अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बेहद अविश्वसनीय तरीके से तुलसी गबार्ड अब तक डेमोक्रेटिक पार्टी उम्मीदवार की रेस में हैं. गबार्ड ऐसे दौर में रेस में बनी हैं, जब लोकप्रियता की रेटिंग में उनसे कहीं ऊपर और कहीं ज्यादा डेलिगेट्स वाले नाम जैसे कि एलिजाबेथ वैरेन, माइकल ब्लूमबर्ग, पीट बटगेग और ऐमी क्लोबुशर बाहर हो चुके हैं.
हकीकत की बात करें तो गबार्ड के नॉमिनेशन जीतने की कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि उन्हें सिर्फ दो डेलिगेट्स का समर्थन हासिल है और ओपिनियन पोल में उन्हें 2 फीसदी से भी कम वोट मिल रहे हैं. इसलिए सवाल ये पूछे जा रहे हैं कि अब तक वो रेस में बनी क्यों हैं?
राष्ट्रपति पद के लिए गबार्ड का कैंपेन
कैंपेन में बने रहने से जुड़े सवालों के बीच, तुलसी गबार्ड ने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार और कांग्रेस के लिए उनके कैंपन के दौरान ‘हिंदूफोबिया’ का शिकार होने का आरोप लगाकर बड़ी बहस छेड़ दी है.
उनके ट्वीट को दो नजरिये से देखा जा सकता है, एक गबार्ड के चुनाव प्रचार के शॉट-टर्म नजरिये से और दूसरा अमेरिका में हिंदू राजनीति के पहलुओं के लॉन्ग-टर्म नजरिये से.
जहां तक तुलसी गबार्ड के कैंपेन का सवाल है, वो बार-बार इस बात पर जोर दे रही हैं वो अकेली महिला हैं, अकेली अश्वेत उम्मीदवार हैं (वो आधी समोअन हैं), अकेली पूर्व सैनिक हैं और राष्ट्रपति चुनाव के लिए सबसे कम उम्र की उम्मीदवार हैं. इसके अलावा वो राष्ट्रपति चुनाव में उतरने वाली पहली हिंदू भी हैं.
लेकिन सच्चाई ये है कि गबार्ड के लिए सबसे बड़ी कामयाबी ये होगी कि जो बाइडन या बर्नी सैंडर्स में से कोई उन्हें रनिंग मेट बना ले या कैबिनेट में जगह दे दे, और अगले राष्ट्रपति चुनाव में वो दोबारा कोशिश कर लें.
और अगर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोबारा चुन लिए गए, तो तुलसी गबार्ड का लक्ष्य होगा कि डेमोक्रेटिक पार्टी में उनका ओहदा बढ़े, ताकि 2024 में और कामयाब तरीके से चुनाव प्रचार करें.
इसलिए जातीय भेदभाव या हिंदूफोबिया की पीड़ित होने का दावा करना ट्रंप, बाइडन या सैंडर्स की जीत के मद्देनजर अपनी स्थिति मजबूत करने का तरीका भर हो सकता है.
ये हुई पहली नजर में दिखने वाली बात. अब देखते हैं इसका दूरगामी नजरिया क्या है.
अमेरिका राजनीति में हिदुत्व की पूंजी हैं गबार्ड
तुलसी गबार्ड का ट्वीट उनके हिंदू सर्मथकों के मुख्य मिशन को पूरा करता है – अमेरिकी राजनीतिक बहस में हिंदुत्व को एक मुद्दा बना देना.
हिंदू गबार्ड के प्रमुख समर्थक रहे हैं और उनकी अहमियत उतनी ही बढ़ती गई जितना वो डेमोक्रेटिक रेस में दरकिनार होती गईं.
ओपनसीक्रेट्स के मुताबिक, 2011 के बाद गबार्ड के पूरे करियर में दूसरी सबसे बड़ी प्रायोजक अमेरिकन स्प्रेटेक नामकी एक कंपनी है, जिसने गबार्ड को 48,489 डॉलर डोनेट किया है.
इस कंपनी के मालिक न्यू जर्सी के हिंदू कारोबारी एलेन लालवानी और मानव लालवानी हैं. लालवानी साधु वासवानी के अनुयायी हैं. मानव ने तो साधु वासवानी मिशन के साथ मिलकर काम भी किया है.
हालांकि साधु वासवानी मिशन की हिंदुस्तान के सभी राजनीतिक पार्टियों में पहुंच है, इसके संस्थापक साधु टी एल वासवानी की RSS से काफी नजदीकियां थी. बीजेपी के वरिष्ठ नेता एल के आडवाणी के मुताबिक, टी एल वासवानी ने बंटवारे से एक हफ्ता पहले 8 और 9 अगस्त 1947 को कराची में RSS के लिए बहुत बड़ी रैली की थी.
तुलसी गबार्ड को दान देने वालों की लिस्ट में नंबर चार पर 'ऐट लास्ट स्पोर्ट्सवियर' नाम की एक कंपनी है, जिसने 2011 से लेकर अब तक 45,200 डॉलर डोनेट किए हैं. ये कंपनी न्यू जर्सी के एक और हिंदू कारोबारी सुनील आहूजा की है.
आहूजा न्यू जर्सी में साधु वासवानी सेंटर से जुड़े हैं.
फिर नंबर 6 पर स्टार पाइप प्रोड्क्ट्स नाम की एक कंपनी है, जिसने तुलसी गबार्ड को 41,716 डॉलर डोनेट किया है. ये ह्यूस्टन के कारोबारी रमेश भुटाडा की कंपनी है, बताया जाता है कि वो हिंदू स्वयंसेवक संघ के यूएस चैप्टर के वाइस प्रेसीडेंट हैं.
हिंदू स्वयंसेवक संघ के बारे में माना जाता है कि वो RSS का अंतर्राष्ट्रीय संस्करण है. भुटाडा RSS से संबंधित सेवा इंटरनेशनल के निदेशकों में से एक हैं.
2019 में ह्यूस्टन के ‘हाउडी मोदी’ इवेंट में भुटाडा काफी करीब से शामिल थे और उनका बेटा ऋषि उस इवेंट का प्रवक्ता था. ऋषि हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन के निदेशकों में से एक है.
गबार्ड का एक और अहम डोनर है टेक्सास के डलास का एक हॉस्पीटल DALLAS ENT HEAD & NECK SURGERY, जिसने 32,827 डॉलर डोनेट किया है. इस हॉस्पीटल के डायरेक्टर हैं कश्मीरी हिंदू मूल के डॉक्टर राजीव पंडित, जो कि हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन के निदेशकों में से एक हैं.
तुलसी गबार्ड के हिंदुत्व समर्थक डोनर्स पर एक रिपोर्ट में The Caravan ने अनिल देशपांडे का जिक्र किया जो कि RSS से संबंधित सेना इंटरनेशनल के वाइस प्रेसीडेंट हैं.
हालांकि बाद में पता चला कि वो दूसरे अनिल देशपांडे हैं. गबार्ड को जिस अनिल देशपांडे ने 2011 से अब तक करीब 25,000 डॉलर डोनेट किया वो फ्लोरिडा के ओरलैंडो में एक रीयल इस्टेट फर्म Deshpande Inc के मालिक हैं.
देशपांडे के संघ से किसी संबंध के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हालांकि, उन्होंने एक हिंदू संस्था जिज्ञासा फाउंडेशन की स्थापना की थी और फ्लोरिडा की हिंदू सोसायटी के हिस्सा हैं.
देशपांडे को लेकर दुविधा के बावजूद, The Caravan में छपी पीटर फ्रेडरिक की रिपोर्ट में गबार्ड के संघ से जुड़े संस्थानों, खास तौर पर विश्व हिंदू परिषद की अमेरिकी यूनिट, से लिंक की पूरी जानकारी मौजूद है.
“अमेरिका में संघ के बड़े चेहरे – जैसे कि टेक्सास के बिजनेसमैन विजय पालॉड; शिकागो के कैंसर रोग विशेषज्ञ भारत बाराई; और कैलिफोर्निया के मिहिर मेघानी – से उनके संबंधों की वजह से गबार्ड का अमेरिका में संघ के कई फंडरेजर्स में जोरदार स्वागत हुआ है.”-तुलसी गबार्ड पर The Caravan में छपी रिपोर्ट
लेख के मुताबिक मेघानी संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं और उन्होंने गबार्ड को 18,550 डॉलर डोनेट किया. बाराई, VHP अमेरिका के एक और चेहरे, भी गबार्ड के डोनर हैं.
इसलिए गबार्ड के ‘हिंदूफोबिया’ आरोप को इस नजरिये से देखा जाना चाहिए. क्योंकि शायद उनके हिंदू समर्थक चाहते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के बीच वो ऐसा कहें.
प्रोग्रेसिव डेमोक्रेट: अमेरिकी हिंदुओं के नए दुश्मन?
ऐसा कहने का मतलब ये नहीं कि अमेरिका में हिंदुओं के खिलाफ भेदभाव नहीं होता. 19वीं शताब्दी में कैलिफोर्निया के रेल ट्रैक पर काम करने वाले हिंदू मजदूरों के खिलाफ आक्रोश से लेकर 1987 में हिंदुस्तानियों के खिलाफ डॉटबस्टर (डॉट का मतलब बिंदी) गैंग के हेट क्राइम और मंदिरों पर अलग-अलग जगह हुए हमलों तक, अमेरिका में हिंदू-विरोध का इतिहास रहा है.
कट्टरवादी ईसाइयों ने भी लगातार हिंदुओं पर हमले किए हैं – इनमें सबसे ज्यादा मशहूर था टेलीवेंजलिस्ट और रिपब्लिकन पैट रॉबर्टसन का हिंदू धर्म को ‘राक्षसी’ बताना.
हालांकि ये हमले सिर्फ हिंदुओं पर नहीं होते थे. दूसरी जाति और धर्म के लोगों – खास तौर पर मुसलमानों और सिखों – को भी इसी तरीके से या इससे भी ज्यादा बार निशाना बनाया गया. अभी तक अमेरिका में धार्मिक या जातीय अल्पसंख्यकों की हकीकत ने हिंदू राजनीति, श्वेत-प्रभुत्वाद से नफरत और ईसाई अधिकार को एक आकार दिया है.
हालांकि हिंदुत्व के उदय ने अमेरिका की इस हकीकत को धीरे-धीरे बदल दिया है और गबार्ड का ट्वीट ‘नए हिंदू’ की कहानी की छोटी सी मिसाल है.
गबार्ड के ट्वीट में अज्ञात शख्स की बताई घटना में ‘हिंदूफोबिया’ का ये आरोप श्वेत-प्रभुत्वादी और कट्टरवादी ईसाई पर नहीं, बल्कि सताए गए हिंदुस्तानी मुसलमान से हमदर्दी रखने वाले किसी शख्स पर लगाया है.
हालांकि वो खुलकर उस उबर ड्राइवर की पहचान भी नहीं बताता है, लेकिन उस पोस्ट का आशय अमेरिकी मुसलमानों और प्रोग्रेसिव्स के कथित तौर पर ‘हिंदूफोबिक’ होने से है.
ऐसा लगता है कि गबार्ड के हिंदू समर्थक चाहते हैं कि वो उन प्रगतिशील डेमोक्रेट का सामना करें जो मुसलमानों से बर्बरता के खिलाफ बोलते हैं, खासकर हिंदुस्तान में.
प्रगतिशील डेमोक्रेट के खिलाफ हिंदुत्वावादियों का ये आक्रोश तब साफ हो गया जब बर्नी सैंडर्स ने दिल्ली हिंसा पर भारत सरकार की आलोचना की, जिस पर बीजेपी के महासचिव और RSS के करीबी बी एल संतोष भड़क उठे (हालांकि बाद में उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया).
याद रखिए, सिर्फ सैंडर्स नहीं बल्कि प्रमिला जयपाल, रो खन्ना, इल्हान ओमर, राशिदा तालिब और एलेक्जेंड्रिया ओकासियो कॉर्टेज जैसे डेमोक्रेट्स ने अल्पसंख्यकों के साथ मोदी सरकार के बर्ताव की आलोचना की है.
जयपाल ने दावा किया कि नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अमेरिकी सांसदों की बैठक से उनका नाम हटाने की कोशिश की गई.
इसलिए डेमोक्रेट के प्रगतिशील हिस्से के कई लोगों को अमेरिका की हिंदुत्व लॉबी पसंद नहीं करती और वो उनके बजाय अपनी उम्मीदवार तुलसी गबार्ड को पूरी ताकत से बढ़ावा देते हैं.
हालांकि सबके सब एक ही उम्मीदवार को समर्थन नहीं दे रहे. बीजेपी बैकग्राउंड के अमित जानी बाइडन के कैंपेन का हिस्सा हैं, हैरानी की बात है कि वो मुस्लिमों तक बाइडन की बात पहुंचाने का प्रभारी हैं.
फिर, जाहिर तौर पर, प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थन में काफी सक्रिय हैं. हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि तुलसी गबार्ड अमेरिका में हिंदुत्ववादी की सबसे मजबूत पूंजी हैं और हिंदुत्व लॉबी इसके लिए उन पर पैसा लगाते रहने के लिए तैयार है.
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