भारत का कोरोना वायरस की दूसरी लहर की वजह से हाल-बेहाल है. अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन, ICU और सामान्य बेडों की कमी हो रही है. हर दिन संक्रमण के आंकड़े नए रिकॉर्ड बना रहे हैं. रूस, जर्मनी, फ्रांस जैसे दुनिया के कई देशों ने भारत की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया है और भारत ने हाथ थामा भी. लेकिन दो देश ऐसे हैं, जिनका हाथ थामना तो दूर भारत ने जवाब तक नहीं दिया है. ये देश स्वाभाविक रूप से चीन और पाकिस्तान हैं.
भारत को अगले कुछ दिनों में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर, वेंटीलेटर जैसे महत्वपूर्ण मेडिकल उपकरण पश्चिमी देशों से मदद के रूप में मिल जाएंगे. लेकिन यही मदद चीन भी देने को तैयार था पर भारत ने अपने पड़ोसी देश को विकल्प के तौर पर भी नहीं देखा.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भारत को मदद की पेशकश दे चुके हैं, लेकिन दिल्ली के सत्ता हलकों में इस पर खामोशी है.
आपात स्थिति और कूटनीति
23 अप्रैल को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लीजियान ने कहा कि बीजिंग महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारतीय लोगों के समर्थन में है. झाओ ने कहा, "चीन की सरकार भारतीय पक्ष की जरूरत के मुताबिक समर्थन और मदद देने को तैयार है." झाओ लीजियान ने कहा कि चीन इस मामले पर भारत के साथ संपर्क में है.
24 अप्रैल को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “भारतीय लोगों के साथ एकजुटता जताने के लिए पाकिस्तान वेंटीलेटर, डिजिटल एक्स-रे मशीन, PPE और बाकी मेडिकल उपकरण से मदद की पेशकश करता है.”
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी कोविड से जूझ रहे लोगों के जल्द स्वस्थ होने की 'कामना' की थी. वहीं, विदेश मंत्री कुरैशी ने कहा था कि मदद के लिए 'आधिकारिक रूप से दिल्ली को पेशकश' दी गई है.
इन सब बयानों और घटनाओं को दो-तीन दिन निकल गए हैं लेकिन दिल्ली की तरफ से चुप्पी है. इसकी वजह क्या राजनीतिक हो सकती है? क्योंकि भारत की अभी स्थिति ये है कि जहां से जितनी मदद मिले, वो अच्छा ही है. ऑक्सीजन और ICU बेड की भारी कमी सबके सामने हैं.
ये वही पाकिस्तान है जो कर्ज में डूबा है, जो चीन से लोन लेकर अर्थव्यवस्था संभाल रहा है, खुद भी कोरोना वायरस से लड़ रहा है, आतंकवाद का गढ़ है. राजनीतिक और भूराजनैतिक समीकरण भी शायद भारत को चीन और पाकिस्तान से मदद लेने में रोक रहे हैं.
काफी मशक्कत के बाद US से मदद मिली
अमेरिका ने वैक्सीन में इस्तेमाल आने वाले कच्चे माल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा रखा था. लंबे समय से भारतीय वैक्सीन मैन्युफेक्चरर इस बैन को हटाने की अपील कर रहे थे. कोरोना की दूसरी वेव से लड़ने के लिए तेजी से वैक्सीनेशन बढ़ाने में इसकी जरूरत थी.
हालांकि, काफी गुहार लगाने के बाद, कई अमेरिकी सांसदों के जो बाइडेन प्रशासन पर दबाव डालने के बाद और दोनों देशों के NSA की बैठक के बाद इस बैन को हटाया गया है. पर इस कदम को अमेरिका बहुत बड़ी मदद जैसे दिखा रहा है. जबकि असल मदद तब हो सकती है, जब अमेरिका Astrazeneca वैक्सीन की उन 4 करोड़ डोज को भारत भेज दे, जो उसके पास स्टॉक में रखी हैं और इस्तेमाल नहीं आ रहीं.
अमेरिका से 300 से ज्यादा ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर भी भारत लाए जा रहे हैं.
रूस ने फिर दिया साथ
रूस भी जल्द ही भारत में कोविड संबंधी सहायता पहुंचाने वाला है. इसके लिए रूस खास उड़ानों के जरिए ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर और जनरेटर दिल्ली पहुंचाएगा.
द हिंदू की खबर कहती है कि दिल्ली और मॉस्को के बीच हुई बातचीत के आधार पर ये मदद इस हफ्ते तक आ जाएगी. रूस हल्के कोविड संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल आने वाली दवाई फावीपिरावीर भी भेजेगा.
रूस एक बार फिर भारत की मदद के लिए आगे आया है और द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत किया है. हालांकि, एक नैरेटिव ये भी चल रहा है कि चीन के मदद देने के बाद ही रूस और अमेरिका भारत का साथ दे रहे हैं. ये नैरेटिव चीन की मीडिया आगे बढ़ा रहा है.
क्योंकि भारत QUAD में अमेरिका के साथ सहयोग कर रहा है तो चीन का मीडिया बाइडेन प्रशासन को घेरने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है. चीन की सरकार का मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स अपने लेखों में अमेरिकी प्रशासन को 'स्वार्थी' कहने से भी नहीं चूक रहा.
आपसी सहयोग से ही जीत सकेंगे जंग
कोरोना वायरस एक महामारी है और ये दुनियाभर में फैली है. अगर दुनिया को एक परिवार के जैसा माना जाता है तो इस महामारी को हराने में सभी सदस्यों का सहयोग जरूरी है.
दुनिया का कोई एक देश इस महामारी पर जीत हासिल करने में शायद ही कामयाब हो पाएगा. संक्रमण कम हो सकता है लेकिन पूरी दुनिया से इसे मिटने के लिए आपसी सहयोग की जरूरत होगी ही. भारत को जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से मिल रही मदद इसी सोच को पुख्ता करती है.
चाहें वो भारत का 'आत्मनिर्भर' सपना हो या US की 'अमेरिका फर्स्ट' पहल, एक महामारी सामने होने पर इसे किनारा करके हाथ थामने की जरूरत पड़ेगी ही.
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