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विवाहित बेटी को आश्रित कोटे में मिल सकती है नौकरी

इलाहाबाद HC ने कहा है कि सेवा के दौरान जान गंवाने वाले सरकारी अधिकारी की विवाहित बेटी भी नौकरी के योग्य है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि सेवा के दौरान जान गंवाने वाले सरकारी अधिकारी की विवाहित बेटी भी सरकारी नौकरी पाने के योग्य है. कोर्ट ने कहा है कि विवाहित बेटे के समान विवाहित बेटी भी परिवार की सदस्य है और उसे भी नियुक्ति पाने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि महिला के विवाहित या अविवाहित होने से फर्क नहीं पड़ता है.

हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली के अविवाहित शब्द को सेक्स के आधार पर भेद करने वाला मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया है.
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जस्टिस जेजे मुनीर ने मंजुल श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया. श्रीवास्तव ने प्रायगराज के जिला शिक्षा अधिकारी के जून 2020 आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें अनुकंपा (compassionate) के आधार पर पिता की जगह नौकरी देने से इनकार कर दिया था. शिक्षा विभाग का कहना था कि वो शादीशुदा हैं और उनकी नियुक्ति नहीं हो सकती.

कोर्ट ने के विवाहित होने के आधार पर मृतक आश्रित के रूप मे नियुक्ति देने से इंकार करने के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि विवाहित बेटी भी नौकरी पाने के उतने ही योग्य है, जितना विवाहित बेटा या अविवाहित बेटी.

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मौलिक अधिकारों का हनन है नौकरी न देना

बेंच ने कहा कि मृत सरकारी अधिकारी की बेटी को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने के दावे को इसलिए खारिज करना कि वो विवाहित है, आर्टिकल 14 और 15 के तहत मौलिक अधिकारों का हनन होगा.

कोर्ट ने विमला श्रीवास्तव मामले को याद करते हुए कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के नियमों में ‘परिवार’ शब्द की परिभाषा से विवाहित बेटियों को बाहर रखना असंवैधानिक है और ये आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन है.

कोर्ट ने जिला शिक्षा विभाग को दो महीने के भीतर नियुक्ति के लिए मंजुल के दावे पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए कहा है.

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