जब 5 दिन में यूक्रेन (Ukraine-Russia Crisis) के 5 लाख से ज्यादा लोग पड़ोसी देशों में शरण ले सकते हैं तो भारत के 20 हजार छात्र क्यों नहीं?- यह सवाल देश को बेचैन कर रहा है.
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों (Students in Ukraine) की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं उसने उनके अभिभावकों को ही नहीं, पूरे देश को चिंता में डाल दिया है. वे भोजन के लिए तरस रहे हैं. मदद के बदले लाठियां खा रहे हैं. स्थानीय पुलिस और सेना की ओर से गोली मारने की धमकियां भी लगातार मिल रही हैं. फोन कॉल्स और वीडियो में मदद के लिए की जा रही छात्रों की गुहार बता रही है कि भारत सरकार से बहुत बड़ी चूक या लापरवाही हुई है.
दिल्ली ने नहीं निभाई जिम्मेदारी?
यूक्रेन स्थित पर भारतीय दूतावास से छात्रों को निराश होना पड़ रहा है, जिसके कहने पर वे पोलैंड की सीमा पर पहुंचे. कुछ छात्र पोलैंड के रास्ते भारत पहुंचने में कामयाब भी रहे. मगर, फंसे हुए छात्रों के लिए विपरीत परिस्थितियां पैदा हो गईं. माइनस 3 से माइनस 7 डिग्री तापमान में वे खुले आसमान के नीचे बगैर भोजन-पानी के रहने की स्थिति में आ गये. भारतीय दूतावास से मदद मिलना बंद होते ही छात्र लाचार और बेबस हो गये. आगे की जिम्मेदारी तुरंत भारत सरकार और विदेश मंत्रालय की थी.
भारत सरकार ने उन छात्रों के लिए क्या किया जो यूक्रेन-पोलैंड या यूक्रेन-रूमानिया बोर्ड पर फंस गये? कहने को भारत में कंट्रोल रूम बन गया है. छात्र और उनके अभिभावक यहां संपर्क कर सकते हैं और कर रहे हैं. मगर लोगों की शिकायतें दूर नहीं हो रही हैं.
कंट्रोल रूम से मिल रहे जवाब परेशान करने वाले
कंट्रोल रूम से अभिभावकों को जो जवाब मिल रहे हैं वह शर्मनाक है. ऑडियो वायरल है जिसमें कंट्रोल रूम की ओर से कहा जा रहा है कि पोलैंड भारतीयों को घुसने नहीं दे रहा है. यह डिप्लोमैटिक स्थिति है. जवाब यह भी मिल रहा है कि भारत सरकार ने तो समय रहते एडवाइजरी जारी कर दी थी कि यूक्रेन छोड़ दें. अभिभावक यह सब सुनकर स्तब्ध हैं. क्या यही बताने के लिए कंट्रोल रूम खोले गये हैं?
अब अभिभावक अपने बच्चों के बारे में सरकार से सहयोग हासिल करें या उनसे जवाब मांगें कि
क्या एडवाइजरी जारी करते वक्त 20 हजार छात्रों के भारत लौटने के लिहाज से जरूरी एअर ट्रैफिक की व्यवस्था की गयी थी?
क्यों एअर टिकट रातों रात कई गुणा महंगे हो गये और सरकार देखती रही?
क्या तब मुफ्त उड़ान और ऑपरेशन गंगा शुरू नहीं किया जा सकता था?
छात्रों से अधिक समझदार सरकार होती है- यह तो माना ही जा सकता है.
आत्मप्रशंसा में डूबी रही सरकार
फंसे हुए छात्रों के अभिभावकों के मन में वो तस्वीरें जिन्दा हैं जो अब तक देश में चंद सौ छात्रों के लौटने के बाद बनी हैं. छात्र भारत सरकार का धन्यवाद कर रहे हैं. ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे हैं और अपने देश पर गर्व कर रहे हैं. वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जयकारे लगा रहे हैं.
मीडिया के जरिए छात्रों और उनका स्वागत करने एअर पोर्ट पहुंचे मंत्रियों-नेताओं के मुंह से बताया जाता रहा है कि विश्व में भारत का कितना ज्यादा सम्मान है. भारतीय झंडा देखकर यूक्रेनी, रूसी, पोलिश सभी देश छात्रों का तहे दिल से स्वागत कर रहे हैं. काश! स्थिति यही होती! अगर ऐसा होता तो 18 हज़ार से ज्यादा छात्र आज क्या बुरे हाल में फंसे होते?
फोटो सेशन में व्यस्त रहे मंत्री क्या आगे आएंगे काम?
स्वदेश लौटे छात्रों से मिलने की अधीरता, फोटो सेशन और छात्रों के बीच से मोबाइल पर बात करते-कराते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका श्रेय देने की तत्परता दिखाने की मंत्रियों में होड़ दिखी. ये मंत्री क्या संदेश देना चाह रहे थे? शेखी बघारने और आत्मश्लाघा करते यही मंत्री अगर उन अभिभावकों को फोन लगाते या उनके कॉल रिसीव करते जिन्हें अब भी अपने बच्चों के घर लौटने का इंतज़ार है तो वास्तव में आवश्यकता इसी बात की थी.
भारत ने अपने चार मंत्रियों को उन देशों के लिए रवाना किया है जो यूक्रेन से सटे देश हैं और जहां भारतीय छात्रों को शरण लेने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इनमें रूमानिया, हंगरी, पोलैंड शामिल हैं. मंत्रियों की रवानगी फंसे हुए छात्रों को निकालने की बेचैनी और जरूरत जरूर बताती है. लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि कूटनीतिक स्तर पर भारत सरकार की असफलता ही इन छात्रों की बेबसी की वजह है.
चूक गये पीएम मोदी?
भारतीय प्रधानमंत्री के तौर पर जितने विदेश दौरे नरेंद्र मोदी ने किए हैं उतने किसी और प्रधानमंत्री ने नहीं किए. नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे पॉपुलर नेता बताए जाते हैं जिनके सबसे ज्यादा फॉलोअर्स सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर हैं.
लेकिन इन सबका क्या फायदा अगर भारतीय प्रधानमंत्री जरूरत के वक्त अमेरिका या यूरोपीय यूनियन से कहकर या फिर अपने दम पर यूक्रेन के पड़ोसी देशों में भारतीय छात्रों को शरण नहीं दिला सके. यह शरण की भी बात नहीं थी भारत लौटने के लिए रास्ता देने भर का सवाल था.
क्या प्रधानमंत्री अपने प्रभाव का इस्तेमाल इसलिए नहीं कर सके क्योंकि उनकी प्राथमिकता कुछ और थी? वे चुनाव में व्यस्त रहे? चुनावी कार्यक्रमों में देश के प्रधानमंत्री को व्यस्त रखना क्या प्राथमिकता होनी चाहिए थी? फिर ऐसे ग्लोबल लीडर का होना न होना उन अभिभावकों के लिए क्या मायने रखता है जिनके बच्चे विदेश में फंसे हैं, बेबस हैं.
विदेश मंत्री एस जयशंकर फ्लॉप?
वास्तव में फ्लॉप साबित हुए हैं विदेश मंत्री एस जयशंकर. वे नौकरशाह से नेता और मंत्री बने हैं. उन्हें परिस्थिति का अंदाजा होना चाहिए था. यूक्रेन के हालात को समय रहते समझना चाहिए था. मगर, न तो समय पर छात्रों को इवैक्यूएट कराया जा सका और न ही फंसे हुए भारतीयों की मदद ही की जा सकी.
जो ट्वीट भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर 28 फरवरी को कर रहे हैं और पोलैंड का साधुवाद दे रहे हैं कि उसने सहयोग का भरोसा दिलाया है वही ट्वीट पहले क्यों नहीं किया जा सका? आज भी इस ट्वीट में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यूक्रेन की सीमा पर फंसे छात्रों को राहत मिल सके. फिर भी सहयोग का भरोसा भी उम्मीद की किरण जरूर है.
जब यूरोपीय यूनियन यूक्रेन के लोगों को 3 साल के लिए शरणार्थी बनाने को तैयार है तो चंद दिनों के लिए भारतीय छात्रों को सीमा पर घुसने देने के लिए क्यों नहीं? चार केंद्रीय मंत्रियों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों के लिए रवाना किया जाना यह बताने और जताने के लिए अधिक लगता है कि केंद्र सरकार से लापरवाही नहीं हुई. मगर, वास्तव में यह कदम उठाने की जरूरत ही इसलिए पड़ी क्योंकि लापरवाही हुई है.
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