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UP:2022 चुनाव में CM योगी के ‘योग’ बुलंद,विपक्ष का नाम-BJP का काम?

UP में पहले से ही ‘वोट बैंक’ की लड़ाइयों में उलझी विपक्षी पार्टियों में एक नया नाम जुड़ गया है- आम आदमी पार्टी.

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वीडियो एडिटर: कुनाल मैहरा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'चुनाव योग' बुलंद हैं. पहले से ही 'वोट बैंक' की लड़ाइयों में उलझी विपक्षी पार्टियों में एक नया नाम जुड़ गया है- आम आदमी पार्टी. पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ये ऐलान किया है. पहले से ही मौजूद ढेर सारे 'प्रोडक्ट्स' में अपना प्रोडक्ट बेहतर बताते हुए केजरीवाल के शब्द थे- 'यूपी के लोग आम आदमी पार्टी को एक बार मौका देकर देखें. मैं यकीन दिलाता हूं कि उत्तर प्रदेश वाले बाकी सारी पार्टियों को भूल जाएंगें.’

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ऐसे में इस ऐलान और 2022 विधानसभा चुनाव को नजर में रखते हुए इन मुद्दों पर बात करेंगे:

  • AAP जैसी पार्टियों की एंट्री से विपक्ष का नाम, बीजेपी का काम कैसे?
  • अखिलेश यादव की मुश्किलें कैसे बढ़ गई हैं?
  • बीएसपी जीतने के लिए नहीं लड़ रही है?
  • कांग्रेस साख बचाने के चक्कर में वोट कटवा कैसे बन गई?
  • AIMIM का बिहार वाला 'पायलट प्रोजेक्ट' जिंदाबाद है

विपक्ष का नाम, बीजेपी का काम

अभी AAP चुनाव लड़ने का ऐलान कर 'हवा' बना ही रही थी कि बीजेपी की तरफ से सीधा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 'हमला' कर विपक्षी पार्टियों की तरफ सहानुभूति रखने वाले लोगों को AAP की तरफ 'डायवर्ट' कर दिया है. मौर्य ने AAP की घोषणा को 'मुंगेरी लाल का हसीन सपना' बताया है.

मतलब ये है कि आम आदमी पार्टी की ‘आरोप-प्रत्यारोप वाली लड़ाई’ में आधिकारिक तौर पर अनावरण हो गया है. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस, AIMIM, भीम आर्मी समेत तमाम विपक्षी पार्टियों में AAP भी शामिल हो गई है.

ऐसा नहीं है कि आम आदमी पार्टी या कोई नई दूसरी पार्टी सिर्फ विपक्ष के ही समर्थकों को तोड़ेगी, बीजेपी को भी नुकसान हो सकता है. लेकिन नफा-नुकसान के फॉर्मूले में ये देखना होता है कि सबसे ज्यादा फायदा किसे होगा और नुकसान किसका होगा?

विपक्ष को मिलता स्पेस ही खत्म कर देना है!

अब देखिए कि यूपी में फिलहाल कानून व्यवस्था, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे जबरदस्त सुर्खियों में हैं. विपक्ष के लिए यहां पर गुंजाइश है लेकिन विपक्ष ही जब बिखरा-छितरा-बंटा हुआ होगा तो ये सारे मुद्दे चुनाव में लोगों को किस पार्टी की तरफ खिंचेंगी? वोटर कंफ्यूज होगा.

एसपी-बीएसपी, एसपी-कांग्रेस का गठजोड़ पहले ही नाकाम साबित हो चुका है. मायावती की कथनी और करनी कंफ्यूज करती है कि वो बीजेपी के साथ हैं या नहीं. ऐसे में अल्पसंख्यकों में कंफ्यूजन होगा. अल्पसंख्यको के लिए कुछ सीटों पर AIMIM अलग से तैयार दिखती है, बिहार के फॉर्मूले से उसका कॉन्फिडेंस काफी बढ़ा है.

वहीं बीजेपी की नजर डॉमिनेंट कास्ट पर तो है ही साथ ही उसकी नजर दलितों और पिछड़ों पर भी खूब है. खुद डिप्टी सीएम मौर्य पिछड़ी जाति से आते हैं. दलितों में बेस बनाने के लिए पार्टी जुटी हुई है, ऊपर से जब बात यूपी की होती है तो यहां धार्मिक ध्रुवीकरण भी जमकर होता है और ध्रुवीकरण वाले लहर में जाति से मामला आगे बढ़कर हिंदू-मुसलमान पर शिफ्ट हो जाता है. ऐसे केस में सारे दूसरे मुद्दे गौड़ पड़ जाते हैं.

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अखिलेश यादव के लिए चुनौतियों के पहाड़ हैं!

कुल मिलाकर 2022 के चुनाव की बात कुछ अलग ही होने जा रही है. अब सबसे बड़ी मुश्किल अखिलेश यादव के लिए है. अखिलेश पहले ही एक बार बीएसपी से तो एक बार कांग्रेस से गठबंधन कर देख चुके हैं, मुंह की खा चुके हैं. रही सही कसर चुनाव बाद पूरी हो जाती है, जब गठबंधन के कार्यकर्ता एक दूसरे पर आरोप मढ़ देते हैं, ऐसे में अखिलेश यादव को अपने वोटर बचाने के लिए कांग्रेस, बीएसपी, AAP, AIMIM सबसे जूझना पड़ेगा. नौबत ये है कि अखिलेश यादव अपनी सभाओं में कह रहे हैं कि वो अभी रणनीति नहीं बताएंगे वरना साजिश शुरू हो जाएगी. ये भी कह रहे हैं कि छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करने जा रहे हैं. जाहिर है कि वो आरएलडी जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन करेंगे और किसी भी बड़ी पार्टी से गठबंधन में परहेज करेंगे.

मायावती ने सस्पेंस में रखा है! जीतने के लिए नहीं लड़ रही

नवंबर में हुए राज्यसभा विधानसभा चुनाव याद होंगे आपको! उन चुनावों में बीएसपी चीफ की तरफ से कहा गया कि अब समाजवादी पार्टी को एमएलसी चुनाव में निपटाने के लिए बीजेपी का समर्थन लेने को भी तैयार हैं. समाजवादी पार्टी कह ही रही थी कि बीजेपी-बीएसपी की मिली भगत है, राज्यसभा चुनाव में बिना पर्याप्त संख्या बल के ही बीएसपी ने रामजी गौतम को उम्मीदवार बनाया और जीत भी गई. इसमें बीजेपी के 'सहयोग' की भी खूब चर्चा हुई.

एक बात और ध्यान देने की है कि पिछले कुछ महीनों में एक तरफ बीएसपी प्रमुख जहां कांग्रेस, समाजवादी पार्टी को कई मुद्दों पर जमकर लताड़ लगाती नजर आईं वहीं बीजेपी को लेकर उनके ट्वीट्स और बयानों में ‘सलाह’-’अपील’ वाले पुट नजर आए. बीजेपी पर दिए जाने वाले बयानों से वो लताड़ गायब था, जिसका इस्तेमाल वो विपक्षी पार्टियों के लिए करती हैं. ऐसे में पार्टी को वोट करने वाले लोग इनसिक्योर हो सकते हैं.

कांग्रेस साख बचाने के चक्कर में वोट कटवा कैसे बन गई?

प्रियंका गांधी को महासचिव बनाए जाने के बाद से ही कांग्रेस यूपी में जमकर एक्टिव नजर आईं. सोशल मीडिया पर मुद्दे उठाना हो या हाथरस में पीड़िता के घर पहुंचना हो, विपक्षी पार्टियों में से बाजी कांग्रेस ने ही मारी है. लेकिन ये जाहिर है कि जिस तरीके की पकड़ ग्राउंड पर होनी चाहिए वो यूपी में कांग्रेस के पास नहीं है. बीच-बीच में पार्टी नेताओं की नाराजगी की खबर भी सुर्खियों में रहती है जो कोढ़ में खाज का काम करती है. इसलिए स्थिति कमोबेश बिहार वाली ही है, कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी वाले दंभ से बाहर आना नहीं चाहेगी, सभी सीटों पर लड़ेगी.

AIMIM का बिहार वाला 'पायलट प्रोजेक्ट' जिंदाबाद है?

AIMIM को भूलिए मत. बिहार चुनाव के नतीजों को याद रखिए. यूपी चुनाव में AIMIM भी जरूर हाथ आजमाना चाहेगी. उसे भीम आर्मी का साथ मिल सकता है या दोनों हीं पार्टियां अलग-अलग चुनाव में उतर सकती हैं. बिहार चुनाव में जिस कदर AIMIM ने विपक्ष के वोट बैंक में सेंध लगाई है, वो ऐसा ही यूपी में कर सकती है.

आम भाषा में समझिए कि बीजेपी के खिलाफ कोई भी मुद्दा हो...मुद्दा तो एक ही है पार्टियां अनेक हैं... तो वोट बंटने को तय हैं. बीजेपी को हराने की बात कह कर मैदान में आने वाली AIMIM, AAP जैसी पार्टियां अंतत: बीजेपी की जीत में वॉलेंटियर बनकर ही अपना योगदान दे पा रही हैं, ऐसा कुछ चुनाव के ट्रेंड कहते है. लेकिन एक डायलॉग है सालों से चला आ रहा है कि ये पब्लिक है सब जानती है, तो इस डायलॉग पर भरोसा जरूर रखना चाहिए.

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