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जडेजा का कद बढ़ा, कोहली की कमी भी महसूस नहीं हुई

फील्डिंग टीम का कैप्टन किसी प्लेयर के सेंचुरी लगाने पर अक्सर उसे बधाई देता था लेकिन इस सीरीज में ऐसा नहीं दिखा.

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2016-17 का लंबा टेस्ट सीजन शुरू होने से पहले कमेंटेटर और क्रिकेट के जानकार कुछ बातों पर सहमत थे:

  1. भारत आसानी से जीत हासिल करेगा लेकिन कितनी आसानी से, इस बारे में अनुमान लगाना मुश्किल है.
  2. विराट कोहली महानता की तरफ बढ़ते रहेंगे और करीब-करीब अकेले ही टीम को जीत दिलाते रहेंगे. इसमें उन्हें आर अश्विन की बॉलिंग से मदद मिलेगी.
  3. पिच इस तरह तैयार की जाएंगी, जिनसे हमें फायदा हो. हमारा पलड़ा भारी रखने में ये बड़ा रोल अदा करेंगी.
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13 टेस्ट मैचों के बाद मैं इन सबको बदलना चाहता हूं:

  1. भारत ने न्यूजीलैंड और बांग्लादेश को आसानी से हराया और कभी भी उसके सामने हार का खतरा नहीं दिखा, लेकिन इंग्लैंड ने कभी-कभी भारतीय टीम की परेशानी बढ़ाई थी. वहीं, ऑस्ट्रेलिया ने आखिरी टेस्ट के एक दिन पहले तक हर मामले में भारत को टक्कर दी.
  2. कोहली से जो उम्मीदें थीं, वह सीजन के पहले हिस्से में पूरी हुईं, लेकिन आखिर में वह उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. चौंकाने वाले अंदाज में दूसरे खिलाड़ियों ने इस गैप को भरा. आखिरी टेस्ट में चोट लगने के कारण कोहली नहीं खेल पाए, लेकिन उनकी कमी नहीं खली.
  3. पहले की तुलना में पिचों को भारतीय टीम के मुताबिक बहुत नहीं ढाला गया. आपको याद है कि जब साउथ अफ्रीका की टीम पिछले सीजन में भारत आई थी, तब हमने किस तरह की पिचें तैयार की थीं? ऑस्ट्रेलिया के साथ सीरीज में सबसे डॉक्टर्ड पिच पुणे की थी, जहां हम इकलौता मैच हारे.
फील्डिंग टीम का कैप्टन किसी प्लेयर के सेंचुरी लगाने पर अक्सर उसे बधाई देता था लेकिन इस सीरीज में ऐसा नहीं दिखा.
(फोटो: IANS)

रवींद्र जडेजा का कमाल

ऑस्ट्रेलिया के साथ सीरीज में रवींद्र जडेजा मैन ऑफ द सीरीज रहे और इस सीजन में उन्होंने कमाल का खेल दिखाया. उनकी बॉलिंग पहले से काफी अच्छी हो गई है, लेकिन कंट्रोल और जवाबदेही के चलते उनकी बैटिंग का नया अंदाज दिख रहा है.

वह दुनिया के सबसे अच्छे बॉलर कहलाने लायक हैं और इसलिए उनकी यह रैंकिंग सही है. वहीं, जल्द ही वह टेस्ट मैच में पहला शतक मारने का जश्न बैट को तलवार की तरह भांजकर मनाते हुए दिखेंगे. अश्विन, साहा और जाडेजा 6, 7 और 8वें नंबर पर बैटिंग करते हैं. दुनिया की किसी टीम के पास इन नंबरों पर इतने अच्छे बल्लेबाज नहीं हैं.

इसके बावजूद मैन ऑफ दी सीरीज के लिए जोरदार मुकाबला था. स्टीव स्मिथ ने इस सीरीज में तीन शतक लगाए थे और इसलिए वह इसके मजबूत दावेदार थे. अगर भारतीय टीम ने सीरीज नहीं जीती होती तो शायद यह खिताब उन्हीं के नाम होता. केएल राहुल ने ओपनिंग करते हुए इस सीरीज में 6 हाफ सेंचुरी लगाईं. चेतेश्वर पुजारा को रन मशीन कहा जाए तो गलत नहीं होगा और वह भी मैन ऑफ दी सीरीज के दावेदार थे और उनका प्रदर्शन इस दावेदारी को सही साबित करता है.

हालांकि, ना ही कोहली और ना ही अश्विन मैन ऑफ दी सीरीज के दावेदार बने. इससे पता चलता है कि भारतीय टीम एक या दो स्टार परफॉर्मर्स के भरोसे नहीं है. टीम के हर प्लेयर ने कभी ना कभी मुश्किलों से उबारा. मुरली विजय ने जहां यह काम एक बार ही किया, वहीं उमेश यादव ने करीब-करीब हर बार कमाल दिखाया.

पढ़ें- विराट कोहली बोले- जी भर कोस लो! फर्क नहीं पड़ता!

फील्डिंग टीम का कैप्टन किसी प्लेयर के सेंचुरी लगाने पर अक्सर उसे बधाई देता था लेकिन इस सीरीज में ऐसा नहीं दिखा.
(फोटो: Liju Joseph/The Quint)
फील्डिंग टीम का कैप्टन किसी प्लेयर के सेंचुरी लगाने पर अक्सर उसे बधाई देता था लेकिन इस सीरीज में ऐसा नहीं दिखा.
(फोटो: Liju Joseph/The Quint)  

जहां कोहली होते हैं, वहां रहाणे भी होते हैं

इस सीरीज में लगा कि कोहली भी इंसान हैं और क्रिकेट इतिहास में महानता छूने के लिए यह जरूरी कदम है. 2014 में इंग्लैंड टूर के ‘डरावने प्रदर्शन’ को वह बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. उसके बाद का कोहली का परफॉर्मेंस इसे साबित करता है.

हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनका प्रदर्शन इंग्लैंड से भी बुरा रहा. यहां खेले गए तीन मैचों में वह सिर्फ 46 रन ही बना पाए. सिर्फ यही कहा जा सकता है कि उन्होंने इस सीरीज में अपनी एग्रेसिव कैप्टनशिप के जरिये योगदान दिया. उनकी कप्तानी भी सीरीज में यादगार रही.

लेकिन रहाणे की पर्सनैलिटी उनके बिल्कुल उलट है. उन्होंने यह काम शांति और सहज अंदाज में किया.

क्रिकेट इतिहास की जो महान टीमें हुई हैं, उनमें ऐसे प्लेयर्स रहे हैं, जो महान खिलाड़ियों के फेल होने पर टीम को संभालते आए हैं. कोहली इस सीरीज में जब भी फेल हुए, टीम ने उसका अहसास नहीं होने दिया. इसलिए भविष्य में जब कोहली फेल होंगे, तो हमें निराश होने की जरूरत नहीं है. हमें पता है कि इस कमी को दूसरे प्लेयर्स दूर कर देंगे.

फील्डिंग टीम का कैप्टन किसी प्लेयर के सेंचुरी लगाने पर अक्सर उसे बधाई देता था लेकिन इस सीरीज में ऐसा नहीं दिखा.
(फोटो: Liju Joseph/The Quint)
फील्डिंग टीम का कैप्टन किसी प्लेयर के सेंचुरी लगाने पर अक्सर उसे बधाई देता था लेकिन इस सीरीज में ऐसा नहीं दिखा.
(फोटो: Liju Joseph/The Quint)

क्या यह भारत की सबसे अच्छी टेस्ट टीम है?

यह आर्टिकल लिखने की रिक्वेस्ट करते वक्त एडिटर ने मुझसे कहा, ‘भारत की बेस्ट टेस्ट टीम का दावा करने से पहले इन लोगों को और क्या हासिल करना होगा?’

मुझे लगता है कि इसके लिए इस टीम को अभी बहुत कुछ करना है. अभी यह स्टेटस तेंदुलकर, द्रविड़, सहवाग, लक्ष्मण और कुंबले जैसे महान खिलाड़ियों की एक दशक पहले की टीम को हासिल है. उन्हें महानता के करीब पहुंचे धोनी, गांगुली, जहीर और गंभीर जैसे प्लेयर्स का भी साथ मिला था.

कोहली की टीम अभी वहां तक नहीं पहुंची है. ना ही वह उसके करीब है. जीत के जश्न में हमें बहकना चाहिए. भारत के लिए होम सीजन बहुत अच्छा रहा है, लेकिन यह भी सच है कि अपनी धरती पर भारतीय टीम को हराना हमेशा से मुश्किल रहा है. इस टीम का असली इम्तेहान इसी साल के आखिरी में होगा, जब वह विदेशी दौरे पर जाएगी. वहां उसका सामना घास से ढंकी पिचों पर होगा, जिसे भारतीय टीम की कमजोरी माना जाता है.

अगर हम ऑस्ट्रेलिया या साउथ अफ्रीका में जीत हासिल करते हैं, जहां हालात हमारी टीम के मुताबिक नहीं होते, तभी इस टीम की महानता की बातें की जा सकती हैं.

एक और बात, मैदान और बाहर के खराब माहौल को दूर करना चाहिए, जिससे खेल दागदार हो रहा है.

विराट के एग्रेशन के लिए कई भारतीय शुक्रगुजार हैं, लेकिन रहाणे ने दिखाया कि आप शांत रहकर भी जीत सकते हैं. ऑस्ट्रेलिया ने क्रिकेट में स्लेजिंग की शुरुआत की थी. दूसरी टीमों ने यह चीज उसी से सीखी है.

क्रिकेट में सज्जनता बनी रहनी चाहिए

मैं ‘जेंटलमैन्स गेम’ का घिसा-पिटा जुमला नहीं दोहराऊंगा क्योंकि वह दौर काफी पहले गुजर चुका है, लेकिन एक दूसरे के प्रति सम्मान और विनम्रता इससे खत्म नहीं होनी चाहिए. प्रसन्ना का कद तब छोटा नहीं हो जाता था, जब वह किसी अच्छे बैट्समन के चौका लगाने पर तालियां बजाकर दाद देते थे.

अक्सर देखा जाता था कि फील्डिंग टीम का कैप्टन किसी प्लेयर के सेंचुरी लगाने पर उसे बधाई देता था. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज में ऐसा नहीं दिखा.

जब कोई बैट्समैन हाफ सेंचुरी लगाने, कोई बॉलर विकेट लेने के बाद जिस दिखावे के साथ जश्न मनाता है, मुझे उससे दुख होता है. वह उपलब्धि का जश्न शांति से क्यों नहीं मना सकता. वह टीम के दूसरे साथियों के गले लगकर उसका मजा ले सकता है. खुशी के मौके पर गाली देना कौन सी अच्छी बात है?

मुझे पता है कि आईसीसी रेड कार्ड्स और डीमेरिट प्वाइंट्स जैसा सिस्टम बनाने जा रहा है. इसके लागू होने के बाद खराब बर्ताव करने पर खिलाड़ी को बाहर भेजा जा सकता है. मुझे लगता है कि यह सिस्टम जल्द बनना चाहिए. एक आखिरी बात, भारत की टीम ने अच्छा खेल दिखाया. लेकिन मुझे यह नहीं पता कि कुलदीप को छोड़कर आप सबने दाढ़ी क्यों रखी हुई है? आपने इसे यूनिफॉर्म बना लिया है. भगवान के लिए, इसे शेव कराइए.

पढ़ें- BCCI ने दोगुनी की कोहली और धोनी की सैलेरी, पुजारा को मिला प्रमोशन

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