सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि मिठाई और स्नैक्स बनाने वाली कंपनी हल्दीराम (Haldiram) का मालिक एक मुस्लिम (Muslim) है. दावे में ये भी कहा गया है कि कंपनी को ''पिछले मालिक के दोनों पोते, योगेश और नरेश खंडेलवाल'' ने बेच दिया था.
हल्दीराम को हाल में ही राइटविंग टीवी चैनल सुदर्शन न्यूज ने भी निशाना बनाया था. आरोप लगाया गया था कि कंपनी नवरात्रि के दौरान व्रत रखने वाले लोगों के इस्तेमाल किए जाने वाले अपने उत्पाद में पड़ने वाली सामग्री को उर्दू में लिखा हुआ है.
हालांकि, हमने पाया कि हल्दीराम ग्रुप के फाउंडर गंगा बिशन अग्रवाल (हल्दीराम) का योगेश और नरेश नाम का कोई पोता नहीं है. इसके अलावा, कंपनी का बिजनेस अभी भी अग्रवाल परिवार के स्वामित्व में है.
दावा
पोस्ट में दावा किया गया है कि हल्दीराम वर्तमान में एक मुस्लिम के पास है. साथ ही, लोगों से कंपनी के उत्पादों का इस्तेमाल न करने के लिए भी लिखा गया है.
पोस्ट में परिवार के इतिहास के बारे में बताया गया है. लिखा गया है कि कंपनी के फाउंडर हल्दीराम के पोते ने बिजनेस को एक मुस्लिम को बेंच दिया है. इसलिए, कंपनी का 'शुद्धता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं' है.
पड़ताल में हमने क्या पाया
हमने ब्रांड के इतिहास से जुड़ी जानकारी खोजी और पाया कि कंपनी के फाउंडर गंगा बिशन अग्रवाल, जिन्हें 'हल्दीराम' के नाम से भी जाना जाता है, उनका न तो घासी लाल नाम का कोई बेटा है और न ही उनके किसी पोते का नाम योगेश और नरेश है.
हमें 2019 में Forbes में पब्लिश एक आर्टिकल मिला, जिसमें हल्दीराम का फैमिली ट्री दिखाया गया था. और इसमें योगेश और नरेश नाम का कोई शख्स मौजूद नहीं था, जैसा कि वायरल पोस्ट में दावा किया गया है.
आर्टिकल में परिवार में बिजनेस के क्षेत्रीय डिवीजन के बारे में भी बताया गया है. इस डिवीजन के मुताबिक ही देशभर में कंपनी से जुड़े अलग-अलग ऑपरेशन परिवार के अलग-अलग लोग चलाते हैं.
हमने मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स की वेबसाइट पर हल्दीराम ग्रुप के सभी ऑपरेशन, जैसे कि Haldiram's Vyanjan Private Limited और Haldiram Bhujiawala Ltd के बारे में भी जानकारी देखी और पाया कि ये सभी अग्रवाल परिवार के ही पास हैं और उनके ही निर्देशन में हैं.
इसके पहले पेप्सिको और केलॉग्स जैसे दिग्गजों ने कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने में रुचि दिखाई थी, हालांकि डील नहीं हो पाई.
13 अप्रैल 2022 को CNBC-TV18 को दिए एक इंटरव्यू में, अग्रवाल ब्रदर्स ने कंपनी को बेचने से जुड़ी कोई बात नहीं की थी. असल में, उन्होंने बताया था कि वो अगल 2-3 सालों में कंपनी का आईपीओ लाने की योजना बना रहे हैं.
क्या है हल्दीराम का इतिहास
'भुजिया बैरन्स: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ हाउ हल्दीराम बिल्ट अ रुपीज 5000-करोड एंपायर' की लेखिका पवित्रा कुमार ने फोर्ब्स के लिए एक आर्टिकल में लिखा है कि इस इंटरप्राइज की यात्रा 1918 में बीकानेर में एक छोटी नमकीन की दुकान से शुरू हुई थी.
गंगा बिशन अग्रवाल ने अपने बचपन के दिन जिस स्नैक्स को बनाते हुए बिताए, उसे हम आज हल्दीराम की भुजिया के नाम से जानते हैं.
आर्टिकल के मुताबिक, 1950 के दशक की शुरुआत में, गंगा बिशन ने अपने बेटों मूलचंद और रामेश्वर लाल के साथ कोलकाता में बिजनेस को फैलाया, जिसे कुछ ही सालों में बड़ी सफलता मिली.
बिजनेस अगले तीन दशकों में नागपुर और फिर दिल्ली में फैल गया.
कुमार ने लिखा, हल्दीराम परिवार में भी, ज्यादातर फैमिली बिजनेस की तरह ही विरासत को लेकर संघर्ष हुआ था. इससे निपटने के लिए, गंगा बिशन ने बिजनेस के टेरिटोरियल डिवीजन (अलग-अलग कामों को अलग-अलग लोगों के बीच बांट देना) का एक अनोखा स्ट्रक्चर विकसित किया. इससे झगड़ा जल्दी ही खत्म हो गया और परिवार का हर सदस्य उन्हें सुपुर्द किए गए बिजनेस को ही कर सकता था.
देशभर में बिजनेस से जुड़े अलग-अलग कामों का स्वामित्व और संचालन गंगा अग्रवाल के पोतों के पास है और बिजनेस का कोई भी मुस्लिम मालिक नहीं है.
हमने पुष्टि के लिए हल्दीराम ग्रुप और 'भुजिया बैरन्स' की लेखिका पवित्रा कुमार से भी संपर्क किया है. प्रतिक्रिया मिलते ही इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.
मतलब साफ है कि ये दावा गलत है कि हल्दीराम का स्वामित्व एक मुस्लिम के पास है.
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