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‘दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं ने BSP सरकार के लिए कमर कस ली है’

महाराष्ट्र, गुजरात में 8 हजार करोड़ रुपये की मूर्तियां लग रही हैं, इन सरकारों को मूर्ति वाली सरकार क्यों नहीं कहते ?

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लोकसभा चुनाव से पहले हुए मुजफ्फरनगर दंगों का दंश आज तक उत्तरप्रदेश के लोग नहीं भूला पाए हैं. दंगों के पीड़ित अब भी दर दर भटकने को मजबूर हैं. मैं मुजफ्फरनगर दंगों की बात इसलिए कर रहा हूं, कि यूपी चुनाव में बीजेपी के नेताओं की भाषा ऐसी है जो समाज को बांटकर दंगा करा सकती है.

यूपी चुनाव में 5वें चरण की वोटिंग हो चुकी है. अपनी हार देखते हुए चुनावी रैलियों में पीएम मोदी समेत बीजेपी के नेता सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाली भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये लोग कब्रिस्तान-श्मशान पर लोगों को बांटकर चुनावी रोटियां सेंकना चाहते हैं. बीजेपी की ये भाषा पार्टी की हताशा और निराशा को दिखाती है.

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नोटबंदी से त्रस्त है जनता

नोटबंदी के बाद प्रदेश का नौजवान, किसान और हर एक शख्स समझ गया है कि बीजेपी अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती है. नोटबंदी से करीब सवा सौ लोगों की जान चली गई. प्रधानमंत्री नीता अंबानी के हॉस्पिटल का उद्घाटन करने जाते हैं तो फेसबुक पोस्ट या ट्वीट करना नहीं भूलते, ऐसे पीएम ने एक बार भी अपने ‘मन की बात’ में उन लोगों का जिक्र नहीं किया जिनकी जान नोटबंदी ने ले ली.

अब यूपी की जनता समझ चुकी है कि प्रदेश में इन सब समस्याओं से निजात बीएसपी की सामाजिक समरसता वाली सरकार ही दिला सकती है.

यूपी की जनता को अब और दंगे नहीं चाहिए. अखिलेश यादव की सरकार में 5 साल में 400 से ज्यादा दंगे हुए. जनता को बहन मायावती की सरकार चाहिए जिसमें दलित, महिलाएं और अल्पसंख्यक खुद को सुरक्षित महसूस किया करते हैं. जिसमें इन वर्ग के लोगों की हितों की बात होती थी. उनकी बातों को सुना जाता था उसे तवज्जों दिया जाता था. 

‘महिलाओं और दलितों के लिए सबसे खराब रहे ये साल’

पिछले 5 साल यूपी में दलितों और महिलाओं के लिए सबसे खराब साल रहे हैं. बदायूं में बच्चियों के शव पेड़ पर टंगे मिलते हैं, कभी बुलंदशहर में गैंगरेप जैसा जघन्य अपराध दिखता है, और अब राज्य में कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति पर रेप का केस दर्ज है. जब राज्य के मंत्रियों पर ही रेप के आरोप होंगे तो प्रदेश की जनता का क्या हाल होगा ? सीएम अखिलेश खुद ऐसे रेप के आरोपी मंत्री का प्रचार करने अमेठी पहुंच जाते हैं. ये सूबे की महिलाओं की इज्जत के साथ बेहद भद्दा मजाक हैं. जिस नेता को तुरंत जेल भेजा जाना चाहिए उसे ये सरकार सम्मानित कर रही है.

एसपी के संरक्षक और तब अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह का वो बयान तो सबको याद ही होगा जब उन्होंने जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट के संदर्भ में रेप जैसे जघन्य अपराध को लेकर ये बोला था कि लड़के हैं तो इनसे गलतियां हो जाती हैं.

जब किसी सत्ताधारी पार्टी का संरक्षक ही ऐसी मानसिकता का शिकार होगा तो सोच लीजिए राज्य में हालात कैसे होंगे. जनता इस चुनाव में एक-एक चीज का हिसाब लेगी. सूबे की हर जाति, संप्रदाय के लोगों की अब यही कामना है कि बहन मायावती 5वीं बार मुख्यमंत्री बने और राज्य में बहुजन समाज पार्टी की सरकार हो.

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‘8 हजार करोड़ की मूर्तियों पर जवाब कोई क्यों नहीं मांगता’

अक्सर बीएसपी की सरकार के बारें में ये कहा जाता है कि इनकी सरकार में पार्क बनवाए गए मूर्तियां लगवाईं गईं. मैं कहता हूं कि महाराष्ट्र में जो 8 हजार करोड़ की मूर्ति लगवाई जा रही है उसका हिसाब कोई क्यों नहीं मांगता ? महाराष्ट्र और गुजरात में मूर्तियां लग रही हैं ऐसी सरकारों को मूर्ति वाली सरकार क्यों नहीं कहा जाता ?

‘मूर्ति वाली सरकार’ कहने वाले अखिलेश की सरकार तो उद्घाटन और शिलान्यास की सरकार हैं. अखिलेश के एक हाथ में कैंची और दूसरे हाथ में फीता होता हैं.

विकास की बात करने वाले अखिलेश ने इन 5 सालों में सारे आधे- अधूरे काम किए हैं. उन्हें शिलान्यास करने, कभी सैफई में तो कभी मुंबई में समारोह मनाने से ही फुर्सत नहीं है. अखिलेश के तथाकथित विकास को जनता समझ रही है.

‘दोनों लड़कों को एक दूसरे का साथ ही पसंद नहीं’

हाल ही में अखिलेश यादव ने कहा था कि परिवार में झगड़ा नहीं होता तो मैं कांग्रेस के साथ नहीं जाता. मतलब साफ है कि अखिलेश राहुल गांधी को बोझ मानते हैं. ‘यूपी के दोनों लड़कों ’को खुद एक दूजे का साथ पसंद नहीं है तो यूपी को क्या पसंद होगा? अमेठी समेत दर्जनभर सीटों पर दोनों पार्टियों ने एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी उतारे हैं. एसपी-कांग्रेस एक दूसरे को हराने में जुटी हैं

बहन मायावती के खिलाफ साजिश

विपक्षी पार्टिया बीच-बीच में बीएसपी के खिलाफ साजिश के तहत गठबंधन की बातें प्लांट करती हैं. बीएसपी का ये साफ स्टैंड है कि किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं होगा. बीएसपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है.

‘बोलते हम भी हैं छापते नहीं, कहते हम भी हैं प्रस्तुत नहीं करते’

बीएसपी के लिए मेन स्ट्रीम मीडिया में पूर्वाग्रह कोई नई बात नहीं है. ऐसा होता आया है कि बीएसपी और दलितों को मीडिया में कम तवज्जो दिया जाता है. आपको बता दें कि बोलते हम भी हैं लेकिन छापता नहीं हैं मीडियावाले, कहते हम भी हैं मीडिया प्रस्तुत नही करती. ऐसे में बीएसपी का अनुरोध रहा है कि उसे मी़डिया में वही तवज्जों मिले जो दूसरी पार्टियों को मिलता है.

नतीजे 11 मार्च को आने हैं लेकिन ये बात साफ है कि यूपी की जनता इस बार सांप्रदायिकता की बात करने वाली पार्टी, दंगे कराने वाली पार्टियों को नकार कर यूपी में बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय वाली बीएसपी को लाने जा रही है.

(संवाददाता अभय कुमार सिंह से बातचीत के आधार पर..लेखक बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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