आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
अभी कुछ ही दिन पहले भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की घोषणा की है, परंतु बड़े दुख का विषय है कि स्वास्थ्य सेवाओं के केंद्र बिंदु अर्थात डॉक्टरों की दशा अत्यंत शोचनीय कर दी गई है. देश के कोने कोने से डॉक्टरों के साथ मारपीट और अस्पतालों में तोड़फोड़ की खबरें प्रतिदिन सुनने में आ रही हैं. डॉक्टर समाज के सबसे प्रबुद्ध वर्ग में आते हैं.
किसी भी देश की आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में प्रगति उस देश के लोगों के स्वास्थ्य पर निर्भर करती है और यदि इन लोगों के स्वास्थ्य के रक्षकों की दशा ही इतनी शोचनीय कर दी जाएगी तो यह देश स्वस्थ कैसे रहेगा?
संविधान अपने देश के नागरिकों की रक्षा का मौलिक अधिकार उन्हें देता है परंतु यहां तो डॉक्टरों को अपने काम पर दिन रात सेवा करते हुए मारा पीटा जाता है, संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है और सबसे दुखद विषय यह है कि तंत्र इस ओर से न केवल अनदेखी करता है, अपितु उदासीन है.
ऐसा प्रतीत होता है कि डॉक्टरों को चारों ओर से समाज के सभी वर्गों ने दबोच लिया है. पुलिस कानून को अपने हाथ में लेने वाले इन अपराधियों को पकड़ने की बजाय उन्हें शह देती है.हमारी न्याय पालिकाएं डॉक्टरों के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए उन्हें फटकार लगाती हैं कि यदि उनको रोगियों के अभिभावकों से इतना ही डर है तो वह अपने पद से त्यागपत्र दे दें और घर बैठें.
विरोध प्रकट करने का मौलिक अधिकार न्यायालयों द्वारा छीन लिया गया है. कल्पना कीजिए की डॉक्टरों के सर पर यदि हमेशा तलवार लटकती रहेगी तो वे लोग रोगी का प्रभावी इलाज करने में किस प्रकार सफल होंगे .
इस देश की यह विडंबना है कि यहां पर डॉक्टर वह प्राणी है जिससे यह अपेक्षित है कि वह दिन रात, किसी भी और चीज की परवाह किए बिना रोगियों की सेवा में रत रहे और नि:शुल्क इलाज करें. किसी भी देश की वास्तविक धरोहर और पूंजी उसके बुद्धिजीवियों का बौद्धिक स्तर होता है. सोचने की बात है कि समाज के सबसे प्रबुद्ध वर्ग को ही दबोच लिया जाए तो देश का विकास किस प्रकार से संभव होगा?
समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग से संबंध रखने वाले इन डॉक्टरों की हालत मजदूरों से भी बदतर हो चुकी है. ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस प्रकार के अपराधिक तत्वों को १४ वर्ष की जेल हो जाती है और भारतवर्ष में न्यायालय यह कहता है कि यदि आपको सुरक्षा की इतनी ही चिंता है तो आप घर क्यों नहीं बैठ जाते.
इस प्रकार के असुरक्षित वातावरण में रहने की अपेक्षा यदि प्रतिभावान युवा और देशभक्त डॉक्टर विदेश पलायन करने के लिए मजबूर हो जाएं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी.
(डॉ. अश्विनी कुमार सेत्या,सीनियर कंसलटेन्ट गेस्ट्रोएनटेरोलॉजिस्ट एन्ड हेपटॉलॉजिस्ट प्रोग्राम डॉयरेक्टर (जीई फेलोशिप), मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली. यह लेखक के निजी विचार हैं, द क्विंट की इनसे सहमति जरूरी नहीं है.)
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