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2000 के नोट बिना आईडी प्रूफ बदलने के नोटिस पर SC का तत्काल सुनवाई करने से इंकार

हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

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राज्य
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 1 जून को आरबीआई (RBI) और एसबीआई (SBI) के उस नोटिस के खिलाफ तत्काल सुनवाई करने से मना कर दिया, जिसमें 2000 के करेंसी नोट को बिना पहचान पत्र के बदलने की अनुमति दी गई थी. पीठ ने कहा कि वह छुट्टियों के दौरान इस तरह के मामलों पर सुनवाई नहीं करेगी. हालांकि, अदालत ने वकील अश्विनी उपाध्याय को गर्मियों की छुट्टियों के बाद शीर्ष अदालत के फिर से शुरू होने पर मामले का उल्लेख करने की अनुमति दी.

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दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज की थी याचिका

सिर्फ दो दिन पहले ही अश्विनी उपाध्याय की याचिका को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने खारिज कर दिया था.

याचिका को खारिज करते हुए, दिल्ली हाई कोर्ट ने ऑब्जर्व किया कि 2000 रुपये के मूल्यवर्ग को जारी करने का उद्देश्य, नवंबर 2016 में अर्थव्यवस्था की मुद्रा की आवश्यकता को तेजी से पूरा करना था. जब सभी 500 और 1000 रूपए के नोटों को लीगल टेंडर मानने से इंकार कर दिया गया था. यह हासिल कर लिया गया है.

इस प्रकार, रुपये के आदान-प्रदान के लिए पहचान प्रमाण की आवश्यकता पर जोर न देने का सरकार का फैसला 2000 मूल्यवर्ग के नोटों को विकृत, मनमाना या ऐसा कुछ नहीं माना जा सकता है जो काले धन, मनी लॉन्ड्रिंग, मुनाफाखोरी आदि को बढ़ावा देता हो.

हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट को एक तत्काल लिस्टिंग की मांग करते हुए, तर्क दिया कि-

"आरबीआई और एसबीआई के बारे में एक अधिसूचना है कि 2000 रुपये के नोट को बिना पहचान प्रमाण के बदला जा सकता है. यह स्पष्ट मनमानी है. अपहरणकर्ताओं, ड्रग माफियाओं, खनन माफियाओं द्वारा सभी काले धन का आदान-प्रदान किया जा रहा है. किसी मांग पर्ची की आवश्यकता नहीं है. मीडिया रिपोर्टें दिखाती हैं कि 50,000 करोड़ रुपये का आदान-प्रदान किया गया है."

हालांकि, पीठ ने मामले को उठाने के प्रति अपनी अनिच्छा व्यक्त की.

न्यायमूर्ति धूलिया ने टिप्पणी की- "हम ऐसे मामलों को अवकाश पीठ के समक्ष नहीं ले जा रहे हैं. आप सीजेआई के समक्ष उल्लेख कर सकते हैं."

उनके आग्रह के बावजूद, पीठ ने इस मामले पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष छुट्टियों के बाद अपनी अपील का उल्लेख करने की स्वतंत्रता मांगी. जिसकी अनुमति दे दी गई.

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