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T-20 फॉर्मेट में बैट्समैन ज्‍यादा फायदे में रहते हैं या बॉलर?

बल्लेबाजों को भले ही गेंदबाजों की तुलना में अधिक पैसा मिलता है, लेकिन मेहनत के मुकाबले मेहनताना गेंदबाजों का अधिक है

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इस साल आईपीएल शुरू होने के दिन एंकर ने सुनील गावस्कर से सवाल पूछा कि टी20 फॉर्मेट में बल्लेबाज अधिक इंपॉर्टेंट हैं या गेंदबाज? गावस्कर ने कहा कि बल्लेबाज, क्योंकि वे 20 ओवर तक खेल सकते हैं, जबकि एक गेंदबाज के पास सिर्फ चार ओवर होते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि जिन चार खिलाड़ियों को अभी सम्मानित किया गया, वे सभी बल्लेबाज हैं. इससे भी उनकी बात सही साबित होती है. गावस्कर बल्लेबाज थे, इसलिए उनका झुकाव बल्लेबाजों की तरफ होना लाजिमी है. लेकिन अगर वह मेरी तरह अर्थशास्त्री होते, तो समझ जाते कि गेंदबाजों को इस गेम में बेहतर डील मिलती है.

वह इसकी भी अनदेखी कर देते कि कई बार औसत बल्लेबाज भी उनकी खिल्ली उड़ाते हुए नजर आते हैं, जब वे उनकी परफेक्ट गेंदों पर छक्के जमाते हैं. अगर गावस्कर अर्थशास्त्री होते, तो यह बात भी समझते कि बल्लेबाजों को भले ही गेंदबाजों की तुलना में अधिक पैसा मिलता है, लेकिन मेहनत के मुकाबले मेहनताना गेंदबाजों का अधिक है. इसी वजह से बेसिक इकोनॉमिक्स गेंदबाजों को विजयी बनाता है.

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बल्लेबाजों को भले ही गेंदबाजों की तुलना में अधिक पैसा मिलता है, लेकिन मेहनत के मुकाबले मेहनताना गेंदबाजों का अधिक है
सुनील गावस्कर (फोटो: BCCI)
आमतौर पर एक गेंदबाज अपने करियर में 100 टी20 मैच खेल पाता है. इस दौरान उससे 400 ओवर गेंदबाजी की उम्मीद होती है. वह इन ओवरों के बदले कम से कम 1 करोड़ रुपये पाने की उम्मीद कर सकता है. सिर्फ 400 ओवर के बदले 1 करोड़ रुपये.

गेंदबाज के लिए कोई विकेट लेना भी जरूरी नहीं है. उसे एक मैच में 24 गेंदें डालनी होती हैं और उम्मीद की जाती है कि वह इनमें से 10 या 11 गेंदों पर एक भी रन न दे.

कम मेहनत से अधिक कमाई

इसका मतलब यह है कि एक गेंदबाज सिर्फ टीम में होने पर ही कमाई का हकदार हो जाता है. उससे और किसी चीज की उम्मीद नहीं की जाती. उसे बस विकेट टु विकेट बॉल डालनी होती है, जो बल्लेबाज के सिंगल रन लेने के बराबर है.

इतना ही नहीं, अगर एक गेंदबाज चार ओवर में 28 रन देता है और एक विकेट भी नहीं लेता, तो उसे अच्छा परफॉर्मेंस माना जाता है. आप इससे बल्लेबाज की तुलना करिए. अगर किसी बल्लेबाज को टीम में बने रहना है, तो उसे करीब आधा दर्जन मैचों में 200 के स्ट्राइक रेट से रन बनाने होंगे.

दूसरे पैमानों पर भी गेंदबाजों से बहुत उम्मीद नहीं की जाती, क्योंकि दर्शक टी20 मैचों में तेजी से रन बनते देखना चाहते हैं. इसलिए अगर किसी गेंदबाज की पिटाई हो रही हो और उसे विकेट भी न मिल रहा हो, तो कोई परवाह नहीं करता.

किसी को कोई अच्छी बॉल या बॉलिंग स्पेल भी याद नहीं रहता. आखिर कोई सिर्फ 24 गेंदों में कितना महान साबित हो सकता है?

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गावस्कर यह भूल गए कि इस मामले में प्रॉडक्टिविटी पैमाना होना चाहिए? कहने का मतलब यह कि किसी को मेहनत के बदले क्या मिलता है. अगर इस पैमाने पर देखें, तो गेंदबाज बल्लेबाजों पर भारी पड़ते हैं.

दूसरे स्पोर्ट्स में क्या ऐसा होता है?

सिर्फ क्रिकेट में ही ऐसा नहीं होता, दूसरे गेम में भी ऐसी चीजें दिखती हैं. हालांकि किसी भी खेल में किसी से उतनी कम उम्मीद नहीं होती, जितनी क्रिकेट में गेंदबाज से. हम फुटबॉल और हॉकी में गोलकीपर की तुलना गेंदबाजों से कर सकते हैं. थ्योरी की बात करें, तो फुटबॉल और हॉकी में यह संभव है कि गोलकीपर सिर्फ अपनी जगह पर खड़ा रहे और कुछ न करे. दूसरे 10 खिलाड़ी अपना काम करें और यह पक्का करें कि गेंद उनकी गोलपोस्ट के करीब न आ पाए.

बल्लेबाजों को भले ही गेंदबाजों की तुलना में अधिक पैसा मिलता है, लेकिन मेहनत के मुकाबले मेहनताना गेंदबाजों का अधिक है
(फोटो: iStock)
यह भी सच है कि अगर कोई गलती होती है, तो गोलकीपर की जवाबदेही होगी. हालांकि गोलकीपर भी प्रॉडक्टिविटी के मामले में गेंदबाजों के आगे कहीं नहीं ठहरते. हालांकि यह भी सच है कि अगर गोलकीपर टीम को हार से बचाता है, तो उसे कहीं अधिक रिवॉर्ड मिल सकता है.

बास्केटबॉल में दोनों टीमों में पांच-पांच प्लेयर्स ही होते हैं. वहां भी सिद्धांत तौर पर यह संभव है कि दोनों टीम के एक-एक खिलाड़ी सिर्फ एक-दूसरे के एरिया में दौड़ते रहें और एक बार भी गेंद टच न करें. हालांकि उनसे इसकी उम्मीद नहीं की जाती. अगर वे ऐसा करेंगे, तो उन्हें टीम से बाहर कर दिया जाएगा.

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टेनिस में भी सिद्धांत तौर पर यह संभव है कि मैच 72 प्वाइंट्स में खत्म हो जाए. इसके लिए 36 एसेज और 36 ऐसी सर्विस करनी होगी, जो सामने वाला रिटर्न न कर सके. हालांकि इसके लिए जिस हैरतअंगेज हुनर की जरूरत पड़ेगी, उससे यह काम भी असंभव हो जाता है.

टी20 का कोई बॉलर ऐसा एफर्ट नहीं करता, लेकिन उसे रिवॉर्ड यानी इनाम उनके जैसा मिलता है. टी20 के गेंदबाज की इस मामले में अगर किसी से तुलना की जा सकती है, तो वह है भारतीय नौकरशाही, जहां कम परफॉर्मेंस की उम्मीद होती है और रिवॉर्ड्स बहुत ऊंचे होते हैं. इसी वजह से देश में कई लोग सरकार के लिए काम करना चाहते हैं.

इस आर्टिकल का सबक यह है कि सभी पेरेंट्स अपने बेटे-बेटियों से बल्लेबाज के बजाय गेंदबाज बनने के लिए कहें. ग्लैमर भले ही बल्लेबाजी में है, लेकिन पैसा गेंदबाजी में.

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(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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