है जो भले ही जीत में उसकी मदद न कर सकें, लेकिन कम से कम मुद्दों को भटकाने का काम तो कर ही सकते है. अमर सिंह जो आजकल बीजेपी प्रेम में रंगे हैं और शिवपाल हैं जो एसपी का मजबूत हिस्सा रहे.

योगी से कई बार मिले हैं शिवपाल

शिवपाल कुछ महींनों में कई बार योगी से मिल चुके है. चर्चा यह भी है कि सीएम योगी ने उन्हें इज्जत भी खूब दी. इस बीच शिवपाल ने तमिलनाडु कैडर के आईएएस अपने दामाद अजय यादव को वापस तमिलनाडू जाने से रुकवा लिया. तमिलनाडू कैडर के अजय यादव अखिलेश सरकार में प्रतिनियुक्ति पर यूपी आये थे. दिसंबर में उनकी प्रतिनियुक्ति खत्म हो रही है. जिसे बढ़ाने के लिए योगी सरकार ने एनओसी दे दी है. ऐसा सामान्य मामलों में नही होता. इसे भी भविष्य की राजनीति से जोड़ देखा जा रहा है. राजनीतिक गर्दिश के दौर से गुजर रहे शिवपाल संकट से बाहर निकलने के लिए कुछ भी कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें: शिवपाल के ‘मोर्चे’ पर बोले अखिलेश- मैं भी नाराज हूं, मैं कहां जाऊं

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