नोटबंदी को पांच हफ्ते हो गए हैं. इससे कालाधन कितना बरामद हुआ और भ्रष्टाचार पर कितना लगाम लगा, यह कहना अभी मुश्किल है. लेकिन इन चंद दिनों में बैंकों के चक्कर काटने के क्रम में 80 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
लाखों दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी छिन चुकी है. करीब पांच हफ्ते बाद भी बैंकों के बाहर कतार कम नहीं हो रही. इन सबके बीच कैशलेस इकॉनोमी का सपना बेचा जा रहा है.
क्या भारत को कैशलेस इकोनॉमी बनाना मुमकिन है? इस सवाल का जवाब जानने से पहले एक नजर उन देशों पर, जहां कैशलेस कारोबार सबसे अधिक होता है.
क्या इन देशों ने कभी नोटबंदी की?
इनमें से किसी ने भी ऐसा कुछ नहीं किया है. अमेरिका ने 1969 में 100 डॉलर से अधिक के नोट यानी 1,000 और 10,000 डॉलर के नोट बंद कर दिए गए थे. तब ये नोट गिनती के लोगों के पास हुआ करते थे. इसलिए आम जनता को दिक्कत नहीं हुई.
हालांकि कुछ देशों ने समय-समय पर पुराने नोट बदले हैं.
फिर ये देश कैशलेस कारोबार की ओर कैसे बढ़े?
किसी देश के कैशलेस होने का सीधा संबंध नागरिकों की आर्थिक-सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति से है. अगर किसी देश के नागरिक पूरी तरह शिक्षित हों, वहां की सरकार नागरिकों को स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराती है, वहां के नेता और अफसर ईमानदार हों और तकनीक का विस्तार घर-घर तक हो जाए, तो वहां के ज्यादातर लोग कैशलेस कारोबार करने लगते हैं.
इसे थोड़ा और विस्तार से जानने के लिए एक नजर इन आंकड़ों पर:
सोर्स : (प्रति व्यक्ति आय की गणना जीडीपी को किसी देश की उस साल की एवरेज पाॅपुलेशन से डिवाइड करने के बाद हासिल की जाती है. ऊपर दिए गए डेटा अंतरराष्ट्रीय डॉलर में हैं और इन्हें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जारी किए हैं.
ह्यूमन इंडेक्स - संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी की गई है. इंटरनेट यूजर्स की संख्या इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन्स यूनियन की तरफ से जारी संख्या है.)
भारत में अभी महज 53% लोगों के पास बैंक खाता है. यानी भारत में प्रति 100 व्यक्तियों में से 47 का बैंक खाता ही नहीं है. यही नहीं, जो बैंक अकाउंट हैं, उनमें से 43% डॉरमेंट हैं, यानी डिएक्टिव हैं. इनके जरिए कोई काम नहीं होता.
इस लिहाज से देखा जाए, तो प्रति 100 में करीब 70 व्यक्ति के पास या तो बैंक खाता नहीं है या फिर उनका खाता किसी काम का नहीं है. ये वो लोग हैं, जिनके पास इतने पैसे नहीं होते कि उसे बैंक में रख सकें. मतलब सक्रिय बैंक खाता महज 30 फीसदी आबादी के पास है और इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले महज 26 फीसदी.
अब आप अंदाजा लगा सकता हैं कि कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने की सरकार की मुहिम में कितना दम है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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