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मीट इंडस्‍ट्री को केवल मुस्‍ल‍िम समुदाय से जोड़कर क्‍यों देखा जाए?

धार्मिक पहचान के एंगल से मीट की राजनीतिक समझने की शुरुआत नहीं होनी चाहिए. इससे जातियों और वर्ग का भी पहलू जुड़ा है

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 21 मार्च को यूपी के अवैध और आधुनिक बूचड़खानों को प्रतिबंधित कर दिया. ये बूचड़खाने भैंस के मीट और मटन से कारोबार से जुड़े हुए थे. बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह आधुनिक बूचड़खानों पर बैन लगाने के साथ सभी अवैध बूचड़खानों को बंद करने के लिए कड़ी कार्रवाई करेगी.

हालांकि योगी के आदेश के बाद न सिर्फ अवैध बूचड़खाने बंद हुए, बल्कि वैध बूचड़खानों को भी बिना नोटिफिकेशन के जबरन बंद करा दिया गया. गोरक्षा दलों ने तो हाथरस में मीट की कई दुकानें जला दीं और राज्य में मीट के कारोबार से जुड़े दूसरे लोगों को भी काम-धंधा बंद करने को मजबूर कर दिया. इससे खासतौर पर मुस्लिम प्रभावित हुए हैं.

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी, आरएसएस और दूसरे हिंदू संगठन प्रतिबंध को भारतीय संस्कृति के ‘शाकाहार’ और ‘अहिंसा परमो धर्म:’ वाले पहलू से जोड़ रहे हैं. इसे देश के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के भारतीयकरण की तरह पेश किया जा रहा है.

बीएसपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी इसे सिर्फ मुस्लिम-विरोधी घटना मान रही हैं. उत्तर भारत में मीट की राजनीति को समझने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना होगा. मुस्लिम कुरैशी समुदाय को न सिर्फ मीट प्रोडक्शन का चेहरा बताकर पेश किया जा रहा है, बल्कि उसे मांसाहार का सिंबल भी बताया जा रहा है.

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अभी के राजनीतिक हालात को देखते हुए इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए कि बैन का असर मुस्लिमों पर पड़ा है और इसने मीट इंडस्ट्री को भी सांप्रदायिक रंग में रंग दिया है. इस इमेज को बनाने में मीडिया हाउसों का भी रोल रहा है. उन्होंने इस इंडस्ट्री से जुड़े गैर-मुस्लिम, पिछड़ी जातियों और कमजोर वर्ग के लोगों की अनदेखी की. इसमें कोई शक नहीं है कि मुस्लिम कुरैशी बिरादरी की कसाब कम्युनिटी बफैलो मीट बिजनेस में बड़ा रोल अदा करती है, क्योंकि वह बड़े जानवरों को मारने का काम करती है.

मीट प्रोडक्शन के तीन पहलुओं से पूरी वैल्यू चेन तैयार होती है. इसमें कच्चा माल (जानवर), मीट प्रॉडक्शन, बिक्री और उपभोग शामिल हैं. इसे कई इंडस्ट्रीज भी जुड़ी हैं. फिक्की की 2004 की रिपोर्ट में बताया गया था कि कई पारंपरिक समुदायों की आर्थिक आजादी बफैलो मीट इंडस्ट्री से जुड़ी हुई है. नीचे हम इससे जुड़े की डोमेस्टिक वैल्यू चेन की जानकारी दे रहे हैं, जिसमें पशु पालक, ट्रेडर्स, कसाई, होलसेल मीट डीलर और रिटेलर शामिल हैं.

धार्मिक पहचान के एंगल से मीट की राजनीतिक  समझने की शुरुआत नहीं होनी चाहिए. इससे जातियों और वर्ग का भी पहलू जुड़ा है
मीट इंडस्ट्री से ट्रांसपोर्टर्स, बूचड़खानों में जानवरों की देखभाल करने वाले और वेटेरिनरी डॉक्टर भी जुड़े हैं. इससे म्यूनिसिपैलिटी की तरफ से तैनात किए गए सैनिटरी स्टाफ, होलसेल मीट डीलरों के यहां से रिटेलरों को मीट पहुंचाने वाले रिक्शा चालक और इस तरह के कई तरह के रोजगार जुड़े हैं. ये लोग अलग-अलग धार्मिक समुदाय और जातियों से जुड़े हुए हैं.
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धार्मिक पहचान के एंगल से मीट की राजनीतिक  समझने की शुरुआत नहीं होनी चाहिए. इससे जातियों और वर्ग का भी पहलू जुड़ा है
(इन्‍फोग्राफिक्‍स: The Quint)

पशुपालक हिंदू या सिख समुदाय के होते हैं, जो देश के अलग-अलग इलाकों में रहते हैं. नीचे दिए गए चार्ट में बताया गया है कि डोमेस्टिक और एक्सपोर्ट वैल्यू चेन में अलग-अलग लोगों का क्या रोल है. बफैलो मीट का एक्सपोर्ट बढ़ने से म्यूनिसिपल और प्राइवेट बूचड़खानों की संख्या बढ़ी है, जिससे मीट का प्रोडक्शन काफी अधिक बढ़ा है. इसलिए बैन को सिर्फ मुस्लिम-विरोधी बताना गलत है.

मीट वैल्यू चेन पर करीबी नजर डालने से पता चलता है कि जानवरों को मारने के काम से भी सिर्फ मुस्लिम कुरैशी नहीं जुड़े हैं, जैसा कि राजनीतिक दल और मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है. सच तो यह है कि खटीक और भादिक समुदाय मीट बिजनेस के इस स्टेज से जुड़े हुए हैं. यूपी सहित देश के कई इलाकों में यह देखा गया है. ये समुदाय हिंदू, सिख और कभी-कभी ईसाई समुदाय के लोगों को झटका मीट मुहैया कराते हैं.

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मीट बिजनेस से कई और उद्योग जुड़े हैं

धार्मिक पहचान के एंगल से मीट की राजनीतिक  समझने की शुरुआत नहीं होनी चाहिए. इससे जातियों और वर्ग का भी पहलू जुड़ा है
(इन्‍फोग्राफिक्‍स: The Quint)

मीट की सप्लाई कस्टमर्स, रेस्टोरेंट्स, हॉस्टलों, होटलों, एयरलाइंस और रेलवे को की जाती है. एक अनुमान के मुताबिक, इसके अलावा 168 उद्योग मीट इंडस्ट्री पर निर्भर करते हैं. मीट इंडस्ट्री के कई सह-उत्पादों का इस्तेमाल लेदर इंडस्ट्री, सोप इंडस्ट्री (शैंपू, कंडि‍शनर, मॉश्चराइजर और कई कॉस्मेटिक्स बनाने में होता है), पॉल्ट्री फीड, हैंडीक्राफ्ट, फिश फीड, वूल, जिलेटिन, कुकिंग ऑयल इंडस्ट्री में होता है.

सबसे बड़ी बात यह है कि हमें इस बात पर जोर देना होगा कि धार्मिक पहचान के एंगल से मीट की राजनीतिक को समझने की शुरुआत नहीं होनी चाहिए. इससे जातियों और वर्ग का जो पहलू जुड़ा हुआ है, उस पर भी ध्यान दिलाना होगा.

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(नाजिमा परवीन न्‍यूजीलैंड की विक्‍टोरिया यूनिवर्सिटी ऑफ वेलिंगटन में पीएच.डी. स्‍कॉलर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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