अमेरिका ने वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या पर इंटेलिजेंस रिपोर्ट को डिक्लासिफाई कर दिया है. जो बाइडेन प्रशासन ने सार्वजानिक रूप से सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) को खशोगी की हत्या का दोषी ठहराया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, MBS ने तुर्की के इस्तांबुल में एक ऑपरेशन की अनुमति दी, जिसके तहत पत्रकार जमाल खाशोगी को पकड़ने या मारने का काम दिया गया था.
रिपोर्ट कहती है MBS के प्रभाव को देखते हुए, बहुत ज्यादा संभावना है कि अगर MBS ने अनुमति ना दी होती, तो यह हत्या हो पाती. यह हत्य MBS द्वारा विदेशों में अपने आलोचकों को हिंसा से शांत करने वाले तरीकों की भी पुष्टि करती है.
इस कदम के साथ ही ट्रंप प्रशासन के दौर में मजबूत हुए अमेरिकी-सऊदी रिश्तों के तनावपूर्ण होने की पूरी संभावना है. लेकिन ऐसा सिर्फ इस रिपोर्ट की वजह से नहीं होगा.
जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका एक के बाद एक ऐसे कदम उठा रहा है जिससे मिडिल ईस्ट का सबसे ताकतवर सुन्नी मुस्लिम देश खफा हो सकता है. खशोगी पर इंटेलिजेंस रिपोर्ट ट्रंप प्रशासन में ही सामने आ सकती थी, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने MBS के साथ अपने रिश्ते की वजह से ऐसा होने नहीं दिया.
बाइडेन की डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस (DNI) एवरिल हैन्स ने सीनेट में अपनी पुष्टि की सुनवाई के दौरान ऐलान किया था कि ‘नया प्रशासन पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या से जुड़ी इंटेलिजेंस रिपोर्ट सार्वजानिक करेगा.’
बाइडेन ने MBS का कद कम किया
सऊदी अरब के शासक किंग सलमान हैं, लेकिन उनके बेटे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को 'वास्तव में' शासक माना जाता है. ट्रंप प्रशासन के समय में राष्ट्रपति और उनके वरिष्ठ सलाहकार सऊदी अरब में सीधे MBS से बात करते थे. मीडिया ट्रंप के दामाद जेरड कुशनर और MBS की दोस्ती की कहानियां लिखा करती थी.
अमेरिकी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद मोहम्मद बिन सलमान को बचाने का श्रेय भी कुशनर और डोनाल्ड ट्रंप को ही जाता है. अमेरिकी कांग्रेस उस समय MBS और सऊदी के कई अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाना चाहती थी, लेकिन ट्रंप ने ऐसा नहीं होने दिया.
हालांकि, बाइडेन के चुनाव जीतने से पहले से ही सऊदी अरब में माहौल बदल गया था. चुनाव कैंपेनिंग के दौरान बाइडेन ने कहा था कि उन्हें 'कोई शक नहीं है कि मोहम्मद बिन सलमान ही खशोगी की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं.' चुनाव जीतने के बाद बाइडेन के रवैये में और बड़ा बदलाव देखने को मिला.
16 फरवरी को व्हाइट हाउस प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि 'अमेरिका सऊदी अरब के साथ अपने रिश्ते को ठीक करने जा रहा है.' साकी ने कहा, "इसमें समकक्ष के साथ ही बातचीत किया जाना शामिल है. राष्ट्रपति बाइडेन के समकक्ष किंग सलमान हैं."
इसे सीधे तौर पर मोहम्मद बिन सलमान का कद कम करने के तौर पर देखा गया. ट्रंप प्रशासन में MBS ही सभी मसलों पर बातचीत किया करते थे. पर अब बाइडेन सीधे किंग सलमान से ही बात करेंगे. 25 फरवरी को इसका नमूना देखने को मिला, जब बाइडेन ने सऊदी अरब के शासक के साथ पहली बार बात की.
यमन युद्ध में मदद रोकना
2011 में अरब स्प्रिंग के समय यमन में राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे. विरोध की वजह से सालेह ने अपने डिप्टी अब्द्रब्बुह मंसूर हादी को सत्ता सौंप दी थी. हादी कभी भी यमन पर ठीक से नियंत्रण नहीं कर पाए और इसके पीछे भ्रष्टाचार, दक्षिण में विद्रोह जैसी कई वजहें हैं.
2014 में हादी की कमजोरी का फायदा उठाते हुए हूदी विद्रोहियों ने यमन की राजधानी सना पर कब्जा कर लिया था. क्योंकि हूदी जैदी शिया मुस्लिम हैं, इसलिए सऊदी अरब, UAE और दूसरे सुन्नी देशों ने उनकी बढ़ती ताकत को ईरान की साजिश समझा. 2015 में सऊदी अरब ने कई और देशों के साथ यमन में युद्ध शुरू कर दिया. तब से अब तक अमेरिका मजबूती से सऊदी के साथ खड़ा था.
‘मजबूती’ का आलम ये था कि 2016 में एक सऊदी जेट ने अमेरिकी बमों को सना में एक जनाजे पर गिरा दिया था. इसमें 140 से ज्यादा लोगों की मौत हुई लेकिन अमेरिकी समर्थन खत्म नहीं हुआ. 2018 में एक और सऊदी जेट ने यमनी स्कूल बीएस को अमेरिकी बमों से उड़ा दिया. 44 स्कूली लड़के मारे गए पर अमेरिका सऊदी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा.
ये सब 4 फरवरी 2021 को बदल गया जब नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया कि सऊदी अरब को यमन में मदद बंद की जा रही है. बाइडेन ने इस फैसले को 'अमेरिका के लोकतंत्र, कूटनीति और मानवाधिकारों के रास्ते पर लौटने का हिस्सा' बताया.
एक्सपर्ट्स इसे अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव के तौर पर देखते हैं. सऊदी और ईरान ने यमन को प्रॉक्सी युद्ध की एक और जमीन बना लिया है. नतीजा ये हुआ है कि यमन अब इतिहास की सबसे बड़ी 'मानवीय आपदा' से गुजर रहा है.
2019 में अमेरिकी संसद में एक प्रस्ताव लाया गया था, जो यमन में अमेरिकी मिलिट्री मदद और सऊदी अरब-UAE को 8 बिलियन डॉलर के हथियार देने पर रोक लगाना चाहता था. तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे वीटो कर दिया था.
अपने चुनावी कैंपेन के दौरान जो बाइडेन ने कहा था कि 'उनकी योजना है सऊदी अरब सब चीजों की कीमत चुकाए और उसे वो अछूत बना दिया जाए, जो वो है.' शायद 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले से पहले कोई अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसा कर भी सकता था. अब ऐसा कर पाना नामुमकिन सरीखा काम है. हालांकि बाइडेन ने अभी तक जिस तरह के कदम उठाए हैं, वो भी कुछ साल पहले तक अकल्पनीय थे.
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