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रूस को युद्ध में झोंक,यूक्रेन को तबाह कर भी पुतिन बने हुए हैं हीरो? पढ़िए 2 कारण

रूस की पोलिंग एजेंसी लेवाडा सेंटर के अनुसार पिछले 7 महीनों में Vladimir Putin की अप्रूवल रेटिंग 10% बढ़ी है

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यूक्रेन पर रूस के हिंसक हमले (Russia attack Ukraine) में अब तक सैकड़ों जानें जा चुकी हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी के अनुसार यूक्रेन में रहने वाले पांच लाख से अधिक लोग अब जान बचाने के लिए पड़ोसी देशों में रिफ्यूजी बन गए हैं. पश्चिमी देशों के नेताओं ने चेतावनी दी है कि रूस का यह सैन्य हमला और यूक्रेन में बमबारी दूसरे विश्व युद्ध के बाद से यूरोप में सबसे बड़े युद्ध का कारण बन सकती है.

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इस सब के बावजूद फरवरी 2022 के एक सर्वे से पता चला कि वहां के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (President Vladimir Putin) के लिए रूस में समर्थन बढ़ रहा है. ऐसे में जानते हैं कि यह सर्वे क्या कहता है, पुतिन की बढ़ती लोकप्रियता का क्या कारण हो सकता है, और क्या यह ट्रेंड आगे भी जारी रहेगा?

देश को युद्ध में झोंक बढ़ी पुतिन की लोकप्रियता

पिछले कुछ महीनों में यूक्रेन के बॉर्डर पर रूसी सेना की बढ़ती तैनाती के साथ राष्ट्रपति पुतिन की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि देखी गई.

रूस की पोलिंग एजेंसी लेवाडा सेंटर के अनुसार, अगस्त 2021 में पुतिन की अप्रूवल रेटिंग 61% (सर्वे में शामिल कितने प्रतिशत लोग पक्ष में वोट देते हैं) थी, वहीं यह फरवरी 2022 में बढ़कर 71% तक पहुंच गयी है. इस दौरान रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तीन और उनके मंत्रिमंडल के समर्थन में भी वृद्धि हुई है.

दूसरी तरफ राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की डिसअप्रूवल रेटिंग फरवरी में 29% तक गिर गयी है, जबकि अगस्त 2021 में 37% लोगों ने सर्वे में उनके खिलाफ वोट किया था.

मालूम हो कि पोलिंग एजेंसी लेवाडा सेंटर को रूस का लीडिंग स्वतंत्र सोशियोलॉजिकल रिसर्च ऑर्गेनाईजेशन माना जाता है.

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क्यों बढ़ रही पुतिन की लोकप्रियता

मई 2000 में पहली बार राष्ट्रपति बनने के बाद से ही पुतिन की अप्रूवल रेटिंग अपेक्षाकृत ऊंची ही रही है. रूस के सर्वेसर्वा के रूप में 20 वर्षों के कार्यालय (कभी राष्ट्रपति-कभी प्रधानमंत्री) में उनकी लोकप्रियता औसतन 79% रही है.

लेकिन अगस्त 2021 में यह लोकप्रियता 61% तक गिर चुकी थी. 27 फरवरी से 2 फरवरी के बीच कराए गए ताजा सर्वे के नतीजों में पुतिन की अप्रूवल रेटिंग 10% बढ़कर 71% तक जा पहुंची. यूक्रेन-रूस तनाव और एक्टिव वॉर के बीच इसका जवाब इन 2 कारणों में खोजा जा सकता है.

पहला कारण: राष्ट्रवाद, तुरुप का इक्का

दुनिया के राजनीतिक इतिहास के कई जानकारों का मानना है कि भूखी जनता को शांत करने के लिए देश के बाहर एक दुश्मन खड़ा करना शासकों के लिए सबसे आसान रास्ता होता है. कुछ ऐसा ही है राष्ट्रवाद से ओतप्रोत “Rally-'Round-the-Flag” का सिद्धांत.

इतिहास में लंबे समय से देखा गया है कि आम खतरों का सामना करने के लिए समूह एकजुट हो जाते हैं. राष्ट्र और राज्य के स्तर पर इसे ही "रैली-'राउंड-द-फ्लैग" कहा जाता है. समूह के लोगों की एकजुटता में यह वृद्धि क्यों होती है, इसके लिए 'राष्ट्रवाद' और 'ओपिनियन लीडरशिप' पर सत्ता के नियंत्रण को जिम्मेदार माना जाता है.

क्या ठीक यही रूस में पुतिन करते नजर नहीं आ रहे हैं? अपनी गिरती लोकप्रियता के बीच उन्होंने रूसी जनता को यूक्रेन का डर दिखाया. यूक्रेन के खिलाफ “स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन” की घोषणा करते हुए दिए भाषण में उन्होंने यहां तक दावा किया कि यूक्रेन परमाणु शक्ति बनने के रास्ते पर जा रहा है.

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दूसरा कारण: रूसी मीडिया पर नियंत्रण

खास बात है कि फरवरी के मध्य तक मॉस्को में कुछ ही लोगों ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध की कल्पना की थी. रूस में पुतिन सरकार के नियंत्रण वाली राज्य मीडिया ने इस बात से लगातार इनकार किया था कि क्रेमलिन यूक्रेन के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा है.

इसके विपरीत रूस के टॉक शोज में यूक्रेन के खिलाफ रूस की चेतावनी देते पश्चिमी देशों के डर को 'हिस्टीरिया' और 'बेतुकापन' बोलकर मजाक उड़ाया गया.

मीडिया की मदद से रूसी सरकार ने जनता के सामने अपना वर्जन परोसा. उदाहरण के लिए, राज्य टेलीविजन चैनल वन के एंकरों ने कहा कि यूक्रेन डोनबास में अपने ही नागरिकों को भागने के लिए मजबूर कर रहा है.

क्या लोगों पर युद्ध का खुमार बना रहेगा?

सर्वे की मानें तो अधिकांश रूसी युद्ध नहीं चाहते. लेवाडा सेंटर के सर्वे के अनुसार, लगभग 38% रूसियों ने दिसंबर 2021 तक यूक्रेन के साथ युद्ध को वास्तविक संभावना नहीं माना था जबकि 15% ने दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष की संभावना को पूरी तरह से खारिज कर दिया.

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सर्वे में भाग लेने वाले लगभग 83% रूसी लोगों ने यूक्रेनी लोगों पर सकारात्मक विचार रखे थे. 51% रूसियों का कहना था कि रूस और यूक्रेन को स्वतंत्र और मित्र देश होना चाहिए. इसके अलावा रूस में युद्ध के खिलाफ अपनी ही सरकार का विरोध करती भीड़ की तस्वीर भी यही कहानी कहती है.

रूस द्वारा जॉर्जिया पर 2008 का आक्रमण और 2015 में सीरियाई गृहयुद्ध में हस्तक्षेप के बाद भी सरकार के लिए जनता का समर्थन गिरा था.

2014 में क्रीमिया के रूस में शामिल होने के बाद से किए गए सर्वे लगातार दिखाते हैं कि अधिकांश रूसी नागरिक यूक्रेन केकेदो अलगाववादी और स्व-घोषित गणराज्यों की स्वतंत्रता का तो समर्थन करते हैं लेकिन वे उन्हें रूस का हिस्सा बनते नहीं देखते हैं.

अगर यूक्रेन में जारी संघर्ष के बाद रूसी सैनिकों को जान का नुकसान उठाना पड़ा तो यूक्रेन में रूस का सैन्य हस्तक्षेप घरेलू स्तर पर पुतिन के लिए महंगा साबित हो सकता है.

इसके अलावा अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के कारण रूस में आर्थिक गिरावट आ सकती है जो रूसियों की जेबों को भारी नुकसान पहुंचाएगी- और पुतिन के समर्थन को और कम कर देगी.

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