अमेरिका का जो बाइडेन प्रशासन कोविड वैक्सीनों से पेटेंट अधिकार हटाने के समर्थन में आ गया है. ये वैक्सीन प्रोडक्शन बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. भारत जैसे विकासशील और कोरोना संकट से गुजरते देशों के लिए ये खबर राहत देने वाली है. हालांकि, मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई हैं क्योंकि जर्मनी इस कदम के सख्त खिलाफ है. वैक्सीन कंपनियां भी इस फैसले से खुश नहीं हैं और जर्मनी का साथ दे सकती हैं.
अभी तक विश्व व्यापार संगठन(WTO) के वैक्सीन से जुड़े इंटेलेक्चुअल राइट्स को स्थगित करने के प्रस्ताव में अमेरिका रोड़ा बना हुआ था. बाइडेन प्रशासन माना तो जर्मनी में एंजेला मर्केल की सरकार इसके खिलाफ हो गई है.
जर्मनी का ये रुख दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों के बीच टकराव को जन्म दे सकता है. WTO में डेडलॉक के अलावा G7 देशों के समूह में भी रिश्ते खराब होने के आसार हैं.
जर्मनी की आपत्ति क्या?
एंजेला मर्केल सरकार की एक प्रवक्ता ने कहा कि कोविड वैक्सीनों से पेटेंट सुरक्षा हटाने के अमेरिका के सुझाव का वैक्सीन प्रोडक्शन पर गहरा प्रभाव होगा.
“वैक्सीन प्रोडक्शन को सीमित करने में प्रोडक्शन क्षमता और हाई-क्वालिटी स्टैंडर्ड का हाथ है, न कि पेटेंट का. कंपनियां पहले ही पार्टनर्स के साथ काम कर प्रोडक्शन क्षमता बढ़ा रही हैं.”एंजेला मर्केल सरकार की एक प्रवक्ता
प्रवक्ता ने कहा कि इंटेलेक्टुअल प्रॉपर्टी की सुरक्षा इनोवेशन का सोर्स है और ये भविष्य में रहना चाहिए.
जर्मनी का खिलाफ होना बड़ी बात क्यों?
सिर्फ अमेरिका का समर्थन भर वैक्सीनों को मिले पेटेंट अधिकारों को स्थगित नहीं कर सकता. विश्व व्यापार संगठन (WTO) के इस प्रस्ताव का सर्वसम्मति से पास होना जरूरी है.
पिछले कुछ महीनों में WTO की बैठकों में कनाडा, जापान जैसे अमीर देश भी इसका विरोध कर चुके हैं.
इस मुद्दे पर यूरोपियन यूनियन भी बंटा हुआ दिखता है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी अब इसके पक्ष में आ गए हैं. मैक्रों ने कहा कि जो बाइडेन पेटेंट हटाने के विचार के ‘एकदम पक्ष’ में हैं.
वहीं, यूरोपियन कमीशन की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा है कि EU चर्चा के लिए तैयार है. उर्सुला ने किसी एक पक्ष को अपना समर्थन नहीं दिया है. लेकिन फिर भी फ्रांस और जर्मनी जैसे दो बड़े यूरोपियन देशों का अलग-अलग पालों में खड़ा होना बताता है कि ये प्रक्रिया कितनी मुश्किल होने वाली है.
अमेरिका के समर्थन के बाद यूरोप से फ्रांस और इटली पेटेंट अधिकार हटाने के पक्ष में आ चुके हैं. यूरोप के बाहर रूस भी इस पर बातचीत के लिए तैयार है. यूके की सरकार ने कहा है कि वो अमेरिका और WTO के साथ इस पर काम कर रहा है.
वैक्सीन कंपनियों का क्या कहना है?
फाइजर के सीईओ अलबर्ट बॉर्ला ने कहा है कि वो पेटेंट अधिकार हटाने के अमेरिकी प्रस्ताव के खिलाफ हैं. अलबर्ट का कहना है कि मौजूदा स्थिति में ही प्रोडक्शन बढ़ाया जाए.
जर्मनी कंपनी BioNTech के साथ कोविड वैक्सीन बना चुकी फाइजर के सीईओ ने AFP को इंटरव्यू दिया है. इसमें उन्होंने कहा, "मैं पेटेंट सुरक्षा हटाने के पक्ष में बिल्कुल नहीं हूं."
“हमें अपना फोकस इस पर रखना चाहिए कि हम अभी क्या बना सकते हैं, जैसे कि करोड़ों डोज बनाने की क्षमता.”फाइजर के सीईओ
वहीं, मॉडर्ना के सीईओ स्टीफन बैंसल ने कहा है कि अगर पेटेंट अधिकार हटा भी लिए गए, तब भी उन्हें लगता है कि कई देश कंपनी से ही वैक्सीन खरीदेंगे. स्टीफन ने कहा कि बाकी कंपनियों को मैन्युफेक्चरिंग में बहुत दिक्कत आएगी.
“मॉडर्ना जैसी mRNA वैक्सीन तेजी से सप्लाई करने के लिए न ही पर्याप्त प्रोडक्शन साइट हैं और न ही स्किल्ड वर्कर्स. पूरी दुनिया में जल्दी से वैक्सीन पहुंचाने का आसान रास्ता यही है कि जिन कंपनियों के पास जानकारी और टेक्नोलॉजी है, उनकी मैन्युफेक्चरिंग को बढ़ाया जाए.”जायडस कैडिला के एमडी
जायडस कैडिला के एमडी डॉ शार्विल पटेल मानते हैं कि बिना टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के पेटेंट हटाने से कुछ नहीं होगा. CNBC-TV18 के साथ इंटरव्यू में डॉ पटेल ने कहा, "पेटेंट बायोलॉजिकल प्रक्रिया की हर जानकारी को कवर नहीं करते हैं और बिना टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के कोविड वैक्सीन बनाना मुश्किल होगा."
“अगर किसी को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करना है तो मुझे लगता है कि कम से कम 6 महीने लगेंगे. सिर्फ इसी से काम नहीं बन जाएगा, जब आप प्रोडक्शन का स्तर बढ़ाएंगे तो कैपिटल निवेश भी करना होगा और इसमें भी 6-9 महीने लग सकते हैं.”डॉ शार्विल पटेल, जायडस कैडिला के एमडी
फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरर्स ऑफ अमेरिका के अध्यक्ष और चीफ एग्जीक्यूटिव स्टीफन जे उब्ल ने भी इस पर विरोध जताया है. उन्होंने कहा कि "ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है. यह महामारी के प्रति हमारे वैश्विक प्रयासों को कमजोर करेगा और यह हमारी सुरक्षा से समझौता होगा."
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