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China-Taiwan के बीच संघर्ष की क्या कहानी है? अमेरिका की भूमिका और भारत की चिंता

History of Taiwan: ताइवान 10 अक्टूबर को अपने राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाता है

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जापान में हुई Quad शिखर सम्मेलन, जहां अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन (US President Biden) मौजूद थे, उन्होंने ताइवान और चीन के बीच चल रही तनातनी पर कहा कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिकी सेना इसमें हस्तक्षेप करेगी. अमेरिका ने कहा कि ताइवान की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए कड़ी कार्रवाई की जाएगी. अमेरिका ने चेतावनी दी कि "हम जो कह रहे हैं वह करेंगे".

लेकिन चीन और ताइवान के बीच संघर्ष की क्या वजह है, दोनों देशों के बीच तनातनी क्यों बढ़ गई है और इस पूरे मसले पर दुनिया क्यों चिंता में है?

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हाल के समय में दोनों देशों के बीच चल रही तनातनी की खबरों को बल पिछले साल 1 अक्टूबर से मिलना शुरू हुआ. इस दिन चीन अपना राष्ट्रीय दिवस मनाता है.

चीन जब अपनी 72वीं वर्षगांठ समारोह मना रहा था उस दिन चीन ने ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन में 100 से अधिक लड़ाकू जेट उड़ाए. चीन ने ऐसा कर ताइवान में डर बढ़ाया और दुनिया भर को एक तरह से अलर्ट किया कि वह बल द्वारा इस द्वीप पर कब्जा करने की तैयारी में है.

चीन के इस संकेत को तब और बल मिला जब फरवरी में यूक्रेन पर रूस द्वारा आक्रमण किया गया और एक तरफ जहां दुनिया इस आक्रमण की आलोचना कर रही थी या चुप्पी साध रही थी तो दूसरी तरफ चीन ने इसका समर्थन किया. हालांकि ताइवान को अधिकतर देश चीन का हिस्सा ही मानते हैं, लेकिन ताइवान खुद को एक संप्रभु देश मानता है और वो चीन द्वारा ताइवान पर कब्जे के खिलाफ आवाज भी उठा चुका है.

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ताइवान का इतिहास क्या है?

ताइवान, जिसे पहले फॉर्मोसा (Formosa) के नाम से जाना जाता था, यह चीन के पूर्वी तट से करीब 130 किलोमीटर स्थित छोटा द्वीप है.

दूसरे विश्वयुद्ध के समय चीन की मुख्य भूमि पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के साथ लड़ाई चल रही थी. 1949 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई जिसके बाद कुओमिंतांग के लोग मुख्य भूमि से भागकर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीप ताइवान चले गए.

यह द्वीप पूर्वी चीन सागर में स्थित है. हांगकांग के उत्तर-पूर्व में है, फिलीपींस के उत्तर में और दक्षिण कोरिया के दक्षिण में है, वहीं जापान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है. ताइवान और उसके आसपास जो कुछ भी होता है वह पूरे पूर्वी एशिया के लिए गहरी चिंता का विषय है.

ताइवान 10 अक्टूबर को अपने राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाता है. 1911 में इसी दिन नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) द्वारा विद्रोह के बाद चिंग राजवंश (Qing Dynasty) को हरा दिया गया और राजशाही के 4,000 सालों का अंत कर दिया था. 29 दिसंबर, 1911 को रिपब्लिक ऑफ चाइना (RoC) को घोषित किया गया था.

लेकिन जब से कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन की नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) को हराकर ताइवान भगा दिया तब से ही उन्होंने ताइवान को चीन का हिस्सा ही बताया है.

दुनिया में केवल 15 ऐसे देश हैं जो ताइवान को एक स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में मान्यता देते हैं, लेकिन इसमें से अधिकतर देश काफी छोटे हैं और कुछ छोटे द्वीप हैं.

1954-55 में और 1958 में चीन ने ताइवान के नियंत्रण में जिनमेन, माजू और डाचेन द्वीपों पर बमबारी की जिसने अमेरिका का ध्यान आकर्षित किया. तभी कांग्रेस ने फॉर्मोसा प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति डी आइजनहावर को ताइवान क्षेत्र की रक्षा के लिए अधिकृत किया.

साल 2000 में ताइवान को पहली बार नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के अलावा दूसरी पार्टी की सरकार मिली. उस समय ताइवान की राष्ट्रवादी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP) ने जीत दर्ज की थी. साल 2004 में चीन ने ताइवान के उद्देश्य से एक अलगाव-विरोधी कानून का मसौदा तैयार करना शुरू किया. हालांकि, व्यापार और कनेक्टिविटी में सुधार जारी रहा.

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चीन और ताइवान के तनाव में अमेरिका की क्या भूमिका है?

साल 2020 में कोरोना और ट्रेड वॉर के बीच अमेरिका और चीन के रिश्ते काफी बिगड़े. अमेरिका के विदेश विभाग ने तब अपना सर्वोच्च रैंकिंग प्रतिनिधिमंडल ताइवान की राजधानी ताइपे भेजा था. इससे नाराज चीन ने उस यात्रा के दौरान ताइवान और चीन के बीच जो समुद्र है वहां एक सैन्य अभ्यास किया था.

उस साल अक्टूबर में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार होने के लिए भी कहा था, जिससे ताइवान में अलर्ट का संकेत गया, जिससे पता चलता है कि ताइवान को चीन से खतरा बना हुआ है.

अमेरिका में बाइडेन की जीत के बाद ये साफ हो गया था कि अमेरिका पूरी तरह से ताइवान के साथ खड़ा है. चीन ने कह चुका है कि अगर ताइवान स्वतंत्रता की बात करता है तो इस इरादे को चीन खत्म कर देगा. पिछले साल अप्रैल में भी चीन ताइवान के एयर जोन में अपने जेट उड़ाकर खतरे का संकेत दे चुका है.

साल 2021 के अक्टूबर में ताइवान के रक्षा मंत्री ने संसद को बताया था कि चीन के पास पहले से ही ताइवान पर आक्रमण करने की क्षमता है. वहीं 10 अक्टूबर को एक भाषण में चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ने जबरन कब्जे के डर को दूर करते हुए कहा कि ताइवान को शांतिपूर्ण तरीके से मिलाया जाएगा. साथ ही उन्होंने कहा कि चीन के इस एकीकरण का ऐतिहासिक काम जरूर पूरा किया जाएगा. उसी दिन, ताइवान की राष्ट्रपति ने कहा कि ताइवान के लोग "दबाव के आगे नहीं झुकेंगे".

जैसे-जैसे चीन-ताइवान के बीच तनाव बढ़ रहा है, दुनिया अमेरिका की ओर देख रही है. उसी अमेरिका की ओर जिसने अफगानिस्तान से अपनी सेना को पीछे खींचा. पूर्वी एशिया में जहां जापान, दक्षिण कोरिया, फिलिपींस सहित कई देश मौजूद हैं जो अमेरिका की छत्र छाया में शरण लिए हुए हैं उनके लिए भी अमेरिका की भूमिका अहम है.

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चीन और ताइवान के बीच का तनाव भारत के लिए चिंता है?

भारत का चीन के साथ सीमा को लेकर विवाद बना हुआ है. दूसरी ओर भारत और ताइवान ने एक दूसरे की राजधानियों में "व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान" नाम से एक कार्यालय बनाए रखा है.

मई 2020 में, साई इंग वेन के शपथ ग्रहण में बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी (अब विदेश राज्य मंत्री) और राहुल कस्वां शामिल हुए थे. 2016 में, नई दिल्ली ने ऐन मौके पर इस कार्यक्रम के लिए दो प्रतिनिधियों को भेजने की योजना को छोड़ दिया था.

भारत अब 7.5 अरब डॉलर की सेमी कंडक्टर चिप लाने के लिए ताइवान के साथ बातचीत कर रहा है. चिप्स का उपयोग कंप्यूटर से लेकर 5G स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक कारों और चिकित्सा उपकरणों में भी किया जाता है.

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