जांबिया(Zambia) के पहले राष्ट्रपति,अफ्रीकी राष्ट्रवाद के चैंपियन और दक्षिणी अफ्रीकी के क्षेत्र में श्वेत औपनिवेशिक शासन को समाप्त करने वाले अग्रणी नेताओं में शुमार केनेथ कौंडा(Kenneth Kaunda) का निधन 97 वर्ष की आयु में गुरुवार को हो गया.1960 के दशक में आजादी के संघर्ष में अपने अहिंसक एक्टिविज्म के लिए 'अफ्रीका के गांधी' के रूप में जाने जाने वाले केनेथ कौंडा के निधन की खबर जांबिया के राष्ट्रपति एडगर लुंगु(Edgar Lungu) ने गुरुवार की शाम फेसबुक पोस्ट के माध्यम से दी.
प्रधानमंत्री मोदी ने केनेथ कौंडा के निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए ट्विटर पर लिखा "विश्व के नेता राजनीतिक डॉ. केनेथ डेविड कौंडा के निधन से दुखी हूं.उनके परिवार के सदस्यों और जांबिया की जनता के प्रति मैं संवेदना प्रकट करता हूं"
स्कूल टीचर से जांबिया के पहले राष्ट्रपति तक का सफर
केनेथ डेविड कौंडा का जन्म 28 अप्रैल 1924 को तब के नॉर्दन रोडेशिया(आज जांबिया) और कांगो के बॉर्डर के पास के मिशन स्टेशन में हुआ था. उनके पिता स्कॉटलैंड मिशनरी चर्च के पादरी और शिक्षक थे. पिता की मृत्यु तभी हो गई जब कौंडा की उम्र बहुत कम थी लेकिन युवा कौंडा की एकेडमिक क्षमता ने उन्हें नॉर्दन रोडेशिया में बनने वाले पहले सेकेंडरी स्कूल में स्थान दिलाया और बाद में वे एक शिक्षक बन गए.
1950 के दशक की शुरुआत में नॉर्दन रोडेशिया अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के माध्यम से वो पहली बार राजनीति में आए. 1955 और 1959 में थोड़े समय के लिए जेल की यात्रा भी करनी पड़ी और जब वो जेल से बाहर आए तब वह नई बनी पार्टी 'यूनाइटेड नेशनल इंडिपेंडेंस पार्टी' के अध्यक्ष चुने गए. जब नॉर्दन रोडेशिया ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन से आजाद हुआ तो कौंडा 1964 में पहला आम चुनाव जीतकर वहां के पहले राष्ट्रपति बने और देश का नया नाम 'जांबिया' रखा.
'अफ्रीका के गांधी' से 'सत्तावादी' तक
अपने कार्यकाल के पहले ही साल कौंडा ने जांबिया के अंदर शिक्षा व्यवस्था को तेजी से फैलाना शुरू किया. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइमरी स्कूलों को स्थापित किया तथा हर बच्चे को किताब तथा खाना उपलब्ध कराया. उनकी सरकार ने नए विश्वविद्यालयों और मेडिकल स्कूलों की स्थापना की. कौंडा ने जांबिया के स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत किया ताकि बहुसंख्यक अश्वेत जनसंख्या को स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें.
कौंडा ने अपने 27 साल के राष्ट्रपति कार्यकाल में सिर्फ जांबिया को ही श्वेत औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के लिए संघर्ष नहीं किया. उन्होंने पड़ोसी देशों, तब के रोडेशिया(अब जिम्बाब्वे) और दक्षिण अफ्रीका की आजादी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई .उन्होंने जांबिया की जमीन का प्रयोग जिम्बाब्वे के राष्ट्रवादी संगठनों तथा दक्षिण अफ्रीका में अवैध घोषित हो चुके अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के लिए अंडरग्राउंड बेस के रूप में होने दिया.
आखिरकार कौंडा ने घरेलू विरोध के बावजूद दक्षिण अफ्रीकी सरकार से समझौता करके अपार्थाइड शासन के विरोधी नेल्सन मंडेला को जेल से रिहा कराने तथा अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस को वैध घोषित कराने में सफलता प्राप्त की.अफ्रीकी क्षेत्र में अपने इन्हीं अहिंसक आजादी की लड़ाई के कारण उन्हें 'अफ्रीका का गांधी' भी कहा जाता है.
समय के साथ कौंडा सत्तावादी भी बने और 1973 में उन्होंने जांबिया को 'वन पार्टी स्टेट' बना दिया.धीरे धीरे अपने पर्सनालिटी कल्ट को बढ़ाया और विपक्ष को पूरी तरह से समाप्त कर दिया. उनका कहना था कि उस समय जांबिया के पास सिर्फ 'वन पार्टी रूल' का ही विकल्प था क्योंकि तब उसे श्वेत शासित दक्षिणी अफ्रीका और रोडेशिया के हमलों का सामना करना पड़ रहा था.
1980 के अंत में कौंडा के शासन में दरारें दिखने लगी .उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयासों की खबरें बाहर आने लगी और फिर उन्होंने देश के अधिकांश हिस्सों में सुबह से शाम तक कर्फ्यू लगा दिया. अगले 10 वर्षों के दौरान उनकी सरकार को गिराने के दो और प्रयास किए गए जिनमें से आखरी 1990 की गर्मियों में राजधानी लुसाका और कॉपरबेल्ट क्षेत्र में खाने से जुड़े दंगों के बाद हुआ. 3 दिन के अंदर दंगों में 20 से ज्यादा लोग मारे गए.सेना ने जांबिया यूनिवर्सिटी में घुसकर असंतोष को दबाने के लिए यूनिवर्सिटी को बंद करा दिया.
रियल डेमोक्रेसी की मांग जब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेज होने लगी तब उन्होंने 31 अक्टूबर 1991 को नए चुनाव की घोषणा की .सबके उम्मीद के मुताबिक वोटरों ने उन्हें अस्वीकार करते हुए मल्टी पार्टी लोकतंत्र को स्वीकार किया और फेड्रिक चिलुबा के नेतृत्व में एक नई सरकार बनी.
HIV और एड्स के खिलाफ जंग
बाद में उन्होंने अपना एक्टिविज्म HIV और एड्स से लड़ने में तब शुरू किया जब उनके बेटे की मौत एड्स से जुड़े रोग के कारण हो गयी. दरअसल वह पहले अफ्रीकी नेता थे जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया कि उनके बेटे की मौत एड्स से जुड़े रोग के कारण हुई है.
2005 में जब वह भारत आए तब उन्होंने कहा था "काश मैं पॉजिटिव टेस्ट हो जाता. इससे मुझे एड्स से जुड़े कलंक और अव्यवस्था से लड़ने में काफी मदद मिलती". उन्होंने इससे लड़ने के लिए 'कौंडा चिल्ड्रन ऑफ अफ्रीका फाउंडेशन' बनाया, जिसके वह चेयरमैन थे. 78 वर्ष की उम्र में खुद का एड्स टेस्ट कराया ताकि जांबिया के दूसरे लोगों को भी ऐसा करने का प्रोत्साहन मिले.
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