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US में 41 साल की रिकॉर्ड महंगाई, चीन में बैंकों के बाहर टैंक-किधर जा रही दुनिया?

US-China बढ़ चले मंदी की ओर, भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितना पड़ेगा जोर?

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चीन और अमेरिका जैसे मजबूत देशों में मंदी की आहट सुनाई देने लगी है. "जीरो कोविड पॉलिसी" की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था सेहतमंद नहीं दिखाई दे रही है. वहीं अमेरिका जहां एक ओर चार दशक में सबसे ज्यादा महंगाई का सामना कर रहा है, वहीं दूसरी ओर वहां की बेरोजगारी दर पांच दशक के निचले स्तर पर आ गई है. बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व यानी US Federal Reserve ने ब्याज दरें 0.75 बढ़ा दी हैं. अमेरिकी सेंट्रल बैंक की ये लगातार चौथी बढ़ोतरी है. इसका असर दुनिया के शेयर मार्केट और अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर भी देखने को मिलेगा. आइए जानते हैं चीन और अमेरिका के मंदी की ओर बढ़ने से क्या असर देखने को मिल सकता है.

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अमेरिका में महंगाई दर चार दशक के उच्च स्तर पर

अमेरिका में महंगाई 41 सालों के उच्च स्तर पर पहुंच गई है. जून के आंकड़ों के अनुसार महंगाई दर 9.1 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई है. यह फेड रिजर्व के लक्ष्य से करीब 2 फीसदी ज्यादा है. इस बढ़ते ग्राफ को देखते हुए अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें 0.75 बढ़ा दी हैं. बढ़ती महंगाई और मंदी की आशंका को देखते हुए फेड रिजर्व ने मार्च के बाद से फेडरल फंड्स रेट (Federal Funds Rate) को अपेक्षित जीरो से बढ़ाकर 2.5 फीसदी के करीब पहुंचा दिया है. वहीं अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की दर 50 सालों के निचले स्तर पर है.

फेड रिजर्व ने हाल ही में ब्याज दरों में 0.75 की बढ़ोतरी की है. अमेरिकी सेंट्रल बैंक की इस लगातार चौथी बढ़ोतरी से ब्याज दरों में ये इजाफा साल 1994 के बाद सर्वाधिक है. फेडरल की ओर कहा गया है कि उनका सबसे बड़ा लक्ष्य महंगाई को काबू करना है. अगर ये अभी भी कम नहीं हुई, तो आगे भी महंगाई की धार को कम करने के लिए प्रयास करेंगे.

अब आते हैं मंदी के मुद्दे पर

पहले जानिए आखिर मंदी किसे कहते हैं?

सबसे सामान्य परिभाषा यह है कि अगर किसी देश की जीडीपी GDP लगातार दो तिमाहियों में घटती है तो यह मंदी का संकेत होता है. जीडीपी संकुचित होने से नौकरियां छूटती हैं, आय में कमी आती है और खपत कम हो जाती है.

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तो क्या अमेरिका मंदी की ओर बढ़ रहा है?

आंकड़े तो यही कहते हैं, क्योंकि इस साल की दूसरी तिमाही में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर में 0.9 फीसदी की कमी आई है. ये लगातार दूसरी तिमाही है जिसमें अमेरिकी अर्थव्यवस्था के ग्रोथ रेट में गिरावट दर्ज की गई है. पहली तिमाही के दौरान अमेरिका की जीडीपी 1.6 फीसदी संकुचित हुई थी. चूंकि अब दूसरी तिमाही का भी परिणाम सामने है ऐसे में परिभाषा के अनुसार यह स्पष्ट है कि अमेरिका मंदी की ओर है.

जहां एक ओर अर्थशास्त्री और एक्सपर्ट्स मंदी की बात कर रहे हैं वहीं अमेरिकी सेंट्रल बैंक के अध्यक्ष पॉवेल ने कहा है कि फिलहाल अमेरिका में मंदी की स्थिति नहीं है.

आम तौर पर अमेरिका में मंदी की घोषणा नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (NBER) करता है. यह मंदी को थोड़ा अलग तरीके से परिभाषित करता है.

NBER दो तिमाहियों की संकुचन वाली मंदी की परिभाषा को स्वीकार नहीं करता है. NBER की परिभाषा के अनुसार "यह आर्थिक गतिविधि में एक महत्वपूर्ण गिरावट है जो अर्थव्यवस्था में फैली हुई है और जो कुछ महीनों से अधिक समय तक चलती है."

अमेरिकी मुद्रास्फीति दर 9 फीसदी से अधिक है जबकि फेडरल रिजर्व बैंक की लक्षित मुद्रस्फीति दर (target inflation rate) 2 फीसदी का है. ऐसे में दोनों के बीच अंतर 7 परसेटेंज पॉइन्ट्स का है. इतिहास गवाह रहा है जब भी फेड ने मुद्रास्फीति को 2 फीसदी पॉइन्ट्स से नीचे लाने का प्रयास किया है, तब अमेरिका को मंदी का मुंह देखना पड़ा है.

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रियल एस्टेट संकट ने बढ़ाई चीनी अर्थव्यवस्था की चिंता

चीन में इस साल दूसरी तिमाही में जीडीपी सिर्फ 0.4% की दर से बढ़ी. पहली तिमाही की तुलना में यह 2.6 फीसदी संकुचित हुई है. 2022 की पहली तिमाही में विदेशी निवेशकों ने 43 अरब डॉलर की निकासी की थी क्योंकि ब्याज अंतर बढ़ गया था. 'जीरो कोविड' नीति के साथ अर्थव्यवस्था सिकुड़ती रहेगी, जिससे और पूंजी बाहर जाने का खतरा है.

रियल एस्टेट मार्केट में छाई मंदी से चीन की अर्थव्यवस्था काफी मुश्किल में है. चीन की मौजूदा आर्थिक स्थिति ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है. चीन के रियल एस्टेट डेवलपर्स डीफॉल्ट कर रहे हैं. चीन के बैंकों की हालत खराब है. चीन का कुल कर्ज तेजी से बढ़ रहा है, जो उसके जीडीपी का कई गुना ज्यादा है. ये सब इस बात के संकेत हैं कि चीन में भी मंदी की आहट सुनाई देने लगी है.

चीन की जीडीपी में रियल एस्टेट का हिस्सा 25% से 30% के बीच है. रियल एस्टेट संकट ने चीन अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है. चीन का रियल एस्टेट सेक्टर कर्ज में डूबा हुआ है. पिछले साल चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांडे जिस पर करीब 300 अरब डॉलर का कर्ज था, उसने अपने बॉन्ड रीपेमेंट्स में डीफॉल्ट किया. एवरग्रैंड के 1300 से ज्यादा प्रोजेक्ट हैं. कंपनी की कुल संपत्ति 2 ट्रिलियन युआन है, जो चीन की कुल जीडीपी का 2% है. एवरग्रैंड की यह हालत चीन के पूरे रियल एस्‍टेट सेक्टर को डुबो रही है. निवेशक इस सेक्टर से दूरी बना रहे हैं.

जून लगातार 10वां महीना रहा है, जब चीन में प्रॉपर्टी की कीमतें गिरी हैं. 1990 के बाद से निजी प्रॉपर्टी मार्केट में यह सबसे लंबी मंदी है. गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स को अब आशंका है कि इस साल राष्ट्रीय प्रॉपर्टी की बिक्री में 28% -33% की गिरावट आएगी. चीन में लगातार 12वें महीने में घरों की बिक्री घटी है. अगर एवरग्रैंड दिवालिया हो जाता है तो इससे सीमेंट, स्टील, सैनेटरी सहित रियल एस्टेट से संबंधित कई उद्योग प्रभावित हो सकते हैं, जो चीन की अर्थव्यवस्था को और परेशान करेंगे.

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एक ओर बढ़ता कर्ज, दूसरी ओर दिए गए कर्ज की वसूली कमजोर 

चीन पहले से ही भारी कर्ज में डूबा हुआ है वह अब यह तेजी से बढ़ रहा है. यह उसके जीडीपी का 264% है. इसमें कॉरपोरेट और व्यक्तिगत ऋण भी शामिल हैं. मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में 2009 के बाद से कर्ज के आधार पर विकास की रणनीति पर अमल हो रहा है. इसी वजह से कर्ज काफी ज्यादा हो गया है.

जहां एक ओर चीन का कर्ज बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर चीन ने अपने महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के लिए जो अरबों का कर्ज दिया है, उसका ब्याज भी मिलता नहीं दिख रहा है क्योंकि एशियाई और अफ्रीकी देशों की आर्थिक हालत काफी कमजोर है. श्रीलंका का उदाहरण हम देख ही चुके हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में चीन के बैंकों को ये ऋण राइट ऑफ करने पड़ सकते हैं.

कोयले की कमी से हो रहा बिजली संकट, बैंक की हालत गंभीर

चीन में इस समय कोयले की भारी किल्लत है, कोयले की कमी से बिजली संकट पैदा हो रहा है जिससे औद्योगिक क्षेत्रों में घंटों बिजली जा रही है. इससे चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

वहीं चीन के बैंकों की हालत भी खराब है. हेनान प्रांत में बैंक ऑफ चाइना की शाखा की सुरक्षा के लिए सड़क पर सरकार को टैंक तैनात करने पड़े थे. चीन में कई बैंकों से पैसे निकालने पर रोक लगा दी गई है. इस फैसले के खिलाफ चीन में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. विरोध को देखते हुए चीन की सरकार ने भारी संख्या में सेना के टैंकों को सड़कों पर उतार दिया है. चीन के हेनान प्रांत में पिछले कई हफ्तों से पुलिस और बैंक में पैसा जमा करने वाले लोगों के बीच झड़प जारी है. लोगों का कहना है कि अप्रैल 2022 से ही उन्हें अपनी सेविंग्स निकालने से रोका जा रहा है. चीन के कई छोटे बैंक दिवालिया हो गए है.

चीन की स्थानीय सरकारों की आमदनी में इस साल 6 लाख करोड़ युआन की कमी आने का अनुमान है. यदि चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी आती है तो इसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा.

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मंदी का खतरा कितना बड़ा है?

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक एक सर्वे से पता चला है कि एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में शामिल चीन और जापान पर भी मंदी का खतरा मंडरा रहा है. मंदी के खतरे का सबसे बड़ा कारण महंगाई है. इसकी वजह से सभी देशों के केंद्रीय बैंक अपनी ब्‍याज दरों में वृद्धि कर रहे हैं, जिसका सीधा असर उनकी विकास दर पर पड़ेगा और इसकी गति मंद पड़ते ही अर्थव्‍यवस्‍थाएं मंदी में प्रवेश कर जाएंगी.

अर्थशास्त्रियों के बीच कराए सर्वे में बताया है कि श्रीलंका अभी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. अगले साल तक श्रीलंका में मंदी आने का खतरा 85 फीसदी है. वहीं मंदी आने की आशंका न्‍यूजीलैंड पर 33 फीसदी, ताइवान पर 20 फीसदी, ऑस्‍ट्रेलिया पर 20 फीसदी और फिलीपींस पर 8 फीसदी है. दक्षिण कोरिया और जापान पर मंदी आने की 25-25 फीसदी आशंका है, जबकि चीन, हांगकांग और पाकिस्‍तान की अर्थव्यवस्था पर 20 फीसदी आशंका जताई जा रही है.

मंदी का जोखिम जहां एशिया के ज्यादातर देशों में 20-25 फीसदी के दायरे में है, वहीं अमेरिका पर इसका खतरा 40 फीसदी और यूरोप पर 50-55 फीसदी तक पहुंच गया है. ब्‍लूमबर्ग के अनुसार इटली में मंदी आने की 65 फीसदी आशंका है, जबकि फ्रांस में 50 फीसदी और जर्मनी में 45 फीसदी आशंका है. ब्रिटेन पर भी मंदी आने की 45 फीसदी आशंका दिख रही है.

IMF की मंदी को लेकर चेतावनी

इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड यानी IMF ने हाल ही में कहा है कि 'वर्ष 2022 काफी मु​श्किल भरा साबित होने जा रहा है, जबकि वर्ष 2023 तो और भी कठिनाइयां ला सकता है क्योंकि उस समय मंदी का खतरा काफी बढ़ जाएगा.'

आईएमएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि '75 केंद्रीय बैंक या हम जितने केंद्रीय बैंकों पर नजर रखते हैं उनमें से करीब तीन चौथाई ने जुलाई 2021 के बाद से ब्याज दरों में इजाफा किया है. औसतन देखा जाए तो उन्होंने 3.8 बार ऐसा किया है.

आईएमएफ ने जुलाई 2022 के अपने वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के अपडेट में वैश्विक अर्थव्यवस्था की ग्रोथ का अनुमान 0.40 फीसदी घटाकर 3.2 फीसदी कर दिया है. वहीं 2023 में ग्रोथ के अनुमान को 0.70 फीसदी घटाकर 2.9 फीसदी कर दिया है. इसमें कहा गया है कि चीन और रूस में मंदी के कारण दुनिया की जीडीपी वास्तव में दूसरी तिमाही में सिकुड़ी है.
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1970 के बाद से ग्लोबल ग्रोथ केवल पांच बार 2 फीसदी से नीचे गिरी है. 1973, 1981 और 1982, 2009 और 2020 में COVID-19 महामारी की वजह से मंदी आई है.

वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में 2022 के लिए भारत की वृद्धि दर के अनुमान को भी 0.8 फीसदी घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया है. आईएमएफ ने अप्रैल 2022 में भारत की वृद्धि दर के अनुमान को 8.2 प्रतिशत रखा था. पिछले साल भारत की अनुमानित आर्थिक वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत थी. आईएमएफ के अनुसार अगले वर्ष 2023 में भारत की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रह सकती है.

आईएमएफ की रिपोर्ट में वर्ष 2022 के दौरान अमेरिका की आर्थिक वृद्धि दर 2.3 प्रतिशत, जर्मनी-1.2, फ्रांस-2.3, इटली-3, जापान-1.7, ब्रिटेन-3.2, चीन-3.3, रूस-6.0, ब्राजील-1.7 तथा दक्षिण अफ्रीका की वृद्धि दर 2.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है. रिपोर्ट में अमेरिका की अगले वर्ष की वृद्धि दर एक प्रतिशत, चीन-4.6, दक्षिण अफ्रीका-1.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है.

सर्वे के मुताबिक भारत में मंदी की आशंका नहीं लेकिन एक्सपर्ट्स की चेतावनी

ब्लूमबर्ग के एक सर्वे के मुताबिक भारत में मंदी की आशंका अभी बिल्कुल भी नहीं है. वहीं क्रिसिल के चीफ इकनॉमिस्ट के अनुसार अमेरिका की मंदी का असर भारत की मंदी तीव्रता पर देखने को मिल सकता है. मंदी से भारत का निर्यात घट सकता है.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को व्यापार करने के लिए डॉलर की जरूरत होती है. कुछ देश को छोड़ दिया जाए तो विश्व के लगभग सभी देश भारत से डॉलर में ही सामान का आयात-निर्यात करते हैं. ऐसे में भारत के इंपोर्ट के खर्च और बढ़ सकते हैं. डॉलर के चढ़ने से रुपये के और नीचे जाने का डर बना हुआ है जो पहले ही 80 प्रति डॉलर के स्तर को छू चुका है.

केवल 2022 में ही भारतीय बांड और इक्विटी बाजार से विदेशी निवेशकों ने 30 अरब डॉलर से ज्यादा का पूंजी निकाल ली है.
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देश-दुनिया में क्या असर?

इस समय भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई का रेपो रेट 4.90 फीसदी पर है. अगर रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है तो एक बार फिर न केवल कर्ज महंगा हो जाएगा बल्कि मौजूदा कर्ज लिए हुए ग्राहकों की ईएमआई भी बढ़ जाएगी.

बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार महंगाई को लेकर रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) से लेकर लार्सन ऐंड टुब्रो (L&T), अल्ट्राटेक, जेएसडब्ल्यू स्टील, हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL) और आईटीसी तक सतर्क होती दिख रही हैं. उनका कहना है कि समग्र मांग एवं निवेश के लिहाज से अनिश्चितता का माहौल दिख रहा है.

बीते कुछ समय से फूड डिलिवरी से लेकर एडटेक और फिनटेक तक तमाम क्षेत्रों की स्टार्टअप में छंटनी की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. वहीं आईटी उद्योग की बात करें तो निफ्टी आईटी सूचकांक में जनवरी 2022 के बाद से 30 फीसदी की गिरावट आई है जो निफ्टी में आई छह फीसदी की गिरावट से काफी ज्यादा है.

भारतीय शेयर मार्केट्स की स्थिति पहले से ही कुछ ठीक नहीं है. ऐसी स्थिति में फेड द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि करने से डॉलर की अमेरिका में वापसी होगी. अगर विदेशी निवेशक तेजी से बांड और इक्विटी मार्केट में बिकवाली करेंगे, तो डॉलर और मजबूत होगा और रुपये में गिरावट आएगी. रुपये में गिरावट आने से आयात महंगा होगा. जिसका सबसे ज्यादा असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर दिखेगा. और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी से महंगाई में बढ़ोतरी होगी जिसका सीधा आम आदमी की जेब पर असर होगा.

चीन अपनी मैन्युफैक्चरिंग के लिए दुनिया के कई देशों से कच्चा माल आयात करता है और यदि चीन के उद्योगों ने उत्पादन में कटौती की तो इससे पूरी दुनिया की सप्लाई चेन प्रभावित होगी.

आईएमएफ के मुताबिक अगर रूस ने यूरोप को गैस सप्‍लाई बंद कर दी तो अगले साल अमेरिका और यूरोप दोनों की विकास दर शून्‍य हो जाएगी. इसका असर अन्‍य देशों पर भी बखूबी पड़ेगा, क्‍योंकि अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है और वहां मंदी आने पर वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था बुरी तरह लड़खड़ा जाएगी.

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