नोटबंदी के बाद कैशलेस इकोनॉमी की खूब चर्चा हो रही है. ब्लैकमनी और भ्रष्टाचार रोकने के लिए इसे कारगर हथियार बताया जा रहा है. बात तो एकदम ठीक है, पर सवाल यह है कि नोटों की भारी कमी से जूझ रहा हमारा देश कैशलेस ट्रांजेक्शन के लिए अभी कितना तैयार हो पाया है.
बैंकों और एटीएम की लाइनों में कैश के लिए खड़े लोगों को कैशलेस इकोनॉमी की सलाह देना बहुत-कुछ वैसा ही है, जैसे भूख-प्यास से व्याकुल शख्स को उपवास और इसके फायदे समझाए जाएं. उपवास के फायदे समझने की बुद्धि तभी काम करेगी, जब पेट भरा होगा.
ब्लैकमनी पर बिना बताए, अचानक प्रहार करने का सरकार का तर्क समझा जा सकता है. पर कैश की भारी कमी और उससे उपजे हालात को कैशलेस इकोनॉमी के सिद्धांत के पर्दे से ढकने की कोशिश को वाजिब नहीं ठहराया जा सकता.
इस मसले पर पीएम नरेंद्र मोदी अपने 'मन की बात' पहले ही देश के सामने रख चुके हैं. पीएम आजकल जहां भी जनसभा में जाते हैं, वहां लोगों को कैशलेस पेमेंट सिस्टम के बारे में समझाते हैं. उन्होंने कई ट्वीट करके भी लोगों को यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) से जुड़ने के तरीके समझाए हैं.
प्रधानमंत्री का मानना है कि जिस तरह लोग मोबाइल रिचार्ज करना सीख गए, वैसे ही वे ई-वॉलेट से मनी ट्रांसफर करना भी सीख जाएंगे. बीते दिनों एक रैली में उन्होंने अपनी बात को जोरदार ढंग से रखते हुए कहा:
आप लोग मोबाइल रिचार्ज करना सीखने के लिए कभी किसी स्कूल में गए थे क्या?
तर्क में दम है. मोबाइल रिचार्ज करना सीखने के लिए किसी को स्कूल नहीं जाना पड़ता...पर उन लोगों को, जो स्कूल जाकर पहले ही अक्षर और गिनती का ज्ञान हासिल कर चुके हैं. यह तो हुई एकदम बुनियादी बात. जरा यह भी देखिए कि आज की तारीख में कैशलेस सिस्टम को अपनाने के लिए देश कितना तैयार है. देश तो छोड़िए, राजधानी दिल्ली के बीचोंबीच स्थित संसद भवन परिसर और अहम मंत्रालयों के भीतर क्या स्थिति है.
पिछले एक सप्ताह के भीतर आई रिपोर्ट पर गौर करें, तो संसद भवन परिसर, शास्त्री भवन स्थित कई मंत्रालयों, रेल भवन और सत्ताधारी बीजेपी के मुख्यालय की कैंटीनों में भी ज्यादातर जगह कैशलेश पेमेंट की सुविधा अब तक नहीं है. गौर करने वाली बात यह है कि रेल भवन में रेल मंत्रालय है. शास्त्री भवन में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, कानून व न्याय समेत कई अहम मंत्रालय हैं.
रिपोर्ट सामने आने के बाद संबंधित संस्थान जैसे अब नींद से जाग गए हों. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसी 30 नवंबर को संसद की कैंटीन में कैशलेस सुविधा का उद्घाटन किया. रेलवे की मदद से संसद भवन के भीतर की कैंटीनों में कार्ड स्वाइप करने वाली मशीनें लगाई जा रही हैं.
यह हाल जब राजधानी और अहम सरकारी महकमों का है, तो देश के बाकी हिस्सों में मौजूद संस्थानों, दूर-दराज के छोटे कारोबारियों और बाशिंदों के बारे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.
देश धीरे-धीरे कैशलेस इकोनॉमी की ओर बढ़ेगा, पर आज के हालात से मुंह नहीं चुराया जा सकता.
सवा अरब के इस देश में जटिलताएं भी विशाल हैं. निरक्षरता, अपना मोबाइल न होना, आधार कार्ड न होना, बैंक खाता न होना, अकाउंट होने के बावजूद नेट बैंकिंग से जुड़ा न होना, इंटरनेट के इस्तेमाल का ज्ञान न होना, ऑनलाइन फ्रॉड का शिकार होने का डर, इंटरनेट कनेक्टिविटी न होना...मुश्किलों का अंत यहीं नहीं हो जाता.
इस बारे में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के तर्क को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता. उनका कहना है, ‘‘पहले व्यवस्था करनी होगी. इस देश में 70 करोड़ से अधिक लोग 10,000 रुपया प्रति महीना कमाते हैं, वे क्या करेंगे?'' मतलब जिनकी कमाई बेहद कम है, वे उसे बैंकों में जमा ही नहीं कर सकते, फिर ऐसे लोगों के लिए कैशलेस ट्रांजेक्शन का क्या अर्थ रह जाता है.
ऐसे हालात में यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस या पेटीएम जैसे पॉपुलर पेमेंट सिस्टम को अपनाने के लिए देश की बड़ी आबादी को अब भी लंबा इंतजार करना होगा.
दिलचस्प बात यह कि पूरा देश 'कैशलेस' होते-होते आरबीआई हजारों टन नए नोट छाप चुका होगा और आज के नए नोट पुराने पड़ चुके होंगे. तब किसी-किसी पिंक या ग्रीन नोट पर लिखा मिलेगा '***** बेवफा है'.
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