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क्या चीन में पैंगोलिन की तस्करी के कारण शुरू हुआ कोरोना वायरस?

चीन में पैंगोलिन का शिकार सिर्फ मांस के लिए नहीं होता है

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हाल ही में हुए शोधों से पता चला है कि कोरोना संक्रमण पैंगोलिन से इंसान में आया है. चीन, मलेशिया, वियतनाम, थाईलैंड और सिंगापुर जैसे देशों में इसका इस्तेमाल भोजन और पारंपरिक औषधि के तौर पर भी किया जाता है. चीन में पैंगोलिन का शिकार सिर्फ मांस के लिए नहीं होता है, यहां तो इस जानवर की मांग दवाइयों के लिए भी खूब है.

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पैंगोलिन कोरोना वायरस के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं. मृत पैंगोलिन से लिए गए ऊतकों के नमूने से पता चला है कि कुछ वायरस समान हैं. इसमें भी चमगादड़ में पाए जाने वाले वायरस रहते हैं जो इसे मनुष्यों के लिए विनाशकारी बना सकते हैं.

चीन में खाया जाता है कच्चा मांस

चीन में जंगली और कच्चा मांस खाने का प्रचलन है. यहां माना जाता है कि कच्चा मांस स्वास्थ्यप्रद होने के साथ-साथ स्फूर्तिदायक गुणों से भरपूर होता है. यहां के लोगों का मानना है पैंगोलिन खाना एक राष्ट्रीय परंपरा है. लेकिन उनकी इस धारणा को हाल ही में चुनौती दी गई है.

इस साल की शुरुआत में, वूफी यू नाम के एक चीनी पत्रकार ने टाइम्स में एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें पुराने जंगली जानवरों के मांस, विशेष रूप से सांपों और पैंगोलिन के मांस का सेवन न करने की सलाह दी गई थी. यू ने पाया कि 652 में, तांग राजवंश के दौरान, सन्न सिमियाओ नामक एक रसायन वैज्ञानकि ने हमारे पेट में गुप्त बीमारियों के बारे में चेतावनी दी थी. इसमें कहा गया था कि पैंगोलिन का मांस न खाएं, क्योंकि यह उन्हें नुकसान पहुंचा सकता हैै.” 

एक सहस्राब्दी बाद में, चिकित्सा और हर्बल विद्या के एक संग्रह में चिकित्सक ली शिजेन ने आगाह किया कि पैंगोलिन खाने से दस्त और बुखार हो सकता है. ली शीजेन ने इसमें बताया कि पैंगोलिन दवाओं के लिए उपयोगी हो सकता है, लेकिन भोजन के तौर पर इसका मांस खाने से सावधान रहें.

बीजिंग में चीन जैव विविधता संरक्षण और हरित विकास फाउंडेशन के प्रमुख विख्यात संरक्षणवादी झोउ जिनफेंग ने भी सचेत किया था कि यह परंपरा की बात नहीं है अब तस्करी के चलते यह पैसे की बात हो गई है.

पैंगोलिन आमतौर पर कैमरून, मध्य अफ्रीका के कई अलग-अलग हिस्सों में और एशिया में भी खाया जाता है.

दवा में प्रयोग होने से तस्करी बढ़ी

माना जाता है कि चींटियां खाने वाले इस स्तनपायी जीव की पूरी दुनिया में सबसे अधिक तस्करी होती है और इस कारण इस जीव की सभी आठ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर भी हैं. पैंगोलिन का अवैध व्यापार ज्यादातर एशिया में ही होता है. अफ्रीका में भी इसका व्यापार होता है. पैंगोलिन की खाल से लेकर मांस तक की कीमत हजारों में होती है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी खाल की कीमत 24 हजार रुपये किलो तक है. ये केरेटिन की बनी होती है.

चीनी परंपरा, जैसा कि पुराने ग्रंथों में अंकित है, पैंगोलिन की त्वचा को जमीन या राख में जला कर पाउडर बना दिया जाता है, जो चींटी के काटने, हिस्टीरिया, मलेरिया और बवासीर के इलाज में उपयोगी हो सकता है और महिलाओं में स्तनपान कराने के लिए प्रेरित करता है. हालांकि आधुनिक विज्ञान इन दावों का समर्थन नहीं करता है.
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पैंगोलिन की खाल से बनते हैं जूते

1975 और 2000 के बीच निर्यात किए गए पैंगोलिन की अधिकांश खाल उत्तरी अमेरिका में चली गई, जहां उन्हें हैंडबैग, बेल्ट, पर्स और फैंसी चरवाहे जूते बनाने में प्रयोग किया गया. पैंगोलिन का चमड़ा विशेष रूप से बेशकीमती होता है क्योंकि जानवर की त्वचा लगभग सरीसृप वाली होती है. कई नामी कंपनियां अपने यहां चमड़े के जूते, पर्स और बेल्ट बनाने के लिए पैंगोलिन की खाल का प्रयोग करती हैं.

1994 और 2000 के बीच, चीन और हांगकांग में पारंपरिक चीनी दवा में उपयोग के लिए लगभग उन्नीस टन पैंगोलिन (लगभग सैंतालीस हजार पैंगोलिन) मलेशिया से निर्यात किया गया था.

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