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CAA: कानपुर में 21,000 पर FIR, ‘बेगुनाहों’ को बचाने आगे आए 6 वकील

पैनल ने लोगों से कोई शुल्क नहीं लेने का फैसला किया है.

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वीडियो एडिटर: शोहिनी बोस

वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

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CAA प्रोटेस्ट को लेकर कानपुर, यतीमखाना और बाबूपूर्वा में हुए हिंसा के एक दिन बाद, उत्तर प्रदेश पुलिस ने कानपुर के अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में 21,000 से ज्यादा लोगों पर एफआईआर दर्ज किया है. इनमें ज्यादातर अज्ञात हैं.

मगर अब कानपुर के 6 वकीलों ने ‘बेगुनाह’ प्रदर्शनकारियों को बचाने के लिए एक पैनल बनाया है, जिसमें वे इनका केस मुफ्त में लड़ेंगे.

पुलिस ने हिंसा फैलाने और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने के आधार पर कई मामले दर्ज किए हैं. अगर पुलिस के पास ये सबूत है कि इन 21,000 लोगों ने हिंसा फैलाई है, तो उनकी नजरबंदी कानूनन है. लेकिन मुझे क्या लगता है कि पुलिस एक विशेष समुदाय या धार्मिक समूह को निशाना बना रही है और लोगों को बुक कर रही है और राज्य भर में गैरकानूनी प्रतिबंध लगा रही है. 
निखिल पांडे, एडवोकेट  

पैनल की अगुवाई अधिवक्ता राजेश चतुर्वेदी करेंगे, और अन्य सदस्यों में निखिल पांडे, वीरेंद्र मणि त्रिपाठी, अनुज कुमार गुप्ता, रितिन सोनकर, राजेश कुमार साहू और गौरव द्विवेदी शामिल हैं. पैनल ने सहमति से उन लोगों से कोई शुल्क नहीं लेने का फैसला किया है जिन्हें वे मानते हैं कि उनपर पुलिस ने गलत तरीके से मुकदमा दर्ज किया है.

“हमारा उद्देश्य पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए निर्दोष लोगों को रिहा करना है. दोषी को सजा मिलनी चाहिए. लेकिन हमारा उद्देश्य उन निर्दोष लोगों के लिए लड़ना है जिन पर गलत तरीके से पुलिस ने आरोप लगाए हैं. जिन्हें बुक किया गया है और उन्हें हमारी मदद की जरूरत है, हम हर तरह से मदद करेंगे. हम उनसे कोई पैसा नहीं लेंगे. हम मुफ्त में कानूनी सहायता करेंगे. ”
वीरेन मणि त्रिपाठी, एडवोकेट

विरोध प्रदर्शनों के बाद हुई हिंसा के कई वीडियो सामने आए थे, जिसमें पुलिसकर्मियों को सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नष्ट करते हुए, और नागरिकों को बेरहमी से पीटते हुए देखा गया था.

एडीजी कानपुर जोन प्रेम प्रकाश ने भी ये माना है कि पुलिस की ओर से ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पहुंचाया हैं, ऐसे पुलिसकर्मियों को खोजने के लिए मजिस्ट्रियल जांच पहले ही बैठाई जा चुकी है.

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