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#IndiaTogether: क्या हैशटैग से ही देश की इमेज सुधार सकती है सरकार?

शशि थरूर लिखते हैं कि अच्छी छवि सच्ची-अच्छी बातों से बनती है

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यह सरकार के दिल बहलाने का जरिया है कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को लेकर कभी कभार चिंता जाहिर कर दे. इस बार किसान आंदोलन और प्रशासन की बेदिली से पैदा हुए गतिरोध को साधन बनाया गया है. लेकिन इसके लिए सरकार ने जो तरीका अपनाया है, उस पर कई नामचीन लोग तड़प से गए हैं.

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हुआ यह कि पॉप सिंगर रिहाना ने सीएनएन के एक आर्टिकल के हवाले से ट्वीट किया. आर्टिकल में भारत में किसान आंदोलन की तरफदारी में टिप्पणी की गई थी. उसमें भारत की राजधानी के आसपास इंटरनेट बंद करने के सरकार के अनाड़ी जैसे फैसले का जिक्र था. इसके बाद सरकार जैसे जाग उठी. ट्विटर पर रिहाना के फॉलोअर्स भारतीय प्रधानमंत्री के फॉलोअर्स से काफी ज्यादा हैं. रिहाना के फॉलोअर्स 100 मिलियन प्लस हैं और प्रधानमंत्री के 60 मिलियन प्लस. तो, सोशल मीडिया इन्फ्लूएंस के लॉजिक के हिसाब से यह जरूरी था कि रिहाना की पोस्ट को गंभीरता से लिया जाए. इसलिए वे लोग भी हरकत में आ गए जिन्होंने शायद रिहाना का एक भी गाना नहीं सुना हो.

विदेश मंत्रालय का बयान शर्मिंदगी भरा

सरकार ने तीन अलग-अलग तरीके से जवाब दिए. पहला, जो विदेश मंत्रालय अलग-अलग देशों की सरकारों, डिप्लोमैट्स और वर्ल्ड पब्लिक से रूबरू होता है, उसने गुस्से में आग बबूला होकर बयान जारी किया. दूसरा, आला मंत्रियों, जिनमें से दो पूर्व डिप्लोमैट्स रह चुके हैं, ने विदेश मंत्रालय के बयान के समर्थन में ट्वीट किए. तीसरा, जब पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग जैसी विदेशी शख्सीयतों ने रिहाना की तरह किसानों का समर्थन किया तो सरकार ने भारतीय सेलिब्रिटीज, खास तौर से फिल्मी सितारों और क्रिकेटर्स की फौज खड़ी कर दी. बहुतों ने विदेशियों को ललकारते हुए ट्वीट किए. यह प्रतिक्रिया कई स्तर पर शर्मिंदा करने वाली थी

पहला, यह विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का काम नहीं है कि वह रिहाना के ट्वीट का जवाब दें. उनका हर शब्द भारत की विदेश नीति की दिशा तय करता है और दुनियाभर के देशों के शीर्ष नेताओं को उसका इशारा देता है. ऐसे में रिहाना के सिर्फ एक लाइन के ट्वीट को ‘न सही और न ही जिम्मेदार’ कहना कहां की समझदारी है. तो, आप एक पॉप सिंगर को ‘सही’ और ‘जिम्मेदार’ मानते हैं.

वैसे हद तो यह हुई कि रिहाना के छह शब्दों के ट्वीट (व्हाई आरंट वी टॉकिंग अबाउट दिस?) का जवाब छह पैराग्राफ में दिया गया, और साथ ही दो लचर से हैशटैग भी चलाए गए #IndiaTogether और #IndiaAgainstPropaganda

मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, विश्व के सभी देशों की सरकारें अपने सेलिब्रिटीज को समझाएं कि कमेंट करने से पहले तथ्यों की जांच कर लें और यह भी कि उन्हें सनसनीखेज सोशल मीडिया हैशटैग्स के ‘लालच’ से बचना चाहिए. पर जिसे पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ‘ओछा’ कहते हैं, यह वक्तव्य उससे ज्यादा क्या था.

अगर हम विदेशी मामलों पर टिप्पणी कर सकते हैं, तो विदेशी लोग हमारे मामलों पर क्यों नहीं?

दूसरा, जैसा कि चिदंबरम ने भी कहा है, भारत के आंतरिक घटनाक्रम पर अगर विदेशी लोग टिप्पणी करते हैं तो यह बेइज्जती की बात नहीं है, न ही इससे नाखुश होने की जरूरत है. हम खुद दूसरे देशों के बारे में बयान देते रहते हैं- अभी एक दिन पहले म्यांमार में तख्तापलट पर खूब चर्चा हुई. चिदंबरम ने पूछा था - भारत के प्रधानमंत्री ने वॉशिंगटन में कैपिटल बिल्डिंग पर हमले के सिलसिले में बयान क्यों दिया? फिर उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय यह कब समझेगा कि मानवाधिकारों और जीविका जैसे मसलों पर चिंता करने वाले किसी सरहद के मोहताज नहीं होते.

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यहां तक कि अमेरिका जोकि भारत में खेती सुधारों का समर्थक है, ने किसानों से ‘संवाद’ की अपील की और भारत सरकार से अनुरोध किया कि वह ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शनों’ को मान्यता दे और इंटरनेट के ‘एक्सेस’ की अनुमति दे. उनके आधिकारिक बयान में कहा गया कि ‘बिना रोक-टोक के सूचना के एक्सेस में इंटरनेट शामिल है और अभिव्यक्ति की आजादी का मूल है, एक फलते-फूलते लोकतंत्र की बानगी भी.’

तीसरा, भारतीय सेलिब्रिटीज को विदेशी सेलिब्रिटीज के सामने खड़ा करना, एक बचकानी हरकत है. यह सरकार की संजीदगी पर सवाल भी खड़े करती है. फिर ट्विटर पर सरकार की इज्जत की रखवाली करने वाली सेलिब्रिटीज की पूरी पलटन अगर एक साथ मिल जाए तो भी रिहाना और थनबर्ग की जोड़ी का मुकाबला नहीं कर सकती. दिक्कत यह है कि भारतीय सेलिब्रिटीज के फैन्स में ज्यादातर भारतीय हैं. लेकिन सरकार उस नुकसान की भरपाई करना चाहती है, जो भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दागदार कर चुका है.

सच्ची-अच्छी बातों से बनती है अच्छी छवि

अब जो कुछ मुंदी आंखों से भी महसूस किया जा सकता है, उसे भी नजरंदाज किया गया. ऐसे में मैं यह कहने पर मजबूर हूं कि भारत सरकार ने जिस तरह अपने देश के सेलिब्रिटीज को विदेशी सेलिब्रिटीज के जवाब में खड़ा किया है, वह शर्मसार करने वाला है. भारत सरकार की हठ और अलोकतांत्रिक बर्ताव से भारत के चेहरे पर जो दाग लगे हैं, उसे किसी क्रिकेटर के ट्वीट से धोया नहीं जा सकता (क्या यहां यह बताना जरूरी है कि रिहाना और थनबर्ग जिन देशों की रहने वाली हैं, वहां क्रिकेट का कोई नाम लेने वाला भी नहीं है). सरकार के पिछलग्गू लगने वाले हैशटैग्स पर मेरा जवाब है- कृषि कानूनों को वापस लीजिए और समस्या के हल के लिए किसानों से बातचीत कीजिए, आपका #IndiaTogether हो जाएगा.

सच्चाई तो यह है कि अच्छी छवि इस बात पर निर्भर करती है कि आपके पास बताने के लिए सच्ची-अच्छी बातें हों. क्या सरकार में किसी ने भी ‘पब्लिक डिप्लोमैसी’ के कॉन्सेप्ट के बारे में सुना है. पब्लिक डिप्लोमैसी यानी जब सरकार दूसरे देश की जनता से संवाद करने की कोशिश करे. अगर किसी को इसके बारे में पता हो तो वह मेरी बात अच्छी तरह से समझ सकता है. कई दशकों से दुनिया में भारत का परचम इसलिए लहराया है क्योंकि हमारे पास अच्छी बातों का भंडार है. एक मुक्त बाजार वाला लोकतंत्र. विविधता में एकता के प्रतीक की भूमि. इस तरह हमारी कामयाबी की कहानी दुनिया के लिए मिसाल बनी है.

सरकार सही बर्ताव करे, हैशटैग न चलाए

लेकिन दुख की बात है कि इसका उलटा हो रहा है. कोई भी बड़ा विदेशी अखबार उठा लीजिए- चाहे वह दक्षिणपंथी हो (जैसे वॉल स्ट्रीट जनरल या फाइनेंशियल टाइम्स) या वामपंथी (जैसे द गार्डियन या वॉशिंगटन पोस्ट), आपको भारत की आलोचना करने वाले आर्टिकल और एडिटोरियल मिलेंगे. रोजाना की खबरों में, और ओपेड कॉलम्स में नेगेटिव बातें मिलेंगी. कैसे भारतीय किसानों के खिलाफ पैंतरे आजमाए जा रहे हैं. इंटरनेट बंद कर दिया गया है. ट्विटर को अकाउंट सस्पेंड करने के आदेश दिए जा रहे हैं. पत्रकारों के खिलाफ मामले तैयार किए जा रहे हैं. विपक्ष के एक सांसद (क्या मैं यह कह सकता हूं) के खिलाफ एक ऐसे ट्वीट की वजह से पांच एफआईआर कर दी गईं जिसे डिलीट किया जा चुका है.

प्रशासन के ऐसे बर्ताव के कारण भारत को कट्टर और असहनशील समझा जा रहा है. इसकी कमान एक अंध राष्ट्रभक्त सरकार ने संभाली है जोकि जानबूझकर अपने लोगों को लड़वा रही है. वो हिंदुत्व की बहुसंख्यवादी राजनीति कर रही है जो दुनिया में कहीं भी, किसी को अपील नहीं करता. हमें इस छवि को बदलने की जरूरत है और सरकार ऐसा तभी कर सकती है, जब वह अपना चाल-चलन बदले. हैशटैग चलाने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है.

बीजेपी के कट्टरपंथियों की जो भी मर्जी हो, ऐसा करना बहुत जरूरी है. दुनिया हमारे बारे में क्या सोचती है, यह पहले से भी ज्यादा मायने रखता है. इसी हफ्ते बजट पेश किया गया है. यह हमें याद दिलाता है कि हम आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं और भारत बहुत हद तक विदेशी व्यापार, निवेश और सद्भावना के भरोसे है.

लेकिन विदेशी निवेश भरोसे पर किया जाता है. विदेशों में भारत की तस्वीर मैली हो रही है. सत्तानशीं दल तंग इरादे से साम्प्रदायिक, विभाजनकारी कदम उठा रहा है. उसे रोकना होगा. अगर सरकार सचमुच देश की छवि को चमकदार बनाना चाहती है तो उसे लोकतांत्रिक तरीके अपनाने होंगे. राजनीतिक प्रक्रिया में सबको साथ लेकर चलना होगा.

तब हम सब गर्व से ट्वीट करेंगे #IndiaTogether.

(डॉ. थरूर तीसरी बार तिरुवनन्तपुरम से सांसद हैं. वह 21 किताबें लिखने वाले पुरस्कार प्राप्त लेखक भी हैं. उनकी हाल की किताब है थरूरोसोरस (पेंग्विन). उनका ट्विटर हैंडल @ShashiTharoor है. यह एक ओपनियन लेख है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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