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वाराणसी: मणिकर्णिका से पंचगंगा घाट तक, 'स्मार्ट' काशी में जर्जर होते धरोहर|Photo

Varanasi Ghats Photos: काशी के घाट हुए जर्जर, चेतावनी के बाद भी नहीं चेता प्रशासन- 10 तस्वीरें

Published
भारत
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Varanasi Ghats Photos: बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी (Varanasi) को भले ही स्मार्ट सिटी (Smart City) का दर्जा मिल गया है, गंगा पार "टेंट सिटी" बसाने और "गंगा विलास क्रूज" चलाकर वैश्विक पटल पर काशी की धूम मची है, लेकिन वाराणसी में गंगा किनारे घाटों की दुर्दशा पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. इसके धंसने पर नदी विज्ञानियों ने पहले ही चिंता जताई थी कि प्रशासनिक अनदेखी बनारस पर भारी पड़ने वाली है. घाटों के धंसने को प्राकृतिक चेतावनी भी माना जा रहा है. काशी के प्रमुख घाट नीचे से खोखले होते जा रहे हैं. कई घाटों की सीढ़ियां व प्लेटफार्म भी धंसने लगे हैं. नदी विज्ञानियों की माने तो घाटों को लेकर प्रशासन जल्द नहीं चेता तो घाट के किनारे बसे धरोहरों से काशी को हाथ धोना पड़ सकता है. क्विंट हिंदी ने वाराणसी के दर्जन भर घाटों त्रिपुरा भैरवी घाट, गाय घाट, भदैनी घाट, मणिकर्णिका घाट, बुंदीकोटा घाट, पंचगंगा घाट, मानसरोवर घाट, चेत सिंह घाट, प्रभु घाट, जैन घाट की हालत देखी. जहां घाटों की दुर्दशा साफ दिखाई दे रही है.

नदी विज्ञानियों की चेतावनी "घाट लंबे समय से कटते चले आ रहे हैं उनका वैज्ञानिक तरीके से सूक्ष्मता से जांच कराना आवश्यक"

जाने-माने नदी विज्ञानी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महामना शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने चेताया कि समय रहते प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तो गंगा किनारे बने मंदिर, होटल और अन्य धरोहर जमींदोज होते देर नहीं लगेगी. कहा कि जिस समय गंगा में पानी कम हो जाता है, उस दौरान घाटों की जांच नहीं कराई गई. जो घाट लंबे समय से कटते चले आ रहे हैं उनका वैज्ञानिक तरीके से सूक्ष्मता से जांच कराना आवश्यक है. गंगा वाराणसी में अपने पूरब की ओर बालू को डिपॉजिट करती है, इससे उस इलाके में सेंड आईलैंड बन गया है. इसको किसी भी प्रकार से रोका नहीं जा सकता है. जब गंगा के दाहिनी ओर सेंड आईलैंड होगा तो सीधे-सीधे पानी का दबाव घाटों की तरफ हो जाएगा.

सुझाव देते हुए कहा की गर्मी के सीजन (मई और जून) में जब गंगा का जल तल नीचे चला जाता है और गंगा घाटों से दूर हो जाती हैं, उसी समय घाटों का सूक्ष्म निरीक्षण होना चाहिए और जिन घाटों के टूटने का डर है उनकी रिपेयरिंग भी कराई जानी चाहिए. अगर घाटों का पुनरीक्षण शुरू नहीं हुआ तो घाट के किनारे बने बड़े होटल, मंदिर ध्वस्त होने के कगार पर होंगे. सरकार को चाहिए कि गंगा के घाटों का सूक्ष्म निरीक्षण करने के लिए नदी विज्ञानी और इससे जुड़े लोगों की टीम बनाए. जो सभी घाटों का सूक्ष्मता से अध्ययन करें. जिन घाटों के नीचे की जमीन पोपल हो गईं हैं या जो टूटने और गिरने के कगार पर हैं, उसको सूचीबद्ध कर समय रहते बोल्डर डालकर या सीमेंट से मरम्मत कराकर आने वाली दुर्घटना से बचाव किया जा सकता है.

संकट मोचन फाउंडेशन के चेयरमैन और आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्रा ने कहा कि काशी में गंगा घाट दरक और धंस रहे हैं यह कोई नई बात नहीं है. यह प्राचीन काल से चला आ रहा है. घाटों के धंसने का कारण गंगा का वाराणसी में अर्ध चंद्राकार स्वरूप है. इस कारण पानी का फ्लो घाटों की तरफ अधिक रहता है.

उन्होंने बताया कि सन 1970-75 के दशक में पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उस दौरान मिर्जापुर जिले के चुनार से बड़े-बड़े बोल्डर मंगाकर अस्सी, हरिश्चंद्र समेत अन्य घाटों को सुरक्षित और संरक्षित किया गया था. उन्होंने बताया कि शहरों में जगह-जगह सीवरेज सिस्टम ब्लॉक हो गया है, इस कारण पानी अंदर-अंदर ही रिस रहा है. 50 साल पहले जो उपाय हुए थे, उसके बाद इसके लिए कोई काम नहीं किया गया. जिसकी मार अब काशी के घाट झेल रहे हैं. बता दें कि 31 दिसंबर को घाट धंसने के बाद मामले ने तुल पकड़ा था. दशाश्वमेध घाट और शीतला घाट के बीच बीते 31 दिसंबर की शाम गंगा आरती के बाद अचानक घाट धंस गया था. इससे अफरा तफरी मच गई थी.

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