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सुरक्षित बीत गया 2015, पर नए साल में भारत को रहना होगा चौकन्ना!

अगला वर्ष भारत के लिए विनाश नहीं लाएगा, लिख रहे हैं अमर भूषण.

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आम नजरिए से देखा जाए, तो साल 2015 में भारत की सुरक्षा की स्थिति काफी संतोषजनक रही. पेशेवर सवाल उठाने वालों को नजरअंदाज कर दिया जाए, तो इस साल कोई बड़े सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए. राह से भटके बुद्धिजीवियों के भड़काने पर जो हिंसा की छिटपुट घटनाएं हुईं भी, उन पर भी जल्दी ही काबू पा लिया गया.

अगला वर्ष भारत के लिए विनाश नहीं लाएगा, लिख रहे हैं अमर भूषण.
नगा फ्रेमवर्क एकॉर्ड पर हस्ताक्षर किए जाने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एनएससीएन (आईएम) के महासचिव टी. मुईवा (दाएं से तीसरे).

सिर्फ छत्तीसगढ़ को छोड़कर, जहां नक्सल हिंसा से हुई मौतों की संख्या बढ़ी, बिहार, झारखंड, ओडि‍शा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश आदि राज्य इस तरह की घटनाओं को काबू में रखने में सफल रहे. नगालैंड में भी एसएस खापलांग के गुट को छोड़कर बाकी सभी विद्रोही समूहों ने नगा फ्रेमवर्क एकॉर्ड पर हस्ताक्षर कर राज्य में शांति लाने की राह आसान कर दी.

अनूप चेतिया का पकड़ा जाना भी अहम घटना रही, जिसके चलते अब उल्फा आतंकवाद के समाधान की उम्मीद की जा सकती है. इसी तरह छोटा राजन को वापस भारत लाया जाना भी कई पिछले मामलों के खात्मे की आस जगाता दिख रहा है.

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स्नैपशॉट

सुरक्षा के क्षेत्र की चुनौतियां


  • नगा फ्रेमवर्क एकॉर्ड पर हस्ताक्षर किया जाना केंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि रहा, जिसके चलते शांति और विकास को नागालेंड में एक मौका मिल सकता है.
  • यह सच है कि आईएसआईएस कई नौजवानों को लुभाने में सफल रहा, पर सुरक्षा एजेंसियों की सजगता के कारण ऐसे युवाओं को पहचान कर उन्हें पुनर्वास के लिए भेज दिया गया.
  • पाकिस्तान से बातचीत को बढ़ाना होगा, पर हाफिज सईद और दाऊद पर यथास्थिति बनाए रखने से बचना होगा.
  • पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसियों को भविष्य में संदिग्ध बन सकने वाले लोगों की पहचान करने और उन्हें प्रभावहीन करन के ऐसे तरीके निकालने होंगे जो आसानी से नजर में न आएं.

आतंकवादी घटनाओं में कमी

इस साल भारत आतंकवादी घटनाओं से काफी हद तक बचा रहा. यह सच है कि आईएसआईएस कई नौजवानों को लुभाने में सफल रहा, पर सुरक्षा एजेंसियों की सजगता के कारण ऐसे युवाओं को पहचान कर उन्हें पुनर्वास के लिए भेज दिया गया.

अगला वर्ष भारत के लिए विनाश नहीं लाएगा, लिख रहे हैं अमर भूषण.
मुंबई में 26 नवंबर 2015 को आतंकवाद के खिलाफ मुस्लिम संगठनों द्वारा निकाली गई रैली के दौरान प्लेकार्ड थामे एक बच्चा.

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा की स्थितियां न तो खराब हुईं और न ही बेहतर हुईं. आईएसआईएस और पाकिस्तान का झंडा लहराने की कई बार हुई घटनाओं के पीछे का मकसद अलगाववादियों के शक्ति प्रदर्शन से ज्यादा सरकार को परेशान करना था.

अपनी युद्धनीति को उलटते हुए इस बार घरेलू आतंकवादियों से तो सख्ती से निपटा ही गया, साथ ही युद्ध विराम का उल्लंघन होने पर भी तुरंत कार्रवाई की गई. सालों की राजनीतिक और सैनिक शक्ति की नुमाइश के बाद दोनों देशों के नेताओं को यह समझ आ गया कि अब उन्हें बात कर लेनी चाहिए.

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बीते शुक्रवार को लाहौर में मिले भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शरीफ.

पाकिस्तान से बातचीत

अगर देश की सुरक्षा की स्थिति अगले साल भी इसी तरह बरकरार रही, तो इसे एक सफलता के तौर पर ही देखा जाएगा. पाकिस्तान को लेकर सही निर्णय लेते रहना इस सफलता का एक जरूरी कारण होगा.

इसकी रणनीति आसान होनी चाहिए. युद्ध विराम उल्लंघन और सीमापार से आने वाले आतंकवाद पर सख्ती बरती जाए और सेना व सुरक्षा एजेंसियों की मुस्तैदी को दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच होने वाली आगामी वार्ताओं के चलते कम न किया जाए.

हालांकि अब बड़े-बड़े बयान देने या हाफिज और दाऊद के प्रत्यार्पण की बातों से बचा जाना चाहिए, ताकि दोनों देशों के प्रधानमंत्री सकारात्मक मुद्दों पर बात कर सकें.

हमें यह समझ लेना चाहिए कि एलओसी को एक अंतरराष्‍ट्रीय सीमा में बदलकर सिर्फ वक्त ही कश्मीर मुद्दे का हल दे सकता है. तब तक भारत को सिर्फ अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करते रहना होगा, ताकि कारगिल युद्ध जैसी स्थिति दोबारा पैदा होने पर परेशानी न हो.

साथ ही पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसियों को भविष्य में संदिग्ध बन सकने वाले लोगों की पहचान करने और उन्हें प्रभावहीन करन के ऐसे तरीके निकालने चाहिए, जो आसानी से नजर में न आएं.

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चीन के प्रीमियर ली से मिलते भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह. (फोटो: Reuters)

बढ़ानी होगी चौकसी

चीन के भारत से युद्ध करने की आशंका न के बराबर है, पर वह सीमा पर अपनी निगरानी बढ़ाने में कोई कसर नहीं रखेगा और अरुणाचल प्रदेश पर अपने कब्जे की बात भी बार-बार दोहराता रहेगा.

हमारे इतिहास को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि नेपाल के साथ मौजूदा गतिरोध बना रह सकता है. पर शायद अब तक हमने यह सीख ही लिया है कि पड़ोसियों पर मर्दानगी दिखाना बुद्धिमत्ता का काम नहीं है.

बांग्‍लादेश की मौजूदा सरकार का रवैया दोस्ताना है. पर इस सरकार का बांग्‍लादेश में पैर जमाते आईएसआई, जमात और अब आईएसआईएस पर कोई नियंत्रण नहीं है. ऐसे में ये संगठन बांग्लादेश की सीमा से भारत में आतंकवाद भेज सकते हैं. ऐसे में भारत को अपनी सीमाओं पर चौकसी बढ़ानी होगी.

चरमपंथ का खतरा

आईएसआईएस के रंगरूटों को भर्ती से पहले पहचानने और उनका पुनर्वास कराने के तरीकों पर काम करना भी बेहद जरूरी हो जाता है, क्योंकि सभी आम संदिग्धों को संदेह के घेरे में रखना सही नहीं होगा. पर पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसियों को आईएसआईएस के चंगुल में फंसने वाले लोगों पर शुरू से निगरानी रखने के कुछ ऐसे तरीके निकालने होंगे कि देश की सुरक्षा भी खतरे में न आए और उनकी धर्मनिरपेक्षता भी बनी रहे.

नक्सल प्रभावित क्षेत्र के भी और कम होने के ही आसार हैं, क्योंकि इनसे ताकत से निपटने और मुख्यधारा में लौटने के इच्छुक लोगों को पुनर्वास कराने की सरकार की नीति साफ हो चुकी है.

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20 नवंबर, 2015 को पाकिस्तान और आईएसआईएस का झंडा दिखाते कश्मीरी युवक. (फोटो: Reuters)

असम, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में आने वाले चुनावों के मद्देनजर सांप्रदायिक घटनाएं बढ़ने की आशंका है, पर अगर पीछे की तारीखों पर नजर डाली जाए, तो लगता है कि इन घटनाओं को बड़ा नहीं होने दिया जाएगा.

राम मंदिर बनने की बातें होंगी. दोनों ओर से दावे भी किए जाएंगे, पर केंद्र में बीजेपी की सरकार होने के कारण स्थिति हाथ से नहीं निकलेगी.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश के भीतर और बाहर, सुरक्षा की स्थिति संतोषजनक रहेगी.

(इस आलेख के लेखक अमर भूषण हैं, जो केंद्रीय सचिवालय के पूर्व विशेष सचिव हैं)

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