उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी (Varanasi) में गंगा नदी (Ganga River) उफान पर है. नदी का जलस्तर बढ़ने से करीब 700 हेक्टेयर जमीन जलमग्न हो गई है. जिससे किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ गई हैं. वहीं काशी के मोक्षदायिनी घाट मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र पर अंतिम संस्कार करना भी मुश्किल हो गया है.
सड़क मार्ग से शव लेकर लोग गलियों से घाट तक तो पहुंच जा रहे हैं. लेकिन अंतिम संस्कार स्थल तक ले जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ रहा है. इसके लिए घंटों लाइन लगनी पड़ रही है. अंतिम संस्कार के लिए लोगों को 4 से 5 घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है.
अंतिम संस्कार के लिए घंटों का इंतजार
गंगा का जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती इलाकों में जीवन प्रभावित हुआ है. मोक्ष की कामना से काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर पहुंचने वाले शवों के अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. मणिकर्णिका घाट पर बना ऊंचा मचान ही शवदाह का एक मात्र सहारा रह गया है. काशी के दूसरे श्मशान हरिश्चंद्र घाट पर गलियों में अंतिम संस्कार हो रहा है. वहीं पानी बढ़ने से विद्युत शवदाह गृह वर्तमान में बंद है.
अंतिम संस्कार में देरी से लोग परेशान
शव का अंतिम संस्कार कराने पहुंचे आजमगढ़ के नवनीत पाठक ने बताया कि उनको अंतिम संस्कार के लिए डेढ़ घंटा इंतजार करना पड़ा और अब लगभग ढाई-3 घंटे और समय लगेगा. वहीं चंदन मिश्रा ने बताया कि बाढ़ के चलते श्मशान पर पानी ऊपर तक आ गया है और सिर्फ ऊंचे बने मचान पर ही अंतिम संस्कार हो रहा है. लाइन लगने की वजह से परेशानी हो रही है.
मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार करने वाले अमरजीत चौधरी कहते हैं कि बाढ़ की वजह से हमेशा से ही ऐसे हालात हो जाते हैं. घाटों पर पानी आ जाने से सिर्फ ऊंचे बने मचान पर बने 10 चूल्हों (जिसे जंगला भी कहा जाता है) पर अंतिम संस्कार होता है, ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि व्यवस्था में विस्तार करे.
गलियों में हो रहा अंतिम संस्कार
हरिश्चंद्र घाट के बारे में ओंकार चौधरी बताते हैं कि यहां के हालात और भी बुरे हैं. यहां अंतिम संस्कार के लिए किसी तरह का मचान या प्लेटफार्म भी सरकार की ओर से नहीं बनवाया गया है. बाढ़ के चलते अंतिम संस्कार गंगा घाट किनारे श्मशान पर नहीं, बल्कि गलियों में हो रहा है.
वहीं डोम राजा परिवार के सदस्य पवन चौधरी ने बताया कि गलियों में अंतिम संस्कार होने से लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
इनपुट: चंदन पांडेय
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