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पंजाब है खतरे की घंटी, नेतृत्व संकट की वजह से बर्बाद हो सकती है कांग्रेस

पंजाब में ताजा सियासी संकट से कांग्रेस को सचेत होने की जरूरत

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कांग्रेस में जारी सिद्धू (Navjot Siddhu) के 'ड्रामे'और पंजाब में राजनीतिक संकट को प्रियंका-राहुल के द्वारा ठीक से हैंडल नहीं किए जाने से पार्टी के नेतृत्व से नाराज चल रहे जी-23 (G-23) ग्रुप को हमले का नया मौका मिल गया है. पिछले साल पार्टी की अतंरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखी जी-23 ग्रुप की चिट्ठी ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं.

पंजाब में कांग्रेस के लिए जारी मुश्किलों और राहुल-प्रियंका के फैसलों पर उठ रहे सवालों के बीच इस ग्रुप को अपनी पुरानी मांगें दोहराने का मौका मिल गया.

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पार्टी में कौन लेता है फैसले?

सीनियर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने मौक ना चूकते हुए पार्टी में नेतृत्व के आभाव की ओर ध्यान दिलाने के लिए तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. उन्होंने पार्टी छोड़कर जा रहे लोगों, पूर्णकालिक अध्यक्ष और वर्किंग कमिटी के चयन में देरी की ओर ध्यान आकर्षित किया. सिब्बल ने कहा, हमारी पार्टी में कोई अध्यक्ष नहीं है ,हमें जानते भी हैं और नहीं भी कि फैसले कौन ले रहा है.

जिस वक्त सिब्बल यह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे, लगभग उसी वक्त पंजाब से पार्टी के सांसद मनीष तिवारी न्यूज चैनलों से बात कर रहे थे. तिवारी ने चैनलों से बातचीत में कहा कि पार्टी के आगे बढ़ने के लिए 4 अहम चीजें हैं- नेतृत्व, संगठन, नैरेटिव और पर्याप्त फंडिंग.
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हालांकि कांग्रेस के मामले में ये सारी चीजें गायब दिखती हैं. उदाहरण के तौर पर पार्टी में लीडरशिप को लेकर स्थिति साफ नहीं. 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की शर्मनाक हार के बाद सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन बताया जाता है कि अभी भी सारे बड़े फैसले राहुल गांधी, बहन प्रियंका गांधी के साथ मिलकर लेते हैं. सोनिया गांधी केवल इसे आगे बढ़ाती हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो पार्टी के बड़े फैसलों को लेकर किसी की भी जिम्मेदारी तय नहीं है.

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एक फैसला जो पड़ा भारी

गांधी भाई-बहन कई राज्यों में पार्टी की अदंरूनी लड़ाई रोक पाने में अब तक असफल रहे हैं, ज्यादातर फैसले उन पर भारी पड़े हैं. एक तरफ पंजाब उबल रहा है तो दूसरे राज्यों में भी हालात ज्यादा अलग नहीं हैं. यहां भी नेताओं के खेमे बंटे हुए हैं और संघर्ष जारी है. केंद्रीय नेतृत्व की कमजोरी की वजह से कांग्रेस में खोखलापन आ गया है. पार्टी की दिशाहीनता ने शायद कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा दिया है, जिससे वे बेहतर विकल्प की तलाश को मजबूर हुए हैं. सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस वैचारिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी से मुकाबले के लिए मजबूत तर्क नहीं नहीं ढूंढ पाई है. जबकि बीजेपी हिंदू राष्ट्रवाद को जनता के बीच भुनाने में कामयाब रही है.

राहुल गांधी कांग्रेस को गरीबों और वंचितों की पार्टी घोषित करने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन बहुत कम लोग इस पर भरोसा करते हैं. कांग्रेस और गांधी- नेहरू खानदान की वजह से इस दावे में विश्वसनीयता का आभाव दिखता है.
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चुनाव नहीं जीत पाने की वजह से राहुल के नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े हुए हैं. नेहरू-गांधी परिवार के बिना किसी जिम्मेदारी लिए सत्ता का सुख भोगने की प्रवृति से परेशना होकर जी-23 के नेताओं ने एक दिखाई देने वाले नेतृत्व और संगठन के अंदरूनी चुनाव की मांग उठाई है.

कुछ समय तक शांत रहने के बाद कपिल सिब्बल ने फिर हलचल शुरू की है. पिछले महीने उन्होंने एक डिनर का आयोजन किया था, जिसमें काफी संख्या में विपक्षी नेता पहुंचे थे. पार्टी के संगठन में बड़े बदलाव की मांग को लेकर साथ आने वाले इन नेताओं का अभियान, आगे की लड़ाई कैसे लड़ी जाए, इसे लेकर स्थिति साफ नहीं होने की वजह से कुछ वक्त के लिए थम सा गया था.

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जी-23 में शामिल कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा आगे क्या कदम उठाया जाए, इसे लेकर विचार कर ही रहे थे कि पंजाब में पार्टी के लिए खड़े हुए सियासी संकट ने उन्हें मौका दे दिया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस संगठन की खामियां गिनाते हुए पार्टी में अमूल-चूल बदलाव की मांग कर दी. इन नेताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव जैसे राहुल गांधी की टीम में रहे नेताओं के पार्टी छोड़ने को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से उन पर निशाना साधा.

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जी-23 का असली निशाना हैं राहुल गांधी

हालांकि इन नेताओं ने कभी खुलकर राहुल गांधी को निशाने पर नहीं लिया है, लेकिन उनका असली निशाना राहुल ही हैं. इन नेताओं का मानना है कि उनमें पार्टी का नेतृत्व करने की क्षमता नहीं है. निजी बातचीत में ये नेता कहते हैं कि सिद्धू प्रकरण ने उनकी बात इस बात को साबित किया है.

इस ग्रुप का सोचना है कि पंजाब में राहुल-प्रियंका के कारण खड़े हुए संकट की वजह से पार्टी के कई नेता जो पर्दे के पीछे से जी-23 को सपोर्ट कर रहे हैं, अब खुलकर बोल सकेंगे.
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यह किसी से छिपा नहीं है कि, अमरिंदर सिंह के कड़े विरोध के बावजूद अगर पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष की कमान नवजोत सिद्धू को मिली, तो इसके पीछे दोनों भाई-बहन ही थे. अमरिंदर सिंह पर सिद्धू के लगातार हमलों की वजह से राहुल-प्रियंका ने कैप्टन की विदाई का फैसला लिया. 28 सितंबर को इस ड्रामे का दूसरा हिस्सा सामने आया, जब सिद्धू ने नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के द्वारा की गई कई नियुक्तिों से नाराज होकर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया. यह कहना गलत नहीं होगा कि इस पूरे प्रकरण से भाई-बहन को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है.

बड़ा सवाल है कि इसके बाद अब कांग्रेस कहां जाएगी? यह केवल पंजाब की बात नहीं है. क्या पार्टी पहले की तरह ही चलती रहेगी या फिर जी-23 गुट में और नेता शामिल होंगे?

(लेखक दिल्ली बेस्ड सीनियर जर्नलिस्ट हैं. उनसे ट्विटर पर @anitaakat नाम से संपर्क कर सकते हैं. ये एक ओपिनियन पीस है और इस आर्टिकल में लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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