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किसान आंदोलन में नहीं बंटी शराब, फेक है वीडियो

किसान आंदोलन का बताया जा रहा वीडियो पड़ताल में अप्रैल 2020 का निकला, जब संसद में कृषि कानून पास भी नहीं हुए थे

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सोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो के आधार पर दावा किया जा रहा है कि किसान आंदोलन के दौरान शराब बांटी गई. हालांकि, वेबकूफ की पड़ताल में सामने आया कि वीडियो अप्रैल 2020 का है, संसद में कृषि से जुड़े तीन नए कानून पास भी नहीं हुए थे.

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दावा

वीडियो के साथ शेयर किया जा रहा कैप्शन है -  “Farmer protests. Free liquor distribution हिंदी अनुवाद - किसान आंदोलन, मुफ्त में बंटती शराब

Renuka Jain नाम के ट्विटर हैंडल से वीडियो इसी दावे के साथ शेयर किया. इस वीडियो को अब तक 96,000 से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं.

किसान आंदोलन का बताया जा रहा वीडियो पड़ताल में अप्रैल 2020 का निकला, जब संसद में कृषि कानून पास भी नहीं हुए थे
पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें
सोर्स : (स्क्रीनशॉट /ट्विटर)
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वीडियो फेसबुक और ट्विटर पर इसी दावे के साथ शेयर किया जा रहा है.

किसान आंदोलन का बताया जा रहा वीडियो पड़ताल में अप्रैल 2020 का निकला, जब संसद में कृषि कानून पास भी नहीं हुए थे
पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें
सोर्स : (स्क्रीनशॉट /फेसबुक)
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किसान आंदोलन का बताया जा रहा वीडियो पड़ताल में अप्रैल 2020 का निकला, जब संसद में कृषि कानून पास भी नहीं हुए थे
पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें
सोर्स : (स्क्रीनशॉट /फेसबुक)
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पड़ताल में हमने क्या पाया

इनविड टूल के जरिए वीडियो को अलग-अलग की-फ्रेम्स में बांटने के बाद हमने फ्रेम्स को येंडेक्स पर रिवर्स सर्च किया. हमें यूट्यूब पर अप्रैल 2020 में अपलोड किया गया एक वीडियो मिला. इस यूट्यूब वीडियो के विजुअल्स पूरी तरह वायरल वीडियो से मिलते हैं. कैप्शन के मुताबिक, वीडियो 25 मार्च, 2020 को शुरू हुए लॉकडाउन का है.

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हमें कुछ फेसबुक पोस्ट और अन्य यूट्यूब चैनलों पर भी यही वीडियो. ये सभी वीडियो अप्रैल 2020 के दौरान अपलोड किए गए हैं. वीडियो यहां, यहां और यहां देखा जा सकता है.

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ये पुष्टि नहीं हो सकी कि वीडियो असल में किस जगह का है और कब शूट किया गया. लेकिन, चूंकि वीडियो अप्रैल 2020 को ही इंटरनेट पर आ चुका है इसलिए साफ है कि ये संसद में कृषि से जुड़े बिल पास होने से पहले का है. यानी इस वीडियो का दिल्ली सीमा पर चल रहे किसान के प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं है.

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केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर ऐसे ही कई दावे पहले भी भ्रामक साबित हो चुके हैं. कई दावों में किसानों को खालिस्तानी समर्थक बताने की भी कोशिश हुई. हमारी सभी फैक्ट चेक रिपोर्ट्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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