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क्रिकेट का ओवरडोज: पैसा ज्यादा BCCI को या खिलाड़ियों को?

बीसीसीआई पैसा बनाती है, खिलाड़ी नहीं. 

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बीसीसीआई उस सूरज के समान है जिसके इर्द-गिर्द क्रिकेट की पूरी दुनिया चक्कर लगाती है. जब देश की इकोनॉमी करीब 7 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है और जहां क्रिकेट के फैन्स की भारी तादाद हो तो भारतीय क्रिकेट का भारी भरकम कमाई करना लाजिमी है. इस दौलत के चलते उसके रसूख और कद में भारी इजाफा हुआ है.

फिर भी जब ‘सब कुछ अच्छा’ वाले माहौल में कुछ सवाल उठते हैं, जो हैरान करते हैं. क्या भारतीय क्रिकेटरों को इस पैसे में से उनकी मेहनत के मुताबिक हिस्सा मिल रहा है? क्या उन्हे पर्याप्त पैसा मिल रहा है? क्या उनके मेहनताने की दूसरे देशों के उनके साथियों के साथ तुलना की जा सकती है?

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प्रसंग
भारत में 1 हजार फर्स्ट क्लास क्रिकेट खिलाड़ी हैं, जो हर साल बीसीसीआई के अलग-अलग फॉरमेट में 28 टीमों की नुमाइंदगी करते हैं. लेकिन इनमें बेहद कम हैं जिनके साथ बीसीसीआई सीधे तौर अनुबंध करती है और सालाना ग्रेडेड रिटेनरशिप राशि देती है. कुछेक की जॉब सिक्योरिटी को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर खिलाड़ी नौकरी के लिए सरकार और कॉरपोरेट्स की दया पर छोड़ दिए जाते हैं. 

नतीजतन जमीनी सच्चाई ये है कि फर्स्ट क्लास खिलाड़ी बेरोजगारी, नौकरी की असुरक्षा और आर्थिक तंगी में जिंदगी गुजारने को मजबूर होते हैं. ये खिलाड़ी लगभग पूरी तरह बीसीसीआई की मैच फीस से होने वाली आमदनी पर निर्भर रहते हैं और एक-तरह से बीसीसीआई उनकी नियोक्ता या मालिक बन जाती है.

ऊपर से आमदनी की कोई निश्चितता नहीं है. उन्हे तभी पैसा मिलता है जब सिलेक्शन हो जाता है. इससे उनकी हैसियत दिहाड़ी मजदूर में बदल गई है मतलब जब काम करोगे तभी पैसे मिलेंगे. यहां तक घरेलू खिलाड़ियों के फीस सिस्टम में भारी नाइंसाफी है.

बीसीसीआई पैसा बनाती है, खिलाड़ी नहीं

बीसीसीआई खिलाड़ियों को 2004 में शुरू किए गए ग्रोथ रेवेन्यू शेयर भुगतान करती है. ये सिस्टम बीसीसीआई प्रेसिडेंट जगमोहन डालमिया ने अनिल कुंबले और राहुल द्राविड़ जैसे दिग्गज खिलाड़ियों के साथ लंबे विमर्श के बाद शुरू किया था.

बीसीसीआई पैसा बनाती है, खिलाड़ी नहीं. 

26 फीसदी की सीमा तय करने की कोई खास वजह नहीं थी सिवाय इसके कि ऑस्ट्रेलिया अपने खिलाड़ियों को सालाना आमदनी का 25 फीसदी देता है और डालमिया उनसे 1 फीसदी ज्यादा देना चाहते थे.

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जीआरएस फॉर्मूले की बुनियादी खराबी

1. बीसीसीआई जो 26 फीसदी आमदनी खिलाड़ियों को बांटती है इसमें मीडिया राइट्स से होने वाली आमदनी शामिल नहीं है. बीसीसीआई की ये आमदनी करीब 70 फीसदी बैठती है. (इसी साल ये आंकड़ा 280 करोड़ रुपए था). इसमें आईपीएल रेवेन्यू भी शामिल नहीं है. (ये करीब 366 करोड़ रुपए सरप्लस है). इन दोनों तरह की आमदनी को निकालकर जो बचता है उसमें से 26 फीसदी खिलाड़ियों को दी जाने वाली रकम बेहद मामूली होती है. जबकि आमदनी का बड़ा हिस्सा बीसीसीआई खुद अपने पास रखती है.

2. खिलाड़ियों का 26 फीसदी हिस्सा भी केवल नामभर को है क्योंकि सालाना कमाई में लगातर कमी आ रही है. बीसीसीआई को हर साल उसकी भरपाई के लिए बजट में टॉपअप करना पड़ता है ताकि पिछले सीजन के बराबर खिलाड़ियों का हिस्सा कायम रखा जा सके.(इसी साल बीसीसीआई को अपने बजट में 46 करोड़ अलग से खिलाड़ियों के लिए रखने पड़े)

3. अनिश्चितता और पेमेंट में देरी: मौजूदा व्यवस्था में घरेलू फर्स्ट क्लास क्रिकेट खिलाड़ी को रणजी मैच में 10 हजार प्रतिदिन के हिसाब से पैसा दिया जाता है. ये भी मैच फीस का पार्ट पेमेंट होता है, इस वादे के साथ कि बीसीसीआई के सालाना बजट की बाकी फीस बाद में चुकाई जाएगी. क्योंकि जीआरएस का पक्का हिसाब-किताब सीजन खत्म होने पर ही चलता है. ऐसे में मैच पैमेंट को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है.

जीआरएस फॉर्मूला – बड़ी नाइंसाफी

बीसीसीआई की आमदनी खिलाड़ियों में बांटने का ये फॉर्मूला बीसीसीआई के कॉन्ट्रैक्ट वाले अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के पक्ष में ज्यादा झुका हुआ है. इसमें 50 फीसदी तो इन खिलाड़ियों में बंट जाता है. जबकि केवल 30 फीसदी 800-1000 घरेलू सीनियर खिलाड़ियों के हिस्से आता है.

बीसीसीआई पैसा बनाती है, खिलाड़ी नहीं. 

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर - आगे रास्ता क्या है

बीसीसीआई से सीधे सालाना कॉन्ट्रैक्ट में बंधे खिलाड़ियों को मिलने वाले पैसे को लेकर यथार्थवादी नजरिए से सोचना होगा. फिलहाल इन खिलाड़ियों को 3 कैटेगरी में बांटा गया है. ग्रेड ए खिलाड़ियों को सालाना 2 करोड़, ग्रेड बी खिलाड़ियों को सालाना 1 करोड़ और ग्रेड सी खिलाड़ियों को सालाना 50 लाख रुपए मिलते हैं. इसके साथ खिलाड़ियों को टेस्ट मैच खेलने के लिए 15 लाख रुपए बतौर मैच फीस भी मिलती है.

खिलाड़ियों की ग्रेडिंग का कोई साफ और स्पष्ट फॉर्मूला नहीं है. ग्रेडिंग बोर्ड का प्रेसिडेंट और सेक्रेटरी चयन समिति के चेयरमैन से सलाह लेकर करते हैं.

सालाना कॉन्ट्रैक्ट की रिटेनरशिप फीस 2 करोड़ या 1 करोड़ क्यों रखी जाएगी, इसे लेकर भी कोई साफगोई नहीं है. ये सब मनमर्जी और सनक पर चलता है. जबकि दूसरे देशों में खिलाड़ियों के भुगतान का कहीं ज्यादा व्यवस्थित और तार्किक सिस्टम है. वहां खिलाड़ियों के प्रदर्शन को सभी 3 फॉर्मेट और टीम में उनके योगदान के लिए मिले प्वाइंट के आधार पर आंका जाता है. इंग्लैंड ने अपने खिलाड़ियों के लिए इस साल से टेस्ट और टी-20 के लिए अलग-अलग अनुबंध (रेड और व्हाइट बॉल कॉन्ट्रैक्ट) की व्यवस्था शुरू की है. भारत के मुकाबले इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेटरों को कहीं ज्यादा पैसा मिलता है.

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विदेशी खिलाड़ियों की सैलरी

  • ऑस्ट्रेलिया: बेस कॉन्ट्रैक्ट 2,70,000 डॉलर (टॉप 20 ग्रेडेड, वार्नर और स्मिथ की आमदनी 2 मिलियन डॉलर के आसपास होती है) कप्तान को 25 फीसदी बोनस भी मिलता है
  • मैच फीस: टेस्ट 12 हजार डॉलर, वनडे-7 हजार डॉलर, टी-20- 5000 डॉलर
  • इंग्लैंड: बेस कॉन्ट्रैक्ट 70000 पाउंड, कप्तान का बोनस 25 फीसदी
  • मैच फीस: टेस्ट मैच – 12 हजार पाउंड, वनडे – 5 हजार पाउंड, टी-20 3.500 पाउंड
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घरेलू खिलाड़ियों को कैसे मिले फायदा

घरेलू खिलाड़ियों को उलझाव भरे जीआरएस फॉर्मूले से फायदा कुछ नहीं है . इसे तत्काल बंद करने की जरूरत है. इसकी जगह ये दो विकल्प आजमाए जा सकते हैं:

1. रणजी खिलाड़ियों के बीसीसीआई के साथ सालाना सीधा अनुबंध

इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर स्टेट एसोसिएशंस खिलाड़ियों से अनुबंध करें. एक सुझाव आया कि स्टेट एसोसिएशन 7.5लाख,12.5 लाख और 20 लाख रुपए के 3 ग्रेड बनाएं जिसमें 5 खिलाड़ी टॉप कैटेगरी के हो और बाकी 10 खिलाड़ी निचली ग्रेड में हों. ये 3 करोड़ सालाना खर्च की सीमा में होगा. जिससे उन पर बोझ भी नहीं पड़ेगा.

2. मैच फीस पर फिर से विचार हो और उसमें इजाफा हो

एक सीधा सा विकल्प है प्रथम श्रेणी मैचों के लिए आकर्षक मैच फीस रणजी मैच की फीस 2 लाख तय कर दी जाए तो एक अच्छे और कामयाब खिलाड़ी को करीब 20 लाख रुपए सालाना आय हो जाएगी. बीसीसीआई मैच रैफरी, चयनकर्ताओं, अंपायरों,वीडियो एनालिस्ट और क्यूरेटरों की सैलरी और भत्ते तय कर सकती है तो खिलाड़ियों के मामले में ऐसा क्यों नहीं हो सकता?

नए विकल्पों का फायदा

बीसीसीआई को फायदा:

1. जीआरएस फॉर्मूला बेकार हो चुका है. बीसीसीआई और खिलाड़ियों के बीच पारदर्शी और साफ-सुथरी वित्तीय व्यवस्था होनी चाहिए ताकि मनमाने तौर-तरीकों पर रोक लग सके.

2. बीसीसीआई को अपनी सालाना खर्च का अनुमान लगाने में आसानी होगी और इससे वो खिलाड़ियों को दी जाने वाली राशि का अलग से प्रावधान रख सकेगी.

3. 900-1000 घरेलू फर्स्ट क्लास खिलाड़ियों को फाइनेंशियल फायदा पहुंचाना एक तरह से खिलाड़ियों के कल्याण का काम होगा. इससे बीसीसीआई की प्रतिष्ठा में इजाफा होगा और उसे एक प्रगतिशील संस्थान के तौर पर देखा जाएगा.

खिलाड़ियों को फायदा:

1. आर्थिक सुरक्षा बहुत बड़ी चीज होती है. खिलाड़ियों को अपनी आमदनी के बारे में पता होगा और वो बेफिक्र होकर खेल पर फोकस कर सकेंगे.

2. वक्त पर पैसा मिलने लगेगा, तय रकम तय वक्त पर मिलने लगेगी. लेट-लतीफी पर रोक लगेगी.

3. अच्छे पारितोषिक के चलते घरेलू रणजी खिलाड़ियों में अपने प्रति सम्मान की भावना पैदा होगी और उन्हे महसूस होगा कि उनके योगदान को पूरी अहमियत दी जा रही है.

आईपीएल से घरेलू खिलाड़ियों की कमाई का सच

आम धारणा के विपरीत , आईपीएल से घरेलू खिलाड़ियों की आर्थिक सेहत पर कोई खास असर नहीं डाला है. हकीकत ये है कि 135 भारतीय खिलाड़ी आईपीएल में अनुबंधित हैं. इनमें से 50 अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं जो पहले से ही बीसीसीआई से सीधे अनुबंध के चलते अच्छा-खासा पैसा लेते हैं. क्रिकेट के बाहर भी ये स्टार खिलाड़ी अच्छी कमाई कर लेते हैं. बाकी 85 घरेलू क्रिकेटर हैं जिनमें 48 आईपीएल टीमों के बेस प्राइस 10 लाख रुपए पर अनुबंधित हैं. (इनमें से कुछ ज्यादा पैसा कमा लेते हैं) केवल 14 खिलाड़ी ऐसे हैं जिनकी कमाई 10-30 लाख रुपए के बीच है. इसका मतलब साफ है कि 30 लाख से ज्यादा कमाने वाले खिलाड़ियों की संख्या बहुत थोड़ी है. शायद करीब 25 खिलाड़ी ही ऐसे होंगे.

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सार

कुल मिलाकर, आईपीएल से घरेलू खिलाड़ियों ने बीसीसीआई का खजाना तो खूब भर दिया लेकिन इसमें से उन्हें जायज हक नहीं मिल रहा. आईपीएल का बिजनेस मॉडल सीधा और जानदार रहा है. इसका वित्तीय ढांचा ऐसा है जिसमें लीग की प्रोमोटर और मालिक बीसीसीआई है जिसे टीम मालिकों से फ्रैचाइजी फीस, टेलिविजन राइट्स और स्पॉन्सशिप से भारी कमाई हो रही है जबकि पूरा बिजनेस रिस्क टीम मालिकों पर डाल दिया गया है.

(अमृत माथुर, वरिष्ठ पत्रकार हैं, बीसीसीआई के पूर्व जनरल मैनेजर और भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर रह चुके हैं . उनसे @AmritMathur1 पर संपर्क किया जा सकता है)

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