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भारत में किसान आंदोलन पर क्या करेगा बाइडेन प्रशासन- मेहदी हसन

मेहदी हसन ने अपने शो में ट्रंप शासन से की भारत के माहौल की तुलना

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ब्रिटिश-अमेरिकी पत्रकार मेहदी हसन ने शुक्रवार, 5 फरवरी को भारत के किसान आंदोलन को लेकर सिंगर रिहाना की टिप्पणी का समर्थन किया. हसन ने अपने शो में कहा, "रिहाना सही हैं, हमें इस बारे में बात करनी चाहिए."

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बता दें कि रिहाना ने हाल ही में ट्विटर पर किसान आंदोलन से संबंधित सीएनएन की एक खबर शेयर करते हुए लिखा था, ‘’हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे?’’

एनबीसी के पीकॉक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर 'द मेहदी हसन शो' के दौरान हसन ने कहा कि कैसे मामला “किसानों के प्रदर्शन से आगे चला गया है'' और “हाल के सालों में भारत सरकार के अधिनायकवाद की तरफ बढ़ने में तेजी आई है.''

विरोध प्रदर्शनों को 5:20 मिनट लंबा एक सेगमेंट समर्पित करते हुए, हसन ने न केवल आंदोलन के मुख्य मुद्दों की बात की, बल्कि इस पर भी जोर दिया कि “प्रदर्शनों पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया से हमें चिंतित होना चाहिए.’’

मुख्य रूप से अमेरिकी दर्शकों से बात करते हुए, हसन ने भारत में मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक माहौल की तुलना अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन के माहौल से की.

उन्होंने कहा, ‘’भारत में जो हो रहा है और अमेरिका में ट्रंप के शासनकाल में हमने जिसका अनुभव किया, उसके बीच एक साझा डीएनए है.’’

मेहदी ने यह भी पूछा कि अब जो बाइडेन क्या करेंगे? क्योंकि अमेरिकी कूटनीति का मकसद होना चाहिए आजादी और अधिकारों की रक्षा. मेहदी ने आगे कहा- ‘’नॉर्थ कोरिया और ईरान पर तो प्रतिबंध लगाना आसान है लेकिन भारत के साथ तालमेल बिठाना एक चुनौती है क्योंकि ट्रंप से लेकर ओबामा तक मोदी को गले लगा चुके हैं. मैं यह नहीं कह रहा कि भारत के खिलाफ नीतियां बनें लेकिन ऐसी नीतियां हों जो लोकतंत्र की समर्थक हों.’’

नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं किसान

भारत में बड़ी संख्या में किसान कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 का विरोध कर रहे हैं.

इन तीनों कृषि कानूनों को केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में एक बड़े सुधार के रूप में पेश किया है और कहा है कि इससे बिचौलिये हट जाएंगे और किसान देश में कहीं भी अपनी उपज बेच पाएंगे.

हालांकि किसान संगठनों को आशंका है कि इन कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और मंडी व्यवस्था खतरे में आ जाएगी और किसानों को बड़े औद्योगिक घरानों पर निर्भर छोड़ दिया जाएगा. मगर सरकार ने कहा है कि एमएसपी और मंडी व्यवस्था बनी रहेगी.

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