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महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगवाने की कोशिश में BJP: शिवसेना

महाराष्ट्र के कथित आईपीएस ट्रांसफर रैकेट मामले पर शिवसेना ने सामने रखा अपना रुख

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महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर के 'लेटर बम' से लेकर कथित आईपीएस ट्रांसफर रैकेट मामले तक कई विवादों पर अपना रुख सामने रखा है. शिवसेना ने राज्य में प्रशासनिक सेवा से जुड़े कुछ लोगों पर 'एक राजनीति पार्टी' की सेवा करने का आरोप भी लगाया है. उसका इशारा बीजेपी की तरफ है.

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सामना ने अपने संपादकीय में लिखा है कि बीजेपी का यह सब ‘झमेला’ क्यों और किसलिए चल रहा है, ये जनता जानती है, राष्ट्रपति शासन लगाकर महाराष्ट्र में अस्थिरता निर्माण कराई जाए, यही उसके पीछे का मुख्य मकसद है. 
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इसके आगे उसने लिखा है, ‘’राज्य सरकार ने डेढ़ सालों में पुलिस और प्रशासन पर नकेल नहीं कसी इसलिए कुछ घोड़े भटक गए, ये स्पष्ट है. उन भटके हुए घोड़ों को और खरहरने और उन्हें चना खिलाने का काम विपक्ष ने हाथ में लिया होगा, तो ये ‘सब घोड़े बारह टके’ के ही हैं. ऐसे घोड़ों से रेस नहीं जीती जा सकती है.’’

संपादकीय की शुरुआत में सामना ने लिखा है, ''राज्य के गृह मंत्री पर वसूली का आरोप लगाने वाले मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह अभी तक प्रशासनिक सेवा में हैं इस पर हैरानी होनी चाहिए...दूसरे एक अधिकारी संजय पांडे ने भी मुख्यमंत्री को ही पत्र लिखकर ‘पदोन्नति’ प्रकरण में उनके साथ किस तरह से अन्याय हुआ यह स्पष्ट किया. पांडे ने उनके पत्र में और भी कई मुद्दे उठाए हैं. राजनीतिक दबाव, उल्टे-सीधे काम करवाने का सरकारी दबाव आदि के संबंध में धमाका किया है. पांडे महासंचालक दर्जे के अधिकारी हैं, लेकिन पुलिस आयुक्त, राज्य के महासंचालक पद की नियुक्ति में उन्हें नजरअंदाज किए जाने का आरोप उन्होंने लगाया.''

इसके आगे लिखा गया है, ‘’पांडे और परमबीर सिंह ने पत्र लिखकर अपनी भावना व्यक्त की, यहां तक तो सब ठीक है. लेकिन ये भावनाएं प्रसार माध्यमों तक पहुंच जाएं और सरकार की कार्यप्रणाली पर संदेह खड़े हों इसकी सटीक व्यवस्था भी उन्होंने की है. इन दो पत्रों के सहारे राज्य का विपक्ष जो नृत्याविष्कार कर रहा है, वह दिलचस्प है. इस जोड़ी में सुबोध जायसवाल, रश्मि शुक्ला आदि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सरकार को अंधेरे में रखकर की गई ‘फोन टैपिंग’ प्रकरण की रिपोर्ट लेकर भी विपक्ष के नेता दिल्ली पहुंच गए हैं. अर्थात राज्य के प्रशासनिक सेवा से जुड़े ये लोग एक राजनीतिक पार्टी की सेवा कर रहे थे.’’

सामना ने लिखा है, ''परमबीर सिंह के पत्र को लेकर लोकसभा और राज्यसभा में बीजेपी के सांसद आक्रामक हो गए. राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार को बर्खास्त किया जाए, ऐसी मांग को लेकर इन लोगों ने हंगामा किया...परमबीर सिंह ने अनुशासन भंग किया और अपनी चमड़ी बचाने के लिए आरोपों की धूल उड़ाई है, क्या ये इन मूर्ख शिरोमणि लोगों को पता नहीं है? परमबीर सिंह द्वारा उनके पत्र में लगाए गए आरोप गंभीर हैं और उसकी निश्चित तौर पर जांच होनी चाहिए. लेकिन बीजेपी वालों के प्रिय गुजरात राज्य में संजीव भट्ट और शर्मा नामक वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा वहां के शासकों के खिलाफ लगाए गए आरोप भी झकझोरने वाले हैं. उस पर क्या कार्रवाई हुई?''

संपादकीय में लिखा गया है, ''श्रीराम भूमि में मतलब बीजेपी वालों के ‘योगी’ के राज्य में भी वैभव कृष्ण नामक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखकर राज्य में तबादलों-पदोन्नति के मामले में ‘दर पत्र’ सामने लाया. योगी सरकार के गृह विभाग का पर्दाफाश करने वाले इस पत्र पर केंद्रीय गृह विभाग ने क्या कार्रवाई की, ये महाराष्ट्र में फुदकने वाले भाजपाई बता सकते हैं क्या?''

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