जहां एक तरफ पूरी दुनिया अफगानिस्तान (Afghanistan) में बढ़ते तालिबान (Taliban) के प्रभाव पर लगातार नजर जमाई हुई है वहीं भारत के लिए भी तालिबान अब चिंता का विषय बनता जा रहा है. यह चिंता पाकिस्तानी लड़ाकों द्वारा तालिबान ज्वाइन करने को लेकर है. ये लड़ाके अब वहां भारत की संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
ANI के अनुसार बड़ी संख्या में पाकिस्तानी लड़ाकों ने अशरफ गनी (Ashraf Ghani) के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान की सरकार का विरोध किया है और तालिबान का खुलकर समर्थन दिया है. इसके साथ अब वो युद्ध क्षेत्र में भी सक्रिय हैं. इन पाकिस्तानी लड़ाकों को पाकिस्तानी खूफिया एजेंसी (ISI) इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस की ओर से लगातार निर्देश दिए जाने की खबर भी है. ISI उन्हें भारत निर्मित संपत्तियों को निशाना बनाने के लिए लगातार निर्देश दे रहा है.
भारत में पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान के विकास कार्यों में हाथ बटाने के लिए 3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है. डेलाराम और जरांज सलमा बांध के बीच 218 किलोमीटर की सड़क और अफगान संसद भवन जिसका उद्घाटन 2015 में किया गया था को अफगान लोगों के लिए भारत के बड़े योगदान के रूप में गिना जाता है. भारत ने अफगानिस्तान में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया था वहां के शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए भारत की एक अहम भूमिका थी.
तालिबान में 10 हजार से अधिक पाकिस्तानी लड़ाके
ANI के अनुसार जो पाकिस्तानी लड़ाके तालिबान से जुड़े हुए हैं वो भारतीय संपत्ति और भारत के किसी भी संकेत को वहां से मिटाना चाहते हैं. इन लड़ाकों की तादात 10 हजार से अधिक बताई जा रही है जो भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है. भारतीय एजेंसियां लगातार काबुल हवाई अड्डे पर नजरें बनाई हुई है बताया जा रहा है कि अब यह हवाई अड्डा अमेरिका की पूरी तरीके से जाने के बाद तालिबान के कब्जे में आ सकता है. भारतीय संपत्ति को निशाना बनाने के मुद्दे पर अभी भारतीय पक्ष असमंजस की स्थिति में है. कि क्या उन्हें काबुल में अपनी उपस्थिति बनाए रखने की अनुमति दी जाएगी क्योंकि अभी तक तालिबान द्वारा कोई ऐसा संकेत नहीं दिया गया जो भारत के विरोध के रूप में देखा जा सके.
भारत ने हाल ही में काबुल शहर को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए शहतूत बांध सहित 350 मिलियन डॉलर के कार्यों की घोषणा की थी.
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