श्रीलंका के संसदीय चुनावों में श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) की बड़ी जीत के साथ ही वहां की सत्ता में राजपक्षे परिवार का दबदबा नए स्तर को छूता दिख रहा है. एसएलपीपी ने 225 सदस्यीय संसद में 145 सीटें जीती हैं, जबकि उसके सहयोगी दलों को 5 सीटें मिली हैं. इस तरह गठबंधन को दो-तिहाई बहुमत हासिल हो गया है. सत्ता पर पकड़ और मजबूत करने को लेकर संविधान संशोधन के लिए यह बहुमत राजपक्षे परिवार के लिए काफी अहम माना जा रहा है. इन संशोधन में राष्ट्रपति पद पर रहने से संबंधित संवैधानिक सीमा से जुड़ा बदलाव भी हो सकता है.
इस बीच, श्रीलंका के अब तक के राजनीतिक इतिहास में राजपक्षे परिवार के सबसे अहम किरदार महिंदा राजपक्षे ने रविवार को एक ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर में चौथी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है. महिंदा जब देश के राष्ट्रपति थे, तब उन पर देश को परिवार के प्रतिष्ठान की तरह चलाने के आरोप लगे थे. हालांकि, बीच में श्रीलंका की राजनीति ने ऐसी करवट ली थी कि सत्ता में राजपक्षे परिवार के दबदबे को बड़ा नुकसान पहुंचा था.
चलिए, महिंदा राजपक्षे का जिक्र करते हुए समझने की कोशिश करते हैं कि श्रीलंका में एक बार फिर राजपक्षे परिवार का दबदबा कैसे कायम हुआ और राजपक्षे परिवार के बाकी अहम चेहरे कौन हैं.
महिंदा राजपक्षे
महिंदा राजपक्षे महज 24 साल की उम्र में ही संसद पहुंच गए थे. साल 1977 में अपनी सीट गंवाने के बाद उन्होंने कानून के करियर पर ध्यान देना शुरू कर दिया था. हालांकि 1989 में वह फिर से संसद पहुंच गए.
महिंदा राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा के शासनकाल में श्रम मंत्री (1994-2001), मत्स्य पालन और जल संसाधन मंत्री (1997-2001) रहे थे. कुमारतुंगा ने उन्हें अप्रैल 2004 के आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. उस चुनाव में यूनाइटेड पीपल्स फ्रीडम अलायंस की जीत हुई थी.
महिंदा को साल 2005 में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना गया था. चुनाव में जीत के बाद उन्होंने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) को खत्म करने के अभियान को तेजी दी.
इसके बाद साल 2009 में लिट्टे के साथ करीब 30 साल चले खूनी संघर्ष को खत्म करते हुए महिंदा सिंहली बौद्ध समुदाय के बीच लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गए थे. इसका फायदा उन्हें 2010 के चुनाव में भी मिला, जब वह एक बार फिर राष्ट्रपति चुने गए. हालांकि महिंदा पर असंतोष की आवाज को दबाने के भी आरोप लगे थे.
महिंदा ने 2005 से 2015 तक राष्ट्रपति रहते हुए अपनी स्थिति को मजबूत किया था. इस दौरान संविधान में संशोधन किया गया, जिससे वह तीसरी बार राष्ट्रपति बन सकें और उनके तीन भाई- गोटबाया, बासिल और चमल को भी प्रभावशाली पद मिल सकें.
मगर साल 2014 में महंगाई और भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच देश में महिंदा की लोकप्रियता कम होने लगी. कहा जाता है कि उस वक्त महिंदा को डर था कि भविष्य में उनके लिए स्थिति और मुश्किल न हो जाए, इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने एक और बार राष्ट्रपति बनने के मकसद से जल्द राष्ट्रपति चुनाव करा लिए.
साल 2015 के इस चुनाव में महिंदा को अपने पूर्व सहयोगी मैत्रीपाला सिरीसेना से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद संसद ने 2015 में किसी शख्स के दो बार ही राष्ट्रपति रहने से संबंधित संवैधानिक सीमा को बहाल कर दिया.
इस सीमा की वजह से महिंदा फिर राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ पाए. हालांकि फिलहाल जो गोटबाया राजपक्षे देश के राष्ट्रपति हैं, वह महिंदा के छोटे भाई हैं.
कहा यह भी जाता है कि राजपक्षे 2015 का चुनाव तमिलों और मुसलमानों के वोटों की वजह से हारे क्योंकि सिंहली बौद्धों में उनकी लोकप्रियता के सामने कोई दूसरा नेता नहीं था.
साल 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति सिरीसेना ने एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को हटाकर महिंदा को कुछ वक्त के लिए प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. हालांकि बाद में महिंदा और संसद में उनके समर्थकों ने सत्तारूढ़ पार्टी को छोड़कर एलएसपीपी का दामन थाम लिया. फिर वह औपचारिक तौर पर सदन में नेता प्रतिपक्ष चुने गए.
गोटबाया राजपक्षे
21 अप्रैल, 2019 को ईस्टर के मौके पर हुए बम विस्फोटों के बाद श्रीलंका की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ. राष्ट्रपति सिरीसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की सरकार पर सुरक्षा के मोर्चे पर नाकाम रहने के आरोप लगने लगे.
इसी बीच एसएलपीपी ने गोटबाया राजपक्षे की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का ऐलान किया, जो लिट्टे के खिलाफ असैन्य संघर्ष के दौरान देश के डिफेंस सेक्रेटरी रहे थे.
1992 में अमेरिका जाने से पहले तक वह श्रीलंकाई सेना में कर्नल थे और उत्तर में लिट्टे के खिलाफ युद्ध के मैदान में थे. 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में गोटबाया की जीत राजपक्षे परिवार को फिर से देश की सत्ता में ले आई.
बासिल राजपक्षे
श्रीलंका के हालिया संसदीय चुनावों में जिस एसएलपीपी ने भारी जीत हासिल की है, उसकी स्थापना महिंदा के छोटे भाई बासिल राजपक्षे ने ही की थी. बासिल फिलहाल एसएलपीपी के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं. वह अपने भाई महिंदा के शासनकाल में आर्थिक विकास मंत्री भी रह चुके हैं. बासिल को एक अच्छा राजनीतिक रणनीतिकार माना जाता है.
चमाल राजपक्षे
महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति रहने के दौरान उनके बड़े भाई चमाल श्रीलंका की संसद के स्पीकर (2010-15) रहे थे. साल 2019 में गोटबाया राजपक्षे के राष्ट्रपति बनने के बाद नई सरकार में चमाल को कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय दिया गया.
इसके अलावा उन्हें रक्षा राज्य मंत्री और इंटरनल ट्रेड, फूड सिक्योरिटी और कंज्यूमर वेलफेयर का मंत्री भी बनाया गया. इस सरकार में उनके भाई, प्रधानमंत्री महिंदा को वित्त और शहरी विकास मंत्रालय सहित बाकी जिम्मेदारियां भी मिलीं.
नमल राजपक्षे
34 साल के नमल राजपक्षे, जो एक वकील, राजनेता और महिंदा के सबसे बड़े बेटे हैं, उन्हें राजपक्षे परिवार के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है. नमल को 5 अगस्त को हुए आम चुनाव में हम्बनटोटा से जीत मिली है. इससे पहले अपने पिता के सत्ता में दशक के दौरान, नमल काफी प्रभावशाली थे, हालांकि उनके पास किसी विभाग की जिम्मेदारी नहीं थी.
पहले के प्रशासन ने उन पर मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य आरोप लगाए, जिसके लिए उन्हें अब भी मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है. माना जा रहा है कि उन्हें नई सरकार में कोई अहम जिम्मेदारी मिल सकती है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि महिंद नमल को भविष्य में राष्ट्रपति बनने के लिए भी तैयार कर रहे हैं.
'डेली मिरर' के मुताबिक, नया मंत्रिमंडल सोमवार को शपथ ग्रहण करेगा, इसके बाद राज्य और उप मंत्री शपथ लेंगे.
श्रीलंका में राजपक्षे परिवार के दबदबे का भारत पर क्या होगा असर?
श्रीलंका की सत्ता में राजपक्षे परिवार का दबदबा एक बार फिर ऐसे समय में बढ़ा है, जब भारत और चीन के बीच तनाव चल रहा है. महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति रहने के वक्त से ही राजपक्षे परिवार को चीन की तरफ झुकाव रखने वाला माना जाता है. महिंदा ने चीन के साथ कई बुनियादी संरचना निर्माण संबंधी समझौते किए थे, जिससे भारत और पश्चिमी देशों की चिंताएं बढ़ गई थीं.
श्रीलंका में हालिया संसदीय चुनावों के अंतिम नतीजे घोषित होने से पहले महिंदा ने ट्वीट कर बताया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन कर उन्हें चुनाव में जीत पर बधाई दी है. इसके साथ ही महिंदा ने लिखा था कि वह भारत और श्रीलंका के बीच सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम करेंगे. ऐसे में भविष्य ही बताएगा कि महिंदा का यह बयान महज एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा या वह वाकई भारत के साथ संबंध को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे.
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