(केंद्र में मोदी सरकार 3 साल पूरे करने जा रही है. इस मौके पर क्विंट ये डिबेट शुरू कर रहा है कि क्या एनडीए सरकार वे वादे पूरे कर रही है, जो उसने 2014 में किए थे. इस आर्टिकल में केवल एक पक्ष पेश किया गया है. इसका दूसरा पक्ष आप AAP नेता आशुतोष के आर्टिकल में पढ़ सकते हैं.)
कहते हैं कि एक अच्छा मैनेजर वह होता है, जो चीजों को अलग ढंग से करता है, न कि कोई अलग चीज करता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले तीन साल से यही कर रहे हैं.
संसद में कई बार विपक्ष यह दावा कर चुका है कि मोदी सरकार की कई स्कीम उसके कार्यकाल में शुरू हुई थीं. यह दावा कई मामलों में सही है. प्रधानमंत्री खुद कुछ मौकों पर यह बात मान चुके हैं. लेकिन यह मायने नहीं रखता कि किसने स्कीम शुरू की, सवाल यह है कि किसने उसे असरदार तरीके से लागू किया.
मोदी सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर में जो सुधार किए हैं, उन पर नजर डालने से यह बात साफ हो जाती है कि उनमें सोच-समझकर ‘वैल्यू एडिशन’ किया गया है, जिससे उसके बेहतर नतीजे मिलें.
'मनरेगा' में शानदार प्रदर्शन
मिसाल के लिए मनरेगा को लीजिए. 2015-16 के बाद से कई मानकों पर मनरेगा का प्रदर्शन बढ़िया रहा है. इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में पर्सन डे जेनरेशन 45.88 करोड़ के साथ सबसे अधिक रहा. वहीं, तीसरी तिमाही में यह 46.10 करोड़ रहा. यह पिछले पांच साल में स्कीम का सबसे बेहतर परफॉर्मेंस है.
अब इसे सिंचाई और ‘वॉटर टेबल’ बढ़ाने वाली योजनाओं से जोड़ा गया है. केंद्र सरकार ने अब इसके तहत हर साल 5 लाख तालाब और कुएं और खाद बनाने के लिए 10 लाख खड्ढे बनाने का लक्ष्य रखा है.
मनरेगा के पेमेंट सिस्टम को काफी बेहतर बनाया गया है. मनरेगा में भ्रष्टाचार की शिकायतें भी कम हुई हैं. यूपीए सरकार भी इस योजना के तहत एसेट क्रिएशन पर जोर दे रही थी, लेकिन तब स्कीम की निगरानी सही ढंग से नहीं हो रही थी. इस स्कीम के तहत अब हर साल 30 लाख निर्माण हो रहे हैं, जिनकी प्रोग्रेस और निगरानी इसरो की मदद से जियो टैगिंग के जरिये हो रही है.
बैंकिंग सेवाओं तक हर किसी की पहुंच
वित्तीय समावेशी योजना यानी ज्यादा लोगों तक बैंकिंग सेवाओं को पहुंचाने की योजना के साथ भी ऐसा ही हुआ है. यह काम यूपीए सरकार की भी प्राथमिकता में काफी ऊपर था. आमतौर पर यूपीए के राज में यह ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में नई बैंक शाखाएं खोलने तक सीमित था. मोदी सरकार ने इसके तहत नए बैंक खाते खोलने पर जोर दिया. इससे 2014 से 2016 के बीच नए बैंक खातों की संख्या तेजी से बढ़ी.
एक अनुमान के मुताबिक, 2017 के मध्य तक करीब 99 पर्सेंट परिवारों का किसी न किसी बैंक में खाता था. इससे सरकार पारदर्शी तरीके से सब्सिडी और दूसरी कल्याणकारी योजनाओं का फायदा जरूरतमंद लोगों तक पहुंचा पा रही है. पैसा सीधे उनके बैंक खातों में डाला जा रहा है.
विकास को मिला 'आधार'
आधार के साथ भी ऐसा ही है. मोदी सरकार के कार्यकाल में आधार के तहत एनरोल लोगों की संख्या दोगुनी हो गई है. इससे सरकार को 50,000 करोड़ रुपये की बचत हुई है, जो इस योजना की लागत का पांच गुना है. हालांकि, एक वर्ग आधार को लेकर लोगों में डर पैदा करने की कोशिश कर रहा है, जो हैरान करता है. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने हाल में लोकसभा में कहा था कि पैन कार्ड के लिए आधार को अनिवार्य बनाने से दो पैन कार्ड रखने वाले कई मामलों का पता चला है.
आधार देश के गवर्नेंस के इतिहास का नया चैप्टर लिखने जा रहा है. मोदी सरकार इसके अलावा भी गवर्नेंस के कई नए चैप्टर लिख चुकी है. मिसाल के लिए, इस सरकार ने बजट को फरवरी के पहले हफ्ते में पेश करना शुरू किया है.
रेलवे और योजना आयोग पर ऐतिहासिक फैसला
रेलवे बजट अब अलग से पेश नहीं किया जाता. इससे रेलवे को अब सरकार को ग्रॉस बजटरी सपोर्ट के बदले सालाना डिविडेंड नहीं देना पड़ रहा है. सरकारी अधिकारियों ने बताया कि बजट मिलाए जाने से फंड की कमी से जूझ रहे रेलवे को सालाना 10,000 करोड़ रुपये की बचत होगी.
मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद योजना आयोग को खत्म करने का फैसला किया था और उसकी जगह नीति आयोग ने ली. बजट पहले पेश किए जाने का फैसला एक तरह से उसी की कड़ी थी. योजना आयोग के खत्म होने के साथ प्लांड और नॉन-प्लांड एक्सपेंडिचर खत्म हो गया और इसकी जगह अब रेवेन्यू और कैपिटल एक्सपेंडिचर की जानकारी दी जाती है और इन्हें परफॉर्मेंस से जोड़ा गया है. यह तार्किक और प्रैक्टिकल तो है ही, इसे समझना भी आसान है.
नई फसल बीमा योजना भी शानदार
अलग अंदाज से काम करने वाली मोदी सरकार की लिस्ट काफी लंबी है. फसल बीमा योजना पहले भी थी, लेकिन क्लेम हासिल करने का प्रोसेस पेचीदा था.
मोदी सरकार ने नई व्यापक फसल बीमा योजना पेश की, जिससे यह मोटर या बिल्डिंग इंश्योरेंस जैसे स्थापित प्रॉडक्ट्स की बराबरी पर आ गई है. नई बीमा योजना में किसान को खेत में खड़ी फसल के पूरे लाइफ साइकिल के दौरान कवर मिलता है.
यह भी सही है कि नीम कोटेड यूरिया मोदी सरकार का इनोवेशन नहीं है, लेकिन सब्सिडाइज्ड यूरिया के सप्लायर्स और कुछ इंडस्ट्री वालों की मिलीभगत खत्म करने के लिए मोदी सरकार ने 100 पर्सेंट नीम कोटिंग यूरिया को अपनाने का फैसला किया. इससे नकली यूरिया का स्कोप खत्म हो गया. सरकार की स्पष्ट सोच और नेक इरादे का यह एक और सबूत है.
सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन कम सरकारें ही होती हैं, जो उन्हीं काम को करके छाप छोड़ जाती हैं. मोदी सरकार ने तीन साल में गुड गवर्नेंस का लेवल ऊंचा करके यह काम कर दिखाया है.
(विनय सहस्रबुद्धे सांसद और भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष हैं. ट्वटिर पर उनसे @vinay1011 पर जुड़ा जा सकता है. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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