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सैलरी बाद में, पहले तो 2.0 टाइप ऑफिस देखते हैं आज के युवा

नई पीढ़ी के लिए पैसे इतने अधिक जरूरी नहीं हैं, बल्कि उनके लिए काम करने की वजह ज्यादा अहम होती है.

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आज के लीडर्स के लिए मौजूदा समय में सबसे जरूरी मुद्दा टैलेंट मैनेजमेंट का है. उनके लिए इस चुनौती का सबसे बड़े हिस्सा नई सोच रखने वाले युवाओं का है, जो हर कार्यक्षेत्र में मौजूद मिलेंगे. आधुनिक भाषा में इन युवाओं को 'मिलेनियल्स' भी कहा जाता है, जो किसी भी संस्था में एक नई सोच लेकर आते हैं जो कि अब दिख रही है.

उनके लिए पैसे इतने अधिक जरूरी नहीं हैं, बल्कि उनके लिए काम करने की वजह ज्यादा बड़ी होती है.

  • उन्हें केवल आसपास रहना मंजूर नहीं.
  • उन्हें पारदर्शिता पसंद है और उनके भीतर चीजों को सही तरीके से करने का एक अलग ही जुनून होता है.
  • वो कंपनी की शासन प्रणाली को गंभीरता से लेते हैं.
  • अगर उन्हें कुछ नया करने को नहीं मिलता है, तो वो अधीर हो उठते हैं.

'मिलेनियल' का अर्थ उन लोगों से है, जो इंटरनेट से चलती, लगातार आॅनलाइन और सामाजिक स्तर पर जुड़ी दुनिया में पले-बढ़े हैं. अधिकतर मार्केटिंग कंपनी इन्हीं को अपना टारगेट मानकर चलती हैं. ये ऐसे युवा हैं, जो ऐसे किसी लड़के को देखकर हिचकिचाते नहीं है, जिसका नाम शांथी हो, जो नाक में कील पहनता हो, लेकिन उसके बावजूद किसी अमरीकी कंपनी के लिए कोडिंग कर अच्छा पैसा कमा रहा हो.

इनके पास आत्मविश्वास, सपनों के पीछे भागने वाली आदत, अधीरता और कुछ करने की इच्छा इन खूबसूरत सोच वालों को आने वाले कल में मौजूद संस्थानों का एक बेहद अहम हिस्सा बना देते हैं. इसलिए यह पूरी तरह साफ हो जाता है कि जो मौजूदा संस्थान हैं, उन्हें अपने आप को इस तरह से ढाल लेना चाहिए कि वो इन लोगों के साथ काम कर सकें.

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प्रतिभा के साथ विविधता

नई पीढ़ी के लिए पैसे इतने अधिक जरूरी नहीं हैं, बल्कि उनके लिए काम करने की वजह ज्यादा अहम होती है.
दिल्‍ली के एक दफ्तर के अंदर का दृश्‍य (फोटो: सारा हिल्‍टन/ ब्‍लूमबर्ग)

किसी भी कंपनी के ह्यूमन रिसोर्स वाले यह तय करते हैं कि किसी भी व्यक्ति की प्रतिभा को आंकने का पैमाना क्या होगा. लेकिन प्रतिभा का असल मतलब है- विविधता को अपनाना और इस बात को समझना अभी बहुत संस्थानों के लिए बाकी है. इसे लागू करने के लिए जरूरी है कि हम अपने कर्मचारियों को प्रमोशन देने का मानक केवल उसकी प्रतिभा को बनाएं, एक ऐसा वातावरण तैयार करें, जहां कर्मचारियों का कौशल ही उनके प्रदर्शन का मानक बने. उनके कपड़े पहनने का तरीका, वैवाहिक स्थिति या जाति नहीं.

हमें आॅफिस में एक ऐसा कल्चर स्थापित करना होगा, जहां अगर कोई कर्मचारी पूरी कोशिश करने के बावजूद भी कामयाब नहीं हो पाया, तो हमें उसको केस स्टडी बनाते हुए कामयाब होने वाले कर्मचारी की कामयाबी के साथ उनकी नाकामयाबी का भी जश्न मनाना चाहिए.

विविधता एक बहुत बड़ी चुनौती तो है ही, लेकिन साथ में एक बहुत बड़ा अवसर भी है. कोई भी संस्थान अगर विविधता नीतियों को सही बैठा लेता है, तो यह भविष्य में उनके लिए बहुत लाभकारी हो सकता है. यह बात समझनी जरूरी है कि बेहतरीन और अलग सोच रखने वाले दिमाग के धनी लोगों की विविधता से अच्छी कोई और विविधता नहीं है.
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आॅफिस में जिंदगी

जिस तरह से कई लोग आॅफिस और निजी जिंदगी को अलग रखने में यकीन करते हैं, मैं वैसा नहीं मानता. मेरा मानना है कि जो जेनरेशन एक्स या जेनरेशन वाई है, वो दूसरों की तरह अपने जीवन को अलग-अलग हिस्सों में नहीं बांटते हैं. आॅफिस जिम, चिल जोन, बीन बैग, अच्छे से डिजाइन किया आॅफिस, एक कैफेटेरिया, जिसमें पिज्जा और सोडा के साथ मूसली और फल भी रखे हों. ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जो आज के युवाओं को एक काम करने की जगह की तरफ आकर्षित करती हैं.

नई पीढ़ी के लिए पैसे इतने अधिक जरूरी नहीं हैं, बल्कि उनके लिए काम करने की वजह ज्यादा अहम होती है.
सांकेतिक फोटो

जिस तरह हमारे जीवन के हर हिस्से पर तकनीक ने अपनी जगह बना ली है, उससे आॅफिस का काम और बाहर के काम की बीच की जो लकीर थी, वो अब धुंधली पड़ चुकी है. ऐसे में कंपनियों के लिए यह बहुत ही जरूरी हो गया है कि वो अपनी सोशल मीडिया और इन्फॉर्मेशन तकनीकों (आईटी) को एक नए तरह से गढ़ें. वहीं एचआर के लिए यह एक कीमती डाटा पूल हो सकता है जिससे वो कर्मचारियों की पसंद के बारे में जान सकते हैं.

हालांकि हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि मिलेनियल्स बहुत ज्यादा अधीर भी होते हैं. आज के समय के युवा किसी भी टेक्निकल दिक्कत या आईटी से जुड़े किसी भी प्रतिबंध को पसंद नहीं करते जो उनके काम के बीच में आती है.

अंत में कंपनियों को तकनीक के इतर कुछ विधायी परिवर्तन भी करने होंगे. स्वास्थ्य, छुट्टियां, उपस्थिति नीतियां और श्रम कानून को लेकर उन्हें अपने नियमों में इस तरह से परिवर्तन करने होंगे, जो उन्हें आगे की तरफ ले जाएं.

जब हमारी कंपनी आरपीजी कॉलेज प्लेसमेंट के लिए जाती है, तो छात्रों को जो चीज हमारी तरफ आकर्षित करती है वो है खूबसूरत तरीके से बने हमारे आॅफिस, जो उन्हें घर जैसा अहसास दिलाते हैं. लेकिन इसके अलावा हमारी जो बात छात्रों को सबसे ज्यादा पसंद है, वो है हमारी 'नो अटेंडेंस पॉलिसी'.

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मैं हूं महत्वपूर्ण

मिलेनियल्स पर अधिकतर खुद में खोए रहने के आरोप लगते रहते हैं. लेकिन मेरा मानना है कि वो एक ऐसी दुनिया में पैदा हुए हैं, जहां उन्हें हर तरह के विकल्प मिलते हैं

क्योंकि इनमें से अधिकतर एकल परिवार में पैदा हुए हैं. ऐसे में उनके पास इस बात की छूट होती है कि वो अपने आसपास सैकड़ों चीजों में से किसी एक को चुन सकें और इस गतिशील दुनिया में अपनी पहचान की मांग कर सकें. वो दिन लद गए जब टॉप के बी स्कूल से पास होकर निकला एक एग्जीक्यूटिव तीन साल आॅफिस में अपने काम में बदलाव या फिर प्रमोशन का इंतजार करता था.

जब तक कंपनियां एक ऐसा वातावरण नहीं बनातीं, जहां उनके कर्मचारी घर जैसा अनुभव कर सकें, खुद को खुद की तरह पेश कर सकें और उन्हें वैसा काम न दिया जाए जिसे करने में वो सबसे अच्छे हैं, तब तक कर्मचारियों का कंपनी से जुड़ाव महसूस नहीं करना और उनमें उदासीनता का भाव एचआर वालों के लिए बुरा सपना बना रहेगा.

नई पीढ़ी के लिए पैसे इतने अधिक जरूरी नहीं हैं, बल्कि उनके लिए काम करने की वजह ज्यादा अहम होती है.
अमेरिका के कैलिफोनिया में गूगल का दफ्तर (फोटो: मिशेल शॉर्ट/ ब्‍लूमबर्ग)

कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके जरिए कंपनी अपने कर्मचारियों में 'मैं हूं महत्वपूर्ण' वाला भाव पैदा करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है. इसके लिए कंपनियों को इस क्षेत्र में और गहराई से सोचने की जरूरत है. 2007 में पीडब्ल्यूसी के एक सर्वे में यह बात सामने आई थी कि जिन कंपनियों का सीएसआर उनमें शामिल होने वाले लोगों की पसंद से मिलते थे, उन लोगों की पहली पसंद वही कंपनियां थीं.

आने वाले समय का आॅफिस 2.0 अपने कर्मचारियों से अधिक लचीला और नई चीजें सीखते रहने की उम्मीद करेगा और बदले में उन्हें एक अधिक लोकतांत्रिक और बेहतर वर्कप्लेस देगा. मुझे पता है कि मैं तो ऐसी जगह का हिस्सा जरूर होना चाहूंगा.

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(हर्ष गोयनका आरपीजी इंटरप्राइजेज के चेयरमैन हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. यह स्‍टोरी पहली बार BloombergQuint में प्रकाशित हुई थी.)

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