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Serbia Kosovo Conflict: सर्बिया-कोसोवो में विवाद, यूरोप में एक और जंग की आहट?

Serbia-Kosovo Conflict: कार की नंबर प्लेट विवाद की बड़ी वजह क्यों?

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यूरोप में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुए 10 महीने से ऊपर हो गए हैं. दोनों देश पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं. इस बीच दक्षिणी पूर्वी यूरोप में भी एक युद्ध की आहट सुनाई देने लगी है. यहां सर्बिया और उसी से आजाद होकर अपने को स्वतंत्र देश कहने वाले कोसोवो के बीच स्थिति बेहत तनावपूर्ण हो गई है. दक्षिणी पूर्वी के दोनों देशों (सर्बिया और कोसोवो) ने एक दूसरे पर युद्ध भड़काने का आरोप लगाया है. आखिर इन दोनों देशों के बीच ऐसा क्या हुआ कि यूरोप में नए साल के शुरू होने के साथ एक नए युद्ध की आशंका जताई जा रही है? ये भी जानेंगे कि इसमें भारत का क्या स्टैंड हैं? पहले मौजूदा स्थिति को जान लेते हैं.

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दरअसल, 25 दिसंबर 2022 को दोनों देशों के सीमा पर कथित तौर पर फायरिंग हुई थी. कोसोवो ने आरोप लगाया कि ये फायरिंग सर्बिया ने की. जबकि, सर्बिया का कहना है कि ये फायरिंग कोसोव में तैनात KFOR (कोसोवो में नाटो के नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय शांति सेना) की तरफ से की गई है. इसके बाद सर्बिया ने कोसोवो की सीमा पर अपने सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ा दी है. सर्बिया के समर्थन में कोसोवो के उत्तर में रहने वाले सर्ब समुदाय के लोगों ने सड़कों पर ट्रकों का जमावड़ा लगा उन्हें जाम कर दिया. उत्तरी कोसोवो के शहर मित्रोविका में सर्ब समुदाय के लोगों ने भारी ट्रकों को सड़कों पर खड़ा कर दिया. यह शहर कोसोवो सर्ब और जातीय अल्बानिया में बंटा हुआ है.

सर्बिया के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वूसिक ने कहा है कि "उन्होंने सेना को कोसोवो में हमारे लोगों और सर्बिया की रक्षा करने के लिए सतर्क रहने को कहा है." उन्होंने दावा किया कि कोसोवो देश के उत्तरी हिस्से में कोसोवो सर्ब लोगों पर हमला करने की योजना बना रहा है और उसने जबरन उन अवरोधकों को हटा दिया, जिन्हें सर्ब लोगों ने 18 दिन पहले कोसोवो सर्ब समुदाय के पूर्व पुलिस अधिकारी की गिरफ्तारी के विरोध में लगाए थे.

28 दिसंबर 2022 को कोर्ट ने पूर्व सर्ब पुलिसकर्मी को रिहा कर दिया और घर में नजरबंद करने का आदेश दिया. हालांकि, कोसोवो के प्रधानमंत्री अल्बिन कुरती ने पैंटिक को जेल से रिहा कर नजरबंद रखे जाने के अदालत के आदेश की आलोचना की है.

बता दें, पूर्व सर्ब पुलिसकर्मी देजान पैंटिक को 10 दिसंबर को एक प्रदर्शन के दौरान कोसोवो के एक पुलिस अधिकारी पर कथित हमला करने को लेकर आतंकवाद के आरोप में हिरासत में लिया गया था.

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जातीय अल्बानिया और सर्ब में बंटा है कोसोवो

कोसोवो में दो समुदाय प्रमुख रूप से हैं. एक जातीय अल्बानिया और दूसरा सर्ब. यहां सर्ब अल्पसंख्यक हैं और जातीय अल्बानिया बहुसंख्यक. सर्ब समुदाय के लोगों की जनसंख्या कोसोवो के उत्तर में सबसे ज्यादा है, जो सर्बिया से लगा हुआ है. ये लोग कोसोवो की स्वतंत्रता को मान्यता नहीं देते हैं. यही वजह है कि सर्ब समुदाय के लोग कोसोवो के किसी भी नियम का पालन करने के लिए राजी नहीं होते हैं. इसे लेकर कई बार कोसोवो सरकार और सर्ब समुदायों के बीच झड़प भी हुई है.

कोसोवो में किस नियम को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे सर्ब?

हालांकि, सर्बिया और कोसोव के बीच विवाद दशकों पुराना है, लेकिन फिलहाल जो विवाद है वो कारों के नंबर प्लेट को लेकर है. दरअसल, कोसोवो ने एक नियम लागू करने के लिए कहा था कि सर्बिया में जारी कारों की नंबर प्लेट कोसोव में नहीं चलेगी. अगर चलेगी तो उसपर भारी जुर्माना लगाया जाएगा. इस फैसले के विरोध में सैकड़ों पुलिस अफसर, जज, वकील और अन्य अधिकारियों ने इस्तीफे दे दिये थे. हालांकि, अमेरिका और यूरोपिय संघ के अनुरोध के बाद कोसोवो ने अपना फैसला वापस ले लिया था, क्योंकि अमेरिका और यूरोपिय संघ ने इस फैसले से नस्लीय हिंसा भड़कने की आशंका जताई थी.

कोसोवो का इतिहास

दरअसल, यूगोस्लाविया के पूर्व समाजवादी संघीय गणराज्य के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टिटो की मौत के बाद योगोस्लाविया में जातिय संघर्ष शुरू हो गया. इस जातिय संघर्ष की वजह से योगोस्लाविया, छः देशों (क्रोएशिया, सर्बिया, स्लोवेनिया, मोंटेनेग्रो, मैसेडोनिया, बोस्निया-हर्जेगोविना) में टूट गया.

सबसे पहले साल 1991 में क्रोएशिया ने खुद को स्वतंत्र घोषित किया. इसके बाद सभी पांच देशों ने अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया. इन्हीं देशों में से एक था सर्बिया. सर्बिया में अभी भी जातीय हिंसा शुरू थी, लिहाजा जातीय अल्बानिया समुदाय के लोगों ने सर्बिया से बगावत कर साल 2008 में खुद को कोसोवो के रूप में स्वतंत्र घोषित कर दिया.

हालांकि, सर्बिया अभी भी कोसोवो को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं देता है. लेकिन, दुनिया भर के 100 से ज्यादा देशों ने कोसोवो को मान्यता दे दी है, जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी और यूरोपिय संघ के देश शामिल हैं. कोसोवो को मान्यता नहीं देने वालों देशों में रूस, भारत और चीन जैसे बड़े राष्ट्र हैं.

सर्बिया ने कोसोवो की आजादी की घोषणा को अपनी क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन बताते हुए अंतरराष्ट्रीय अदालत में गुहार लगाई थी. हेग स्थित अंतराष्ट्रीय न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कोसोवो की सर्बिया से आजादी की घोषणा अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं है. न्यायालय को संबोधित करते हुए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अध्यक्ष हिसाशी ओवाडा ने कहा था कि "अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि 17 फरवरी 2008 को कोसोवो द्वारा की गई आजादी की घोषणा अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं हैं."

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सर्बिया-कोसोवो की आड़ में रूस-अमेरिका आमने-सामने कैसे?

कोसोवो नाटो का सदस्य नहीं है बावजूद वहां नाटो की सेना कोसोवो की सुरक्षा में तैनात रहती है. क्योंकि, अमेरिका इसे दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए सही मानता है. इस बात का विरोध सर्बिया करता है. जहां, अमेरिका कोसोवो की हितों की रक्षा की बात करता है, वहीं, दूसरी तरफ रूस भी सर्बिया की हितों की बात करता है. जिस नाटो की वजह से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया वही नाटो यहां भी दखल दे रहा है, जिसके बाद से आशंका जताई जा रही है कि यूरोप में कहीं दूसरे मोर्चे पर भी युद्ध नहीं शुरू हो जाए.

भारत कोसोवो को देश के रूप में मान्यता नहीं देता है. इसके पीछे की वजह कोसोवो और सर्बिया का मुद्दा दो ध्रुवीय होना है. एक तरफ जहां नाटो है तो दूसरी तरफ रूस है. क्योंकि, भारत गुटनिरपेक्ष समूह का सदस्य है और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अग्रदूत भी, लिहाजा वो किसी भी नई उपजी स्थिति को मान्यता नहीं देता है.

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