ADVERTISEMENTREMOVE AD

आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बनने पर अंबेडकर के ऐसे किसी बयान का सुबूत नहीं है

वायरल मैसेज में दावा है कि अंबेडकर ने कहा था "आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बनते ही आरक्षण खत्म हो जाना चाहिए"

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा

द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के राष्ट्रपति बनने के बाद से सोशल मीडिया पर डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) के नाम पर एक बयान वायरल हो रहा है. अंबेडकर का बताकर वायरल हो रहे पोस्ट में लिखा है "जिस दिन कोई आदिवासी महिला भारत के सर्वोच्च पद 'राष्ट्रपति' तक पहुंच जाएगी। देश में आरक्षण ख़त्म कर दिया जाना चाहिए।"

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अंबेडकर के भाषण, लेख और संसदीय बहसों का रिकॉर्ड विदेश मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर उपलब्ध है. यहां हमें उनका ऐसा कोई बयान नहीं मिला, जिससे वायरल दावे की पुष्टि होती हो.

अंबेडकर के कई सारे लेखों का संपादन करने वाले प्रोफेसर हरि नारके क्विंस को बताया ''जहां तक मैंने पढ़ा है, रिसर्च किया है और जहां तक मेरी समझ है ये बयान फेक है''

प्रोफेसर हरि ने आगे ये भी कहा कि द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति चुनाव के लिे नामित होने से पहले कभी ऐसा कोई दावा नहीं किया गया था.

0

दावा

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा बयान है "जिस दिन कोई आदिवासी महिला भारत के सर्वोच्च पद 'राष्ट्रपति' तक पहुंच जाएगी। देश में आरक्षण ख़त्म कर दिया जाना चाहिए।"

वायरल मैसेज में दावा है कि अंबेडकर ने कहा था "आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बनते ही आरक्षण खत्म हो जाना चाहिए"

पोस्ट का अर्काइव यहां देखें

सोर्स : स्क्रीनशॉट/फेसबुक

यही दावा करते पोस्ट्स के अर्काइव यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पड़ताल में हमने क्या पाया ? 

हमने डॉ. अंबेडकर के लेखों और भाषणों से जुड़े सभी उपलब्ध वॉल्यूम खंगाले. किसी में भी हमें ऐसा कोई रेफरेंस नहीं मिला, जिससे साबित होता हो कि अंबेडकर ने आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बन जाने के बाद आरक्षण खत्म करने की बात कही थी.

आरक्षण पर अपनी राय रखते हुए तब के बॉम्बे में 27 जनवरी 1919 को साउथ बोरग कमेटी के सामने अपनी राय रखते हुए अंबेडकर ने कहा था कि समुदाय से 2 लोगों का प्रतिनिधित्व होना ''न होने से बेहतर है''.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अपने लिखित बयान में उन्होंने तर्क दिया कि "उच्च जाति के हिंदुओं" की उपस्थिति में समुदाय की स्थिति को बदलने के लिए उनके पास कोई शक्ति नहीं होगी.

"मुख्य तौर पर सवर्ण जाति के पुरुषों से बनी विधायिका, छुआछूत को दूर करने, अंतर्विवाहों को मंजूरी देने, सार्वजनिक सड़कों, सार्वजनिक मंदिरों, सार्वजनिक स्कूलों के उपयोग पर प्रतिबंध हटाने, संक्षेप में कहें तो छुआछूत के शिकार लोगों को ऊपर उठाने के लिए कानून पारित नहीं करेगी. ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि वे नहीं कर सकते, बल्कि इसलिए कि वे नहीं करेंगे"
डॉ. भीमराव अंबेडकर, पेज नंबर 264, Volume 1 of Dr Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches
ADVERTISEMENTREMOVE AD

डॉ. अंबेडकर ने लगातार ये तर्क देते हुए आरक्षण की वकालत की कि पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित सीटों की एक सांकेतिक (सीमित) संख्या उनकी मदद करने के लिए काफी नहीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यूके की संसद यानी लंदन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में जनवरी 1931 में अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़ी एक रिपोर्ट पेश करते हुए डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि ''अल्पसंख्यक समुदायों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या उनकी जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से जितनी बनती है, उतनी संख्या में होनी ही चाहिए''

वायरल मैसेज में दावा है कि अंबेडकर ने कहा था "आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बनते ही आरक्षण खत्म हो जाना चाहिए"

हाउस ऑफ लॉर्ड्स में अंबेडकर का बयान

सोर्स : MEA/स्क्रीनशॉट

ADVERTISEMENTREMOVE AD

डॉ. अंबेडकर और राव बहादुर आर श्रीनिवासन ने 4 नवंबर 1931 को शोषित तबकों के विशेष प्रतिनिधित्व को लेकर एक मेमोरेंडम भी तैयार किया था. यहां अंबेडकर ने दलितों के आरक्षण को लेकर सीटों की संख्या की बजाए अनुपात के हिसाब से आरक्षण पर जोर दिया था. साथ ही ये भी कहा है कि आरक्षण की सीट निर्धारित होने के बाद भी उन्हें (शोषित तबके के लोगों को) आरक्षण की मांग करने का अधिकार होगा. भले ही जनगणना में ये साबित हो जाए कि उनकी आबादी घट रही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
अगर एक नई जनगणना में, जिस पर दलित वर्ग का कोई नियंत्रण नहीं हो सकता है, दलित वर्गों की जनसंख्या कम अनुपात में दिखती है या प्रांतों के प्रशासनिक क्षेत्रों को बदलने से जनसंख्या के मौजूदा संतुलन में गड़बड़ी होती है, तब दलित वर्ग को ये अधिकार होगा कि अपने अनुपात में
डॉ. भीमराव अंबेडकर, पेज नंबर 121, Volume 17, , Part 1 of Dr Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अंबेडकर के लेखों में हमें आरक्षण का समर्थन करती उनकी कई दलीलें कई बयान मिले. लेकिन, ऐसा कोई बयान हमें नहीं मिला जिसमें उन्होंने कहा हो कि आदिवासी के राष्ट्रपति बनने पर आरक्षण खत्म किया जाना चाहिए. इस दावे से जुड़े कीवर्ड्स हिंदी और अंग्रेजी में सर्च करने पर भी हमें कोई विश्वसनीय रिपोर्ट या दस्तावेज नहीं मिला.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या कहते हैं एक्सपर्ट ? 

महाराष्ट्र सरकार ने अंबेडकर के लेखों और भाषणों के संकलन के लिए एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. इसी प्रोजेक्ट के तहत 'Dr Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches' के एडिटर प्रोफेसर हरि नारके से हमने संपर्क किया, ये जानने के लिए कि वायरल मैसेज में कितनी सच्चाई है.

अंबेडकर के भाषणों और लेखों के संकलन का वॉल्यूम 17 और 22 एडिट करने वाले प्रोफेसर नारके ने वायरल मैसेज को फेक बताया. साथ ही ये भी कहा कि वो इस तरह की अफवाहें फैलाने वालों की निंदा करते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रो. नारके ने संविधान के अनुच्छेद 334 का जिक्र किया, जो आरक्षण की सीमाओं पर बात करता है. नारके ने कहा कि अंबेडकर ने ऐसा कोई बयान दिया होता तो वो इसी अनुच्छेद में उसे जोड़ते. लेकिन, यहां ऐसा कहीं नहीं लिखा है.

प्रो. नारके ने आगे कहा ''अंबेडकर के नाम पर ये बयान इससे पहले कभी नहीं दिखा. हमें इसके वायरल होने की टाइमिंग पर गौर करना चाहिए. ये मैसेज द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामित होने के बाद वायरल हुआ है.''

प्रो. नारके ये भी कहते हैं कि

''एक रिसर्चर के तौर पर मैं तुरंत पहचान कर सकता हूं कि जिस तरह की भाषा में ऐसा दावा किया जा रहा है वो सच है या नहीं. अगर किसी को अंबेडकर के बयान का वाकई रेफरेंस साझा करना है, तो सोर्स या संदर्भ बताना होगा.''

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अंबेडकर को लेकर भ्रामक दावा पहली बार नहीं 

प्रोफेसर नारके ने इस बात पर जोर दिया कि ये पहली बार नहीं है जब अंबेकर को लेकर भ्रामक दावा किया जा रहा है. इससे पहले केंद्र मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने दावा किया था कि बाबा साहब अंबेडकर जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 के खिलाफ होते, जिसे 2019 में हटा लिया गया.

हालांकि, इन दावों का कोई सुबूत नहीं था. इसके अलावा ये भी दावा किया जा चुका है कि बंगाली मुस्लिमों के वोट की वजह से ही अंबेडकर संविधान सभा का हिस्सा बने.

क्विंट की वेबकूफ टीम ने जब इस दावे की पड़ताल की तो सामने आया कि डॉ. अंबेडकर संविधान सभा के गठन के वक्त जरूर बंगाल से सभा के सदस्य चुने गए थे. लेकिन, जिस क्षेत्र से चुने गए थे, वो विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था.

इसके बाद कांग्रेस ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को बॉम्बे निर्वाचन क्षेत्र से सदस्यता स्पॉन्सर की थी. यानी जिस वक्त संविधान बनकर तैयार हुआ, अंबेडकर संविधान सभा में बॉम्बे का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, न की बंगाल का.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मतलब साफ है, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कभी नहीं कहा कि अगर आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन जाती हैं, तो आरक्षण खत्म कर देना चाहिए. इस दावे को सच साबित करता कोई सुबूत हमें नहीं मिला.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×