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AAP को महाराष्ट्र-हरियाणा में निराशा, पर दिल्ली के लिए उम्मीद जगी

हरियाणा-महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों से क्या सीख ले सकती है AAP

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आम आदमी पार्टी (AAP) भले ही हरियाणा-महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों और पंजाब उपचुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई, लेकिन फिर भी वो इन चुनावों के नतीजों से पूरी तरह उदास नहीं होगी. दरअसल बीजेपी के खिलाफ जनाधार का खिसकना, खासकर हरियाणा में, AAP के लिए दिल्ली में उत्साह बढ़ाने वाला संकेत है.

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ये नतीजे AAP के उस भरोसे को मजबूत करेंगे कि वो अभी भी दिल्ली में जीत हासिल कर सकती है, अगर वो स्थानीय मुद्दों पर फोकस करते हुए चुनाव प्रचार करे और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रदर्शन की मार्केटिंग करे.

चलिए उन पहलुओं की बात करते हैं, जो बताते हैं कि आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव के संदर्भ में हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजे क्यों अहम हैं:

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BJP के वोट शेयर में गिरावट

हरियाणा में बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में 58.2 फीसदी वोट मिले थे. जबकि हालिया विधानसभा चुनाव में उसे 36.5 फीसदी वोट मिले हैं. इस तरह हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर लोकसभा चुनाव की तुलना में 21.7 फीसदी गिरा है.

कुछ इसी तरह दिल्ली में 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 14 फीसदी गिरा था.

हालांकि इसका ये मतलब जरूरी नहीं है कि कुछ ही महीनों में बीजेपी की लोकप्रियता कम हो गई. अगर पूरी तरह ऐसा ही होता, तो शायद दिल्ली में 2015 के विधानसभा चुनावों की तुलना में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 26 फीसदी नहीं बढ़ता.

दरअसल वोट शेयर में इतना बड़ा उतार-चढ़ाव दिखाता है कि वोटरों के एक हिस्से ने लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव पर आधारित अलग-अलग पहलुओं के हिसाब से वोटिंग की.

लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले समर्थन (खासकर पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद) का यह मतलब नहीं है कि राज्य स्तर पर भी ऐसा हो. असल में हरियाणा के हालिया नतीजों और कुछ हद तक महाराष्ट्र के नतीजों ने भी यह दिखाया है कि वोटरों ने उन पहलुओं को बड़े स्तर पर दरकिनार कर कृषि संकट, पानी की सप्लाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर वोट किया है.

इससे AAP को यह उम्मीद मिल सकती है कि दिल्ली के वोटर दिल्ली में किए गए काम के आधार पर ही पार्टी को चुनेंगे.

कांग्रेस का उभार या विपक्ष का उभार?

हरियाणा के नतीजे दिखाते हैं कि लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर गिरा है, लेकिन इसका कांग्रेस को बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिला क्योंकि कांग्रेस का वोट शेयर भी इन दोनों चुनावों में लगभग बराबर ही रहा है. असल में ज्यादातर फायदा दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP), छोटी पार्टियों और निर्दलीयों को मिला है.

हरियाणा में लोकसभा चुनाव में JJP का वोट शेयर 4.9 फीसदी था, जबकि हालिया विधानसभा चुनाव में यह बढ़कर करीब 15 फीसदी हो गया. इसी तरह छोटी पार्टियों और निर्दलीयों का वोट शेयर भी 6.1 फीसदी से बढ़कर 17.4 फीसदी हुआ है.

ऐसे में साफ है कि हरियाणा में बीजेपी का जो जनाधार खिसका वो पूरी तरह कांग्रेस की तरफ नहीं गया. इसके बजाए लगता ये है कि वोटरों के एक खास हिस्से (जाट, मुस्लिम और कुछ दलित) ने ज्यादातर उस उम्मीदवार को वोट किया, जो BJP को हराने की स्थिति में दिख रहा था.

इससे इस बात का पता लगता है कि कांग्रेस ने उन सीटों पर कमजोर प्रदर्शन क्यों किया, जहां मुकाबला BJP और तीसरी पार्टी या उम्मीदवार के बीच था. कांग्रेस को ऐसी ही कुछ सीटों पर 10 फीसदी से भी कम वोट मिले. इन सीटों में बादशाहपुर (4.8 फीसदी), बरवाला (7.1 फीसदी), दादरी (6.3), नरवाना (9.2 फीसदी), नारनौंद (5.4 फीसदी), सिरसा (7.1 फीसदी), टोहना (9.4 फीसदी), उचाना कलां (3.1 फीसदी) और उकलाना (8.3 फीसदी) शामिल हैं. इनमें से कई सीटें जाटों के प्रभाव वाली भी हैं.

दिल्ली में भी कई सीटों पर मुस्लिम वोटर ऐसे ही सुनियोजित तरीके से वोटिंग कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने 2013 के विधानसभा चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए किया और 2014 के लोकसभा चुनाव, 2015 के विधानसभा चुनाव में AAP के लिए किया. इन सीटों में मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला, सीलमपुर, मुस्तफाबाद और बाबरपुर जैसी सीटें शामिल हैं.

ऐसे में हरियाणा की तरह ही दिल्ली में भी ऐसा हो सकता है कि जिन वोटरों ने BJP के खिलाफ वोट करने का फैसला किया है, वे उस सीट पर मजबूत गैर-BJP उम्मीदवार के लिए एकजुट होकर वोट करें.

शहरी बनाम ग्रामीण सीट

महाराष्ट्र और हरियाणा में शहरी सीटों की तुलना में ग्रामीण सीटों पर BJP का जनाधार ज्यादा खिसका है. असल में BJP ने ज्यादातर शहरी इलाकों में अपना प्रभाव बरकरार रखा है. महाराष्ट्र में BJP-शिवसेना गठबंधन ने 80 फीसदी से ज्यादा शहरी सीटों पर जीत हासिल की है. मुंबई में ही, इस गठबंधन ने करीब 90 फीसदी सीटें जीती हैं.

हरियाणा में BJP ने करीब दो-तिहाई शहरी सीटों पर जीत हासिल की है, लेकिन उसे मुश्किल से एक तिहाई ग्रामीण सीटों पर जीत मिली है. दरअसल शहरी वोटर राष्ट्रवाद और पीएम मोदी की लोकप्रियता जैसे पहलुओं को ग्रामीण वोटरों की तुलना में ज्यादा अहमियत देते दिखे.

ऐसे में दिल्ली में AAP और कांग्रेस के सामने मुख्य तौर पर शहरी वोटर को BJP के खिलाफ लामबंद करने की बड़ी चुनौती होगी. हरियाणा और महाराष्ट्र में BJP को सत्ता विरोधी रुझान ने भी नुकसान पहुंचाया, जबकि दिल्ली में AAP की सरकार है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए AAP अगर BJP को हराना चाहती है तो उसे अपनी सरकार के समर्थन में सकारात्मक वोटों को एकजुट करना होगा.

BJP या कांग्रेस केंद्र में, AAP दिल्ली में?

कई एग्जिट पोल्स के मुताबिक, हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों में पीएम मोदी की लोकप्रियता बरकरार दिखी थी, हालांकि फिर भी इन दोनों राज्यों में लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर गिर गया. बात दिल्ली की करें तो उसका भी इतिहास लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग आधार पर वोटिंग का रहा है.

दिल्ली के वोटर कई चुनावों में पार्टी विशेष के लिए अपने झुकाव के बजाए मजबूत नेतृत्व के लिए वोट करते दिखे हैं. उदाहरण के लिए साल 1998 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली ने शीला दीक्षित के नेतृत्व के लिए कांग्रेस का समर्थन किया था, लेकिन एक साल बाद ही लोकसभा चुनाव में दिल्ली ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व के लिए BJP को 7 में से 7 सीटें दे दीं.

इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां दिल्ली ने मोदी लहर के बीच BJP को सभी 7 सीट पर जिताया, वहीं मुश्किल से 8 महीने बाद विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व के लिए AAP को 70 में से 67 सीटों पर जिताया.

फिलहाल दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ही सीएम पद का चेहरा हैं क्योंकि ना तो BJP ने और ना ही कांग्रेस ने अभी किसी को सीएम पद के चेहरे के तौर पर पेश किया है. इससे लोकसभा चुनाव में BJP और कांग्रेस के वोटर रहे लोगों के AAP की तरफ खिसकने के लिए एक जगह बन जाती है.

इस साल लोकसभा चुनाव के बाद हुए लोकनीति-CSDS के एक सर्वे के मुताबिक, BJP और कांग्रेस के करीब 4 में से 1 वोटर ने कहा कि वो राज्य स्तर पर AAP को वोट करेगा.

दूसरी तरफ, केवल 7 फीसदी AAP वोटरों ने ही कहा कि वे राज्य स्तर पर BJP या कांग्रेस की तरफ जाएंगे.

ऐसे में अगर सर्वे के हिसाब से, BJP और कांग्रेस के एक-चौथाई वोटर AAP के पाले में आते हैं तो इससे AAP को विधानसभा चुनाव में करीब 20 फीसदी वोटों का फायदा मिल सकता है.

ये भी देखें: महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे बता रहे हैं ‘मराठा टाइगर’ जिंदा है

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