उत्तर प्रदेश में आजकल सिर्फ दो ही बातें चर्चा के केंद्र में हैं एक तो कोरोना का बढ़ता प्रकोप और दूसरा है पंचायत चुनाव और उससे जुड़ी बातें और चकल्लस. इस बार हो रहे ये त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कई मायनों में खास है. एक तो ये कि चुनाव इस बार थोड़ी देर से हो रहे हैं और इस देरी की वजह भी कोरोना ही है.
ऐसे में क्विंट आपके लिए इन पंचायत चुनावों में कुछ ऐसे प्रत्याशियों, निर्वाचन क्षेत्रों की स्टोरी लेकर आया है, जो हटके हैं.
जब चुनावी मैदान में बेटियां हो तो चर्चा और भी तेज हो जाती है. समाज की दिशा और दशा को तय करने के लिए एक बेटी ने चुनावी ताल ठोक दिया है. वो खुद चुनाव लड़ने के साथ साथ अपनी मां के चुनाव का जिम्मा भी बखूबी निभा रही हैं. ऐसे में इसके बारे में बात करना बनता है.
आकांक्षा अंग्रेजी में एमए और सिविल परीक्षा की तैयारी कर चुकीं
हरदोई जिले के हरपालपुर प्रथम सीट से जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहीं आकांक्षा बाजपेयी ने अंग्रेजी से एमए किया है और वो सिविल परीक्षा की तैयारी करती थीं. लेकिन अब अपने गांव की समस्याओं को दूर करने और समाज में जागरूकता लाने के लिए राजनीति में कदम रख दिया है.
आकांक्षा वाजपेयी विरोधी उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दे रही हैं. आकांक्षा का परिवार राजनीति में पहले से सक्रिय है. जिसकी बागडोर संभालने के लिए अब आकांक्षा ने कदम बढ़ाए हैं. लेकिन गांव की समस्याओं को देखकर उन्होंने तय किया कि, अब वो भी राजनीति में उतर कर गांव के विकास की लड़ाई लड़ेंगीं. जिला पंचायत पद की दावेदारी कर रहीं आकांक्षा बताती हैं कि, उनके गांव में शिक्षा को लेकर लोग आज भी जागरूक नहीं हैं. बेटियों को पढ़ाने की सोचते तक नहीं हैं.
आकांक्षा कहती हैं “ मैं सिविल सर्विसेज में जाना चाहती थी, लेकिन अपने क्षेत्र और लड़कियों की की स्थिति को देखते हुए मेरे मन मे यहां के लिए कुछ करने का ख्याल आया. अगर मैं सिविल सर्विसेज में चली जाती तो मेरी पोस्टिंग कहीं और हो जाती और अपने क्षेत्र से दूर हो जाती. इसलिए मैंने राजनीति में आने का फैसला किया”.
गांव के विकास की बात पर आकांक्षा कहती हैं कि, जब देश इक्कीसवीं सदी में मंगल गृह पर घर बनाने की सोच रहा है उस दौर में उनके गांव में बिजली, पानी और सड़क की समस्याएं मुंह फैलाए खड़ी हैं. इसलिए गांव और क्षेत्र के विकास के लिए उन्होंने पढ़ाई के बाद नौकरी ना करने का फैसला किया और चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही हैं.
मां के पंचायत क्षेत्र से दिन के प्रचार की शुरुआत
आकांक्षा वाजपेयी की मां अर्चना बाजपेयी ग्राम चायत बड़ा गांव से प्रधानी का चुनाव लड़ रही हैं. आकांक्षा ने अपने साथ साथ अपनी मां को भी जिताने का बीड़ा उठा रखा है. आकांक्षा दिन की शुरुआत अपनी मां के पंचायत क्षेत्र से करती हैं और उनके लिए लोगों से समर्थन मांगती है तथा वोट देने की अपील करती हैं उसके बाद अपने क्षेत्र में जाती हैं. लोग जहां इस बेटी की बातों को ध्यान से सुनते हैं और समर्थन का वादा करते हैं वही इनके हौसले की भी दाद देते हैं.
आकांक्षा बताती हैं कि, उनका परिवार हमेशा से साहित्य से जुड़ा रहा है. मां से लेकर पिता और भाई सभी लोग साहित्य से जुड़े हैं. आकांक्षा की मां भी लेखन का कार्य करती हैं और भाई भी कविताएं लिखने का शौक रखता है और लखनऊ में रह रहा है. वहीं पढ़ाई को लेकर उनका कहना है कि, आज के समय में देश और समाज का विकास और नई दिशा देने के लिए शिक्षा सबसे जरूरी है. इसलिए उनका उद्देश्य शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करना है. आकांक्षा लोगों से बेटियों को आगे बढ़ने की अपील करती हैं साथ ही आधी आबादी के शिक्षा को लेकर भी वो प्रयास करने का वादा भी करती हैं.
'लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा'
आकांक्षा आगे बताती हैं कि, जब वो क्षेत्र में समर्थन मांगने निकलती हैं तो लोगों के अंदर एक अलग ही उत्साह दिखाई देता है. उनका मानना है कि, उनके क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक युवा और पढ़ा लिखा उम्मीदवार सामने है जो गांव को मुख्यधारा से जोड़ सकता है. इसलिए लोगों का भरपूर समर्थन मिलता है.
इलाके की बेटियों को दिखा अवसर
आकांक्षा के चुनावी मैदान मे उतरने से इलाके की बेटियों को भी एक अवसर दिखाई देने लगा है कि, आने वाले समय में उन पर जो बंदिशें लगाई गई हैं उनसे छुटकारा मिलेगा और समाज के साथ चलने का मौका दिया जाएगा. क्योंकि अब भी लोगों का मानना है कि, बेटियां सिर्फ घर के कामकाजों के लिए बनी हैं और पढ़ाई लिखाई के बाद भी चूल्हा चौका ही करना है तो पढ़ाई क्यों करवाना? लेकिन आकांक्षा ने इस सोच को बदलने का बीड़ा उठाया है उनका मानना है कि वो इसे वो बदलकर रहेंगी.
आकांक्षा की एक और ख्वाहिश है कआने वाले समय में उन बुजुर्ग और बेसहारा महिलाओं के लिए एक वृद्धाश्रम खोलें जिससे उन महिलाओं का सहारा बन सकें और उन्हें भी जीने के लिए दर-दर की ठोकरें ना खानी पड़ें.
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