आठ राज्यों की 10 विधानसभा सीटों के नतीजे आ चुके हैं, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा चर्चा दिल्ली के राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजों की हो रही है. हो भी क्यों न, जिस दिल्ली ने दो साल पहले 70 में से 67 सीटें आम आदमी पार्टी को दी थीं, उसी दिल्ली की सिर्फ एक सीट पर हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई.
इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या दिल्ली में एमसीडी चुनाव तक AAP के लिए इवीएम खराब ही रहेंगे? क्योंकि जीत के बाद बीजेपी उम्मीदवार मनजिंदर सिंह सिरसा ने आम आदमी पार्टी पर तंज कसा कि अब तो एमसीडी के नतीजे आने तक ईवीएम खराब ही रहेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में मिली हार के लिए ईवीएम को ही जिम्मेदार बताया था.
राजौरी गार्डन उपचुनाव में बीजेपी के मनजिंदर सिंह सिरसा को 40,602 वोट मिले, वहीं कांग्रेस की मीनाक्षी चंदीला को 25,950 वोट मिले, जबकि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हरजीत सिंह अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. उन्हें कुल 10,243 वोट ही मिले. लेकिन सिर्फ एक उपचुनाव में मिली हार के बाद किसी पार्टी के लिए शोक संदेश लिखना, उस पार्टी के साथ नाइंसाफी होगी.
पंजाब की जीत के लिए खेला था बड़ा दांव
बीजेपी के लिए भले ही ये जीत बड़ी हो, लेकिन AAP से ज्यादा ये हार कांग्रेस के लिए भी सबक है. भगोड़े नेता के साथ दिल्ली वाले कैसा बर्ताव करते हैं ये अरविंद केजरीवाल से ज्यादा बेहतर कोई नहीं जानता. 2013 में दिल्ली की सत्ता छोड़ने और 2014 में वाराणसी के लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन पर भी भगोड़े का ठप्पा लगा था, जिसे हटाने के लिए 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव उन्होंने घर-घर जाकर कितनी मेहनत की थी, ये वो और उनकी पार्टी बखूबी जानते हैं.
राजनीति के इस कड़वे सबक को कम से कम अरविंद केजरीवाल तो कभी नहीं भूलेंगे. लेकिन ये सब जानते हुए भी पार्टी ने पंजाब चुनाव में एक दांव खेला. आम आदमी पार्टी ने राजौरी गार्डन के पूर्व विधायक जरनैल सिंह को जब दिल्ली छोड़कर पंजाब जाने को कहा था, तभी से उन्हें मालूम था कि उपचुनाव में ये सीट उनके हाथ से निकल जाएगी.
लेकिन तब अरविंद केजरीवाल को एक सीट की हार नहीं बल्कि पंजाब में बहुमत और सरकार बनती दिख रही थी. इसलिए राजौरी गार्डन के नतीजे को दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने बगैर ईवीएम को कोसे स्वीकार भी कर लिया.
बीजेपी के लिए इस जीत के मायने
इस एक जीत ने दिल्ली बीजेपी के लिए संजीवनी बूटी का काम किया है. विधानसभा में अब 3 के बजाए बीजेपी के चार विधायक होंगे. हालांकि 66 विधायकों के साथ आम आदमी पार्टी का दबदबा विधानसभा में अब भी कायम रहेगा. लेकिन हमें ये भी याद रखना होगा कि 66वें देवेंदर सेहरावत और पंकज पुष्कर जैसे बागी विधायक भी हैं. इसका मतलब है कि दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के सुर अब पहले से ज्यादा मुखर तरीके से सुनाई देंगे.
इस एक जीत ने दिल्ली प्रदेश बीजेपी के नए अध्यक्ष मनोज तिवारी का रुतबा भी बढ़ा दिया है. पार्टी के भीतर ही जो लोग इनकी राजनीतिक काबिलियत पर सवाल खड़े कर रहे थे, उनको शांत कराने के लिए ये जीत काफी है. साथ ही बीजेपी के वोट प्रतिशत में हुआ इजाफा ये संकेत भी दे रहा है कि बीजेपी को लेकर दिल्ली वालों की नाराजगी कम हुई है. या दूसरे शब्दों में कहें तो दिल्ली की जनता आम आदमी पार्टी से दूर हुई है. एमसीडी चुनाव से पहले आए इन नतीजों को बीजेपी एमसीडी चुनाव में दोहराना चाहेगी और उम्मीद करेगी कि दिल्ली की जनता उन्हें एक और मौका दे.
दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस के लिए नतीजे के मायने
राजौरी गार्डन में मिली हार के बाद असल में अगर किसी को चिंता और विचार करने की जरूरत है तो वो है कांग्रेस. राजौरी गार्डन विधानसभा सीट में चार वार्ड आते हैं. वार्ड नंबर 105, 106, 107 और 108. इनमें से 105 पर बीजेपी के सुभाष आर्या निगम पार्षद हैं जबकि बाकी के तीन वार्ड से कांग्रेस के पार्षद जीते थे. लेकिन विधानसभा उपचुनाव में इन चारों वार्डों के वोटों को अलग-अलग करके देखें तो हमें मालूम चलेगा कि चारों वार्डों में कांग्रेस को बीजेपी से कम वोट मिले हैं.
हैरानी की बात ये कि वार्ड नम्बर 108 से कांग्रेस की उम्मीदवार मीनाक्षी चंदीला को बीजेपी उम्मीदवार से कम वोट मिले, वो भी तब जबकि मीनाक्षी इसी वार्ड से मौजूदा निगम पार्षद हैं. यही नहीं वार्ड नम्बर 107 से उनके पति निगम पार्षद हैं लेकिन यहां भी कांग्रेस को बीजेपी से कम वोट मिले हैं. ऐसे में राजौरी गार्डन में कांग्रेस की हार से सबसे तगड़ा झटका तो कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन को लगना चाहिए, क्योंकि कई साल से राजौरी गार्डन में रह रहे हैं. इसके बावजूद कांग्रेस अपनी जड़ें इस इलाके में नहीं जमा पाई.
कुल मिलाकर देखें तो कांग्रेस की इस हार एमसीडी चुनाव के पहले पार्टी की तैयारियों की पोल खोलकर रख दी है. हालांकि नतीजे देखने के बाद कांग्रेस इस बात से संतोष कर सकती है कि उसका वोट प्रतिशत 2015 में 12 प्रतिशत से बढ़कर 33 प्रतिशत तक पहुंच गया लेकिन कांग्रेस की असल अग्निपरीक्षा एमसीडी चुनाव में होगी.
इस हार के आम आदमी पार्टी के लिए मायने
राजौरी गार्डन उपचुनाव को एमसीडी चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा था. इस नतीजे को पानी, बिजली और हाउस टैक्स के बिल माफ करने के वादों से जोड़ते हुए आम आदमी पार्टी की करारी हार बताया जा रहा है. लेकिन तमाम दावों के उलट आम आदमी पार्टी को अपनी इस हार का अंदाजा पहले से ही था. यही वजह थी कि पार्टी ने पुराने विधायक जरनैल सिंह को दोबारा टिकट नहीं देकर लोगों के गुस्से को कम करने की कोशिश भी की. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
हालांकि एमसीडी चुनाव से ठीक पहले आए इन नतीजों ने आम आदमी पार्टी को चौकन्ना जरूर कर दिया है. ऐसे में अपना पहला एमसीडी चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी इसे जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देगी. लेकिन एमसीडी चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी की करारी हार ने इतना तो साफ कर दिया है कि दिल्ली वालों के दिल में AAP के लिए अब वो बात नहीं बची है.
(लेखिका सरोज सिंह @ImSarojSingh स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं. द क्विंट का उनके विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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