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दुविधा में मुसलमान, BSP का मुस्‍लि‍म कैंडिडेट चुनें या गठबंधन का

करीब 50 सीटें ऐसी हैं, जहां बीएसपी के मुसलमान प्रत्याशी के सामने सपा-कांग्रेस की ओर से मुसलमान प्रत्याशी नहीं है.

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ज्यादातर सर्वे मुसलमानों का ज्यादातर मत समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ को मिलता दिखा रहे हैं. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का साथ मुसलमानों के लिए स्वाभाविक भरोसा भी बनाता है. इसीलिए 70% से ज्यादा मुसलमान समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठजोड़ के साथ उत्तर प्रदेश में जाने की बातें जानकार कर रहे हैं.

लेकिन क्या समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठजोड़ भर हो जाने से मुसलमानों के लिए तय करना इतना आसान हो गया है. क्या सचमुच मायावती की पार्टी के साथ मुसलमान हाथी की सवारी कतई नहीं करने वाला है?
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इस सवाल का जवाब खोजने के लिए दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों की सूची पर एक नजर डालना जरूरी हो जाता है. मायावती ने कुल 99 सीटों पर मुसलमान प्रत्याशियों को टिकट दिया है. पहले 97 सीटों पर मुसलमान प्रत्याशी थे. लेकिन मुख्तार अंसारी के परिवार की पार्टी कौमी एकता दल के बीएसपी में विलय के बाद 3 सीटों पर मायावती ने अंसारी उनके भाई और बेटे को टिकट दे दिया. 3 में से एक सीट पर पहले भी मुसलमान प्रत्याशी था, जबकि 2 सीटों पर भूमिहार प्रत्याशियों को हटाया गया.

कुल मिलाकर बीएसपी से 99 मुसलमान प्रत्याशी मैदान में हैं. मुसलमानों के खाते में गई अंसारी परिवार वाली तीनों सीटों के बारे में ये लगभग तय माना जा रहा है कि बीएसपी को वहां जीत हासिल हो जाएगी.

लेकिन इतने के बाद भी किसी भी सर्वे में मायावती की बीएसपी के साथ बहुत कम मुसलमान जाता दिख रहा है. तो क्या मायावती ने बिना सोचे-समझे इतने मुसलमानों को टिकट दे दिया है? ऐसा नहीं है.

मायावती की रणनीति एकदम साफ है. मायावती के 99 प्रत्याशियों में 48 मुसलमान प्रत्याशियों के सामने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठजोड़ की तरफ से हिन्दू प्रत्याशी है. और मायावती को इन्हीं 48 सीटों पर मुसलमानों के मत थोक में मिलने का भरोसा है.
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रामपुर सीट से समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान चुनाव लड़ रहे हैं और स्वार सीट से आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम. इन दोनों ही सीटों पर बीएसपी के भी मुसलमान प्रत्याशी ही मैदान में हैं. लेकिन यहां मुसलमानों के मन में किसी तरह के भ्रम की गुंजाइश नहीं है. शायद ऐसी ही सीटों के आधार पर मुसलमानों की स्वाभाविक पसंद के तौर पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठजोड़ दिख रहा है.

इलाहाबाद की दक्षिणी सीट पर हाजी परवेज को फिर से समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया है. 2012 में हाजी परवेज यहां से समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते थे. उन्होंने 29.44% मत हासिल किया था, जबकि बीएसपी के नंद गोपाल गुप्ता नंदी 29.16% मत हासिल करके दूसरे स्थान पर रहे थे. बीजेपी के दिग्गज केशरीनाथ त्रिपाठी 22.85% मत मिले थे.

अब नंद गोपाल गुप्ता नंदी बीएसपी से कांग्रेस होते हुए भारतीय जनता पार्टी से इलाहाबाद की शहर दक्षिणी सीट से प्रत्याशी हैं. समाजवादी पार्टी के हाजी परवेज के सामने बीजेपी के नंदी के अलावा बीएसपी से माशूक खान मुकाबले में हैं.

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ऐसी कम से कम 46 विधानसभा सीटें हैं, जहां हाथी पर सवार मुस्लिम प्रत्याशी हाथ की मदद से साइकिल की सवारी कर रहे मुस्लिम प्रत्याशी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और ब्रज क्षेत्र की ढेर सारी सीटों पर ऐसे मुकाबले साफ नजर आ रहे हैं.

बेहट, देवबंद, मीरापुर, नजीबाबाद, सिवालखास, बुलंदशहर, अलीगढ़, आगरा दक्षिण, फिरोजाबाद, बरहापुर, चांदपुर, नूरपुर, कांठ, मुरादाबाद, कुंदरकी, संभल, अमरोहा, पीलीभीत, शाहजहांपुर ऐसी ही सीटें हैं.



करीब 50 सीटें ऐसी हैं, जहां बीएसपी के मुसलमान प्रत्याशी के सामने सपा-कांग्रेस की ओर से मुसलमान प्रत्याशी नहीं है.
(फोटो: द क्विंट)
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साथ ही करीब 50 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां बीएसपी के मुसलमान प्रत्याशी के सामने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठजोड़ की तरफ से मुसलमान प्रत्याशी नहीं है. एक और समझने वाली बात ये है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन सीटों पर कई जगह पर राष्ट्रीय लोकदल ने मुसलमान प्रत्याशी जरूर उतारे हैं.

लेकिन मुजफ्फरनगर में जाटों और मुसलमानों के बीच हुए संघर्ष के बाद अजित सिंह के पक्ष में मुसलमानों को भरोसा लगभग जाता सा रहा है.

इसलिए 50 के करीब वो विधानसभा सीटें, जहां मुसलमान प्रत्याशी के तौर पर बीएसपी अकेला मजबूत विकल्प दिखेगी भी. 2017 के विधानसभा चुनावों में कहानी बदलने का बड़ा आधार बन सकती हैं.

विवादित बयानों की वजह से चर्चा में रहने वाले विधायक सुरेश राणा को बीजेपी ने फिर से थाना भवन से ही प्रत्याशी बनाया है. भड़काऊ बयानों की वजह से चुनाव आयोग राणा को नोटिस भी दे चुका है. थाना भवन से समाजवादी पार्टी ने डॉक्टर सुधीर पंवार को प्रत्याशी बनाया है, जबकि बीएसपी से अब्दुल राव वारिस मैदान में हैं. जाहिर है समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठजोड़ और बीजेपी से हिन्दू प्रत्याशी होने से बीएसपी के अब्दुल राव वारिस को इसका फायदा मिल सकता है.

शामली, बुढ़ाना, सरधना, मेरठ दक्षिण, बागपत, लोनी, मोदीनगर, सिकंदराबाद, स्याना, अतरौली, धामपुर, बिजनौर, सहसवान, बिलसी, बरेली, फरुखाबाद, छिबरामऊ ऐसी ही सीटें हैं. जहां बीएसपी ने ही मुसलमान प्रत्याशी को चुनाव में उतारा है. कुल मिलाकर मायावती भले ही मीडिया में नहीं दिख रही हों, लेकिन प्रत्याशियों के चयन में मायावती की रणनीति साफ दिखती है. ये रणनीति काम कर गई तो, सारे पूर्वानुमान धरे के धरे रह जाएंगे.

(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्‍ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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