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ग्रेटर टिपरालैंड की जगह 'संवैधानिक समाधान'?BJP के लिए TIPRA से गठबंधन अहम क्यों?

Amit Shah के साथ बैठक के बाद बोले Pradyot Debbarma- गठबंधन और कैबिनेट जैसे मुद्दों पर चर्चा ही नहीं हुई

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त्रिपुरा में बीजेपी के नेतृत्व वाली नई सरकार के शपथग्रहण के बमुश्किल दो घंटे बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और टिपरा मोथा पार्टी  (TIPRA Motha) के प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मा (Pradyot Manikya Debburma) के बीच एक शीर्ष स्तरीय बैठक हुई. बैठक के बाद देबबर्मा ने जानकारी दी कि केंद्रीय गृह मंत्री ने 'त्रिपुरा के मूल निवासियों के लिए संवैधानिक समाधान' की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

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देबबर्मा की पार्टी TIPRA Motha ने हाल ही में संपन्न त्रिपुरा विधानसभा चुनावों में 42 सीटों पर दांव लगाया और 13 पर जीत हासिल की है. केंद्रीय गृह मंत्री के साथ बैठक के बाद उन्होंने ट्वीट किया कि "गृह मंत्री ने त्रिपुरा के मूल निवासियों के लिए एक संवैधानिक समाधान के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस प्रक्रिया के लिए एक वार्ताकार नियुक्त किया जाएगा और यह एक खास समय सीमा के भीतर होगा."

"मैं इस धरती के लाल की वास्तविक समस्याओं को समझने के लिए गृह मंत्री को धन्यवाद देता हूं. हमने 23 साल बाद ब्रू समझौते पर हस्ताक्षर करके अपने ब्रू लोगों को अपने राज्य में सफलतापूर्वक पुनर्वासित किया और आज हमने अपने अस्तित्व और अस्तित्व की रक्षा के लिए एक बड़ी बातचीत शुरू की है. गठबंधन और कैबिनेट जैसे मुद्दों पर कभी चर्चा ही नहीं हुई सिर्फ हमारे दोफाओं के हितों पर चर्चा हुई.”
प्रद्योत किशोर देबबर्मा

इस बैठक में दोनों के अलावा त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, राज्य के बीजेपी प्रभारी संबित पात्रा और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता उपस्थित थे.

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टिपरा ने समझौता नहीं किया है- देबबर्मा

आज सुबह, देबबर्मा ने ट्वीट किया कि उनकी पार्टी TIPRA ने "समझौता (कॉम्प्रोमाइज) नहीं किया है" और उन्होंने अपने समर्थकों से "प्रतीक्षा करने और आगे देखने" के लिए कहा.

कांग्रेस छोड़ने से पहले राज्य कांग्रेस प्रमुख रहे देबबर्मा ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि वह समझौता करने के बजाय खुशी-खुशी विपक्ष में बैठेंगे.

टिपरा मोथा को 2021 में "ग्रेटर टिपरालैंड" नाम के नए राज्य की मांग के साथ शुरू किया गया था. त्रिपुरा के पूर्व शासक परिवार के वंशज, देबबर्मा की पार्टी एक अलग राज्य के लिए एक 'संवैधानिक समाधान' की मांग कर रही है.

ग्रेटर टिपरालैंड की मांग को आगे बढ़ाने के लिए गठित, देबबर्मा की इस नई पार्टी ने हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में 13 सीटों पर जीत हासिल की है. बीजेपी के बाद सबसे अधिक सीटें TIPRA ने ही जीती हैं. उसका यह शानदार प्रदर्शन बीजेपी की सहयोगी आईपीएफटी (इंडिजेनस प्रोग्रेसिव फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) की कीमत पर आया है.

आईपीएफटी ने इस बार जिन पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से सिर्फ एक सीट पर जीत मिली है.

टिपरा मोथा के तेजी से उदय ने बीजेपी खेमे में चिंता बढ़ा दी है. अगले साल आम चुनाव होने हैं और माना जा रहा है कि ऐसे में बीजेपी उसे गठबंधन के भीतर लाने की आवश्यकता महसूस कर रही होगी.

पहले गठबंधन की बातचीत हो चुकी है फेल 

TIPRA के साथ गठबंधन पर बीजेपी के शुरुआती प्रस्ताव विफल हो गए थे, क्योंकि दोनों पक्ष अपने रुख पर अडिग थे. बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य का विभाजन का सवाल ही नहीं उठता जबकि टिपरा मोथा ने ग्रेटर टिपरालैंड की अपनी मूल मांग से नीचे उतरने से इनकार कर दिया है.

हालांकि, भगवा पार्टी के नेतृत्व ने त्रिपुरा जनजातीय स्वायत्त परिषद को अधिक विधायी, वित्तीय और कार्यकारी शक्तियां देने की इच्छा की बात कही है. जनजातीय स्वायत्त परिषद आदिवासी समुदायों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में मौजूद है और इसके मामलों पर फैसला लेती है.

(इनपुट- आईएएनएस)

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TIPRA का साथ आना बीजेपी के लिए बड़ा बूस्ट होगा

टिपरा ने ने चुनावों में सीपीआई-एम और कांग्रेस को क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर धकेल दिया है.

सीपीआई-एम, जिसने 35 वर्षों तक दो चरणों (1978 से 1988 और 1993 से 2018) में त्रिपुरा पर शासन किया. सीपीआई-एम को 16 फरवरी के चुनावों में 11 सीटें जीतीं, जबकि कई वर्षों तक राज्य में शासन करने वाली कांग्रेस को तीन सीटें मिलीं.

दोनों राष्ट्रीय दल इस बार 20 आदिवासी आरक्षित सीटों में से एक भी सीट हासिल करने में विफल रहे, जबकि 1972 में त्रिपुरा के पूर्ण राज्य बनने के बाद से आदिवासी क्षेत्र वाम दलों का गढ़ थे.

16 फरवरी के चुनावों में, सीपीआई-एम के नेतृत्व वाले वामपंथी दलों ने 26.80 प्रतिशत वोट हासिल किए, टीएमपी को 20 प्रतिशत से अधिक वोट मिले और वाम दलों के साथ सीट बंटवारे की व्यवस्था में चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस 8.56 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही.

अगर खुद बीजेपी की बात करें तो उसने 32 सीटें (38.97 प्रतिशत वोट) मिली हैं जो 2018 के चुनावों से चार सीटें कम हैं. उसके सहयोगी ने एक सीट (1.26 प्रतिशत वोट) हासिल की, जो पिछले चुनावों से सात सीटों से कम है.

ऐसे में 2024 चुनाव से पहले बीजेपी के लिए टिपरा आईपीएफटी का परफेक्ट विकल्प साबित हो सकती है.

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