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यूपी के सरकारी अस्पताल में 50 लाख की दवा हो गई एक्सपायर, पब्लिक का पैसा पानी में

उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक को निरीक्षण के दौरान 2017 से 2022 तक की 322 पेज की एक्सपायर दवाओं की सूची मिली.

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यूपी के उपमुख्यमंत्री (UP Deputy CM) और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक (Brajesh Pathak) प्रदेश भर में औचक निरीक्षण कर सुर्खियों में बने हुए हैं. उन्होंने गुरुवार, 12 मई को लखनऊ के डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में औचक निरीक्षण किया जिसमें बड़ा खुलासा हुआ है. इसमें करीब 50 लाख रूपये कीमत की दवाइयां बर्बाद होने की बात कही जा रही है.

निरीक्षण में चिकित्सा संस्थान में करीब 2.5 लाख ऐसी दवाइयां पकड़ी गई जो एक्सपायर हो चुकी थी. इसके बावजूद खराब हो चुकी दवाइयां संस्थान ने वापस नहीं की. दावा ये भी है कि इससे एक तरफ मरीजों को दवाई नहीं मिली वहीं, दूसरी तरफ करोड़ों के राजस्व का भी नुकसान हुआ.

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332 पन्नों की एक्सपायर दवाइयों की सूची, करीब 50 लाख रु कीमत

निरीक्षण के दौरान डिप्टी सीएम ने संस्थान के कर्मचारियों से एक्सपायर दवाओं की सूची मांगी, जिसपर कर्मचारी सूची उपलब्ध नहीं करा सके और कहा कि ये सूची मुख्य सर्वर से मिलेगी. इसके बाद डिप्टी सीएम सर्वर रूम पहुंचे तो यहां कम्प्यूटर बंद मिले. इस पर उन्होंने मौजूद कर्मचारियों को फटकार लगाई.

निरीक्षण के दौरान उन्हें 2017 से 2022 तक की 322 पेज की एक्सपायर दवाओं की सूची मिली. मंत्री ने दवाओं की कीमत पूछी तो वहां मौजूद कर्मचारी और अफसर एक दूसरे की तरफ देखने लगे. इस पर एक बार फिर नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि "आप लोगों ने सोचा था कि मैं ऐसे ही चला जाउंगा. बिना सूची मैं नहीं जाऊंगा."

इस दौरान पता चला कि 2,48,668 दवाइयां एक्सपायर हो गईं, जिन्हें वापस नहीं किया गया. इन दवाओं की कीमत करीब 50 लाख रुपये से अधिक है.
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उपमुख्यमंत्री ने दिए जांच के आदेश 

निरीक्षण के दौरान स्टोर में करीब दो लाख की एक्सपायर्ड दवाएं पाए जाने पर उन्होंने नाराजगी जताई और जांच के आदेश दिए हैं. पूरे मामले की जांच के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के विशेष सचिव जीएस प्रियदर्शी को जिम्मेदारी सौंपी गई है.

उपमुख्यमंत्री ने निदेशक सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारियों को फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी दी कि इस तरह की गलती दोबारा मिली तो सख्त कार्रवाई होगी. इस दौरान लोहिया संस्थान से मरीज रेफर करने के मामले में भी पड़ताल कराई गई. निर्देश दिया कि बेड खाली न होने का बहाना बनाकर मरीजों को रेफर न किया जाए.

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