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9/11 Attack:बुश प्रशासन और खुफिया एजेंसियों की 4 गलतियां पड़ीं भारी

9/11 टाला जा सकता था

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11 सितंबर 2001 की सुबह अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (George Bush) ने अपने दिन की शुरुआत रोजाना की तरह बाइबिल पढ़ कर और जॉगिंग से की थी. बुश फ्लोरिडा में थे. उन्हें एक स्कूल के बच्चों से मिलना था. जैसे ही वो स्कूल में गए, उन्हें बताया गया कि एक विमान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (World Trade Center) के नॉर्थ टॉवर में क्रैश हुआ है. समय था सुबह के 8:45. बुश को लगा ये एक दुर्घटना हुई है. वो बच्चों के साथ पढ़ने में मशगूल हो गए. कुछ ही देर बाद बुश के चीफ ऑफ स्टाफ एंड्रू कार्ड ने उनसे कहा, "एक दूसरा विमान साउथ टॉवर में क्रैश हुआ है. अमेरिका पर हमला हुआ है." हालांकि, बुश ने बच्चों के सामने एकदम से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन अगले कुछ घंटे उनके लिए बहुत मुश्किल साबित होने वाले थे. ये सबकुछ अचानक नहीं हो रहा था. बुश प्रशासन को इसकी चेतावनी दी गई थी, वो भी बार-बार.

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9/11 के सीरियल हमले

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टॉवर में विमानों के क्रैश होने के बाद, तीसरा विमान अमेरिका के रक्षा मंत्रालय के हेडक्वार्टर पेंटागन की इमारत में क्रैश करता है. चौथा विमान पेंसिलवेनिया के शैंक्सविले इलाके के मैदानों में गिर जाता है. करीब 3000 लोगों की मौत हो जाती है और 6000 से ज्यादा घायल होते हैं. ये अमेरिका क्या दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला था. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टॉवर से कई लोग जान बचाने के लिए भी कूदते हैं, लेकिन वो भूल गए कि इमारत कई हजार फुट ऊंची है.

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    पेंसिल्वेनिया में जहां यूनाइटेड एयरलाइन्स फ्लाइट 93 क्रैश हुआ(फोटो: Wikimedia Commons) 
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    पेंटागन में विमान क्रैश के बाद की स्थिति  (फोटो: Wikimedia Commons) 
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    पेंटागन में विमान क्रैश के बाद की स्थिति  (फोटो: Wikimedia Commons) 
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    वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में विमान क्रैश के बाद लगी आग  (फोटो: Wikimedia Commons) 
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    वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में विमान क्रैश(फोटो: Wikimedia Commons) 
ओसामा बिन लादेन (Osama Bin Laden) ने अपनी धमकी को सच कर दिखाया था. उसके संगठन अल-कायदा ने अमेरिका को जमीन, पानी और हवा तीनों जगह पर चोट दी थी. जमीन पर तंजानिया और केन्या में अमेरिकी दूतावासों पर हमला करके और पानी में गल्फ ऑफ एडेन में खड़े USS कोल डेस्ट्रॉयर पर हमला करके. इन दोनों हमलों को रोकने का अमेरिका के पास कोई मौका नहीं था, लेकिन 9/11 टाला जा सकता था. 

बुश प्रशासन की लापरवाही

जॉर्ज बुश जनवरी 2001 में ही राष्ट्रपति बने थे. लेकिन उनके पास अल-कायदा से निपटने के लिए समय की कमी नहीं थी और न ही जानकारी की. जब भी नया राष्ट्रपति चुना जाता है तो वो खुफिया एजेंसियों के साथ बैठक करता है. बुश ने भी जनवरी की शुरुआत में ऐसी ही बैठक की थी. तब CIA के डायरेक्टर जॉर्ज टेनेट और उनके डिप्टी जेम्स पैविट ने ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी सुरक्षा के लिए तीन सबसे बड़े खतरों में शामिल किया था. उसी महीने नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में काउंटरटेररिज्म एक्सपर्ट रिचर्ड क्लार्क ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) कोंडोलीजा राइस के सामने अल-कायदा पर अपनी बनाई एक योजना पेश की.

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तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) कोंडोलीजा राइस
(फोटो: Wikimedia Commons) 
लेकिन क्लार्क और टेनेट दोनों ही बुश प्रशासन के रवैये और प्रतिक्रिया से परेशान हो गए थे. क्लार्क ने अपनी किताब ‘Against All Enemies’ में लिखा है कि NSA के साथ बैठक के दौरान उन्हें राइस के चेहरे के हावभाव देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने ‘पहली बार अल-कायदा के बारे में सुना हो.’ अप्रैल 2001 में एक और बैठक हुई जिसमें डिप्टी रक्षा सचिव पॉल वोल्फोविट्ज शामिल हुए थे. क्लार्क ने किताब में बताया कि वोल्फोविट्ज ने बैठक की शुरुआत ओसामा बिन लादेन के नाम से करने पर आपत्ति जताई थी. रिचर्ड क्लार्क ने तंग आकर कुछ दिनों बाद अपने ट्रांसफर का निवेदन तक कर दिया था.  

मई 2001 तक अमेरिका में आतंकी हमले का खतरा इतना बढ़ गया था कि CIA के काउंटरटेररिज्म सेंटर के प्रमुख कॉफर ब्लैक ने कहा था, "हम पर हमला होने वाला है, जोरदार हमला होने वाला है. और बहुत सारे अमेरिकी मारे जाएंगे."

हालांकि, बुश प्रशासन के लादेन पर गैर-जिम्मेदाराना रवैये का सबसे बड़ा उदाहरण 10 जुलाई को हुई एक बैठक से मिलता है. इस दिन CIA में अल-कायदा को समर्पित ALEC स्टेशन के प्रमुख रिचर्ड ब्ली तेज कदमों से कॉफर ब्लैक के कमरे में दाखिल होते हैं और कहते हैं, "चीफ बहुत हो गया, सब कुछ गलत हो रहा है." ब्लैक और ब्ली CIA डायरेक्टर जॉर्ज टेनेट के पास जाते हैं और स्थिति समझाते हैं. टेनेट समझ जाते हैं कि व्हाइट हाउस के साथ इमरजेंसी बैठक करनी पड़ेगी और वो भी उसी दिन. टेनेट NSA कोंडोलीजा राइस को फोन मिलाते हैं और कहते हैं, "कोंडी, मुझे अभी तुमसे मिलना है.

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CIA के तत्कालीन डायरेक्टर जॉर्ज टेनेट
(फोटो: Wikimedia Commons) 

टेनेट, ब्लैक और ब्ली व्हाइट हाउस में राइस से मिलते हैं और ब्ली बैठक की शुरुआत में ही कहते हैं, "आने वाले हफ्तों या महीनों में अमेरिका पर बड़े हमले होंगे. हमले बहुत प्रभावशाली होंगे. वो कई हो सकते हैं. अल-कायदा का इरादा अमेरिका की बर्बादी है." इस पर कोंडोलीजा राइस कहती हैं कि 'उन्हें क्या करना चाहिए?' ब्लैक और टेनेट उन्हें समझाते हैं कि अमेरिका को क्या करना चाहिए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती है.

CIA डायरेक्टर टेनेट याद करते हैं कि जुलाई के आखिर में उन्हें एक सबसे बड़ी चेतावनी मिली थी. टेनेट ने पत्रकार क्रिस व्हिपल से बातचीत में कहा था, “CIA हेडक्वार्टर्स के डायरेक्टर कॉन्फ्रेंस रूम में सब लोग बैठे सोच रहे थे कि ये हमले कैसे होंगे. मैं मरते समय तक ये बात नहीं भूलूंगा कि रिचर्ड ब्ली ने सबकी तरफ देखा और कहा ‘वो यहां आ रहे हैं.’ वो सन्नाटा बहरा करने वाला था.” 
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खुफिया एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी

2001 में CIA लगातार व्हाइट हाउस को लादेन और अल-कायदा (Al-Qaeda) से जुड़ी जानकारी, हमले के खतरे और की जाने वाली कार्रवाई पर सलाह दे रहा था. लेकिन, साथ ही वो अपना मुख्य काम दूसरे देशों से इंटेलिजेंस इकट्ठा करने पर भी लगा हुआ था. और 9/11 हमले से पहले उसके पास इतनी जानकारी थी, जो इन हमलों को रोकने के लिए काफी थी. फिर भी ये हमले हुए. इसकी वजहें कई हैं, लेकिन रिचर्ड ब्ली से लेकर जॉर्ज टेनेट तक इस बात को मानते हैं कि 2001 के अगस्त तक CIA खुफिया जानकारी के समंदर में डूब गया था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस सबको वो कैसे समझे और आगे बढ़ाए.

फिर भी कुछ जानकारियां ऐसी थीं जो FBI को दी जानी चाहिए थीं. अगर ऐसा किया गया होता तो बहुत हद तक मुमकिन है कि 3000 लोगों की मौत नहीं होती.

इन सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि आधिकारिक तौर पर CIA अमेरिका के अंदर जासूसी या कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है. वहीं, FBI अमेरिका में कार्रवाई कर सकता है और देश से बाहर तब काम करती है जब अमेरिकियों पर हमला हुआ हो.

पहली गलती

9/11 Attack से पहले काफी चीजें हो रही थी. और इन सबके बारे में CIA को पल-पल की खबर थी. 7 अगस्त 1998 में तंजानिया और केन्या में अमेरिकी दूतावास में धमाके हुए. FBI दोनों जगह जांच कर रही थी. हमले के 3 दिन बाद FBI ने मुहम्मद अल-ओवहली को पकड़ा. उसने पूछताछ में एक फोन नंबर दिया जिसपर उसने धमाके के ठीक बाद कॉल किया था. ये नंबर यमन के अहमद अल-हादा का था. हादा 9/11 हमले के आरोपी खालिद अल-मिहधार का ससुर था.

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खालिद अल-मिहधार
(फोटो: Wikimedia Commons) 
अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी (NSA) ने हादा के नंबर की ट्रैकिंग शुरू की. इससे FBI ने अल-कायदा के नेटवर्क का मैप तैयार किया. हादा का ये नंबर अल-कायदा का स्विचबोर्ड था. 1999 में NSA ने एक कॉल टैप की जिसमें मिहधार का संपर्क अल-कायदा से साफ पता चल रहा था, लेकिन ये बात FBI को नहीं बताई गई. 

दूसरी गलती

सऊदी इंटेलीजेंस ने CIA को आगाह किया था कि खालिद अल-मिहधार और 9/11 हमले का एक और दोषी और मिहधार का दोस्त नवाफ अल-हाजमी, अल-कायदा के सदस्य हैं. दिसंबर 1999 में CIA को यमन के उस अल-कायदा स्विचबोर्ड से मलेशिया में होने वाली एक बैठक का पता लगा. मिहधार और हाजमी जनवरी 2000 में इस मीटिंग में शामिल होंगे, ये बात भी CIA को पता थी.

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नवाफ अल-हाजमी
(फोटो: Wikimedia Commons) 
CIA एजेंट्स ने दुबई में मिहधार के होटल के कमरे में चुपके से एंट्री ली. उसके पासपोर्ट की फोटो ली गई. मिहधार के पास अमेरिका का मल्टी-एंट्री वीजा था. ये बात CIA ने FBI को नहीं बताई. एजेंसी ने इसकी जानकारी विदेश मंत्रालय को भी नहीं दी, जो इस वीजा को वापस ले सकता था, या रद्द कर सकता था. इसकी जानकारी इमीग्रेशन को भी नहीं दी गई, जो मिहधार को वॉच-लिस्ट पर रखते और अमेरिका में घुसने से रोक लेते. 
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तीसरी गलती

जनवरी 2000 में मलेशिया में हुई वो बैठक असल में अल-कायदा का समिट जैसा था. उसी बैठक में अक्टूबर 2000 में हुए USS Cole डेस्ट्रॉयर और 9/11 हमले की योजना पर बातचीत हुई. CIA ने मलेशियन इंटेलिजेंस से उस बैठक का सर्विलांस कराया. लेकिन, उस बैठक की बातचीत को रिकॉर्ड नहीं किया गया. अगर ऐसा किया गया होता, तो CIA को दोनों हमलों के बारे में पता चल जाता.

बैठक में शामिल हुए लोगों की ली गई तस्वीरें CIA ने FBI के साथ साझा नहीं की. जब मिहधार के अमेरिकन वीजा और मलेशिया की बैठक का केबल CIA आया, तो वहां काम कर रहे एक FBI अफसर ने इसे ब्यूरो के साथ शेयर करने की इजाजत मांगी. उसे इजाजत नहीं दी गई और कहा गया, “ये FBI का मामला नहीं है.” 

चौथी गलती

इस बैठक के 3 महीने बाद थाईलैंड की इंटेलिजेंस ने CIA को बताया कि नवाफ अल-हाजमी 15 जनवरी को ही अमेरिका के लॉस एंजेलेस पहुंच गया है. CIA ने हाजमी की उड़ान की जानकारी तक नहीं देखी. अगर ऐसा किया होता तो उन्हें पता चल जाता कि हाजमी के साथ मिहधार भी अमेरिका पहुंच चुका है. दोनों लॉस एंजेलेस से सैन डिएगो चले गए, जहां वो फ्लाइंग स्कूल में प्रशिक्षण लेने लगे. इस बीच मिहधार लगातार यमन में हादा को फोन करता रहा.

CIA ने नवाफ अल-हाजमी के अमेरिका आने की जानकारी भी FBI को नहीं दी. FBI को अगर ये जानकारी मिली होती, तो वो उसका पीछा करने से लेकर पकड़ने तक सब कुछ कर सकते थे. जब यमन में हादा के पास मिहधार का फोन आता था तो NSA को पता होता था. ये जानकारी भी FBI के साथ साझा नहीं की गई.

9/11 हमले से लगभग 2 साल पहले अल-कायदा के आतंकी अमेरिका में घुस चुके थे और CIA को इसकी पूरी जानकारी थी. हमले के बाद एजेंसी के इंस्पेक्टर जनरल ने जब जांच की तो पता लगा कि अल-कायदा के अमेरिका में होने की जानकारी CIA में करीब 60 लोगों को थी, लेकिन FBI के साथ इसे शेयर करना किसी ने मुनासिब नहीं समझा.  

हालांकि, FBI के पास भी हमले रोकने का मौका था. जुलाई 2001 में फीनिक्स में एक FBI एजेंट ने अमेरिकी फ्लाइट स्कूलों में भर्ती हुए अरब लोगों के इंटरव्यू की सलाह दी थी. इसके एक महीने बाद FBI के मिनेसोटा ऑफिस ने जकारियास मुसावी की आक्रामक रूप से जांच करने की इजाजत मांगी. FBI ने दोनों ही प्रस्तावों को नहीं माना था. अगर ऐसा किया जाता तो फ्लाइट स्कूलों में ट्रेनिंग ले रहे आतंकियों के बारे में पता चल सकता था. वहीं, मुसावी भी फ्लाइट स्कूल में ट्रेनिंग ले रहा था और 9/11 हमले में शामिल होने वाला था. बाद में अल-कायदा को उस पर विश्वास नहीं रहा और उसे शामिल नहीं किया गया. लेकिन, अगर उसकी जांच होती तो ये सब बातें सामने आ सकती थीं.

बुश प्रशासन का रवैया और लापरवाही और CIA, FBI का उन्हें मिली जानकारी पर ठीक तरह से कार्रवाई नहीं कर पाने का नतीजा लादेन की सफलता के रूप में सामने आया था. अगर ये गलतियां नहीं होतीं और प्रशासन ने CIA की जानकारियों और अल-कायदा के खतरे को समझा होता तो शायद 3000 लोगों की जान बच सकती थी.

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