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ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून के 2 साल पूरे, क्या रहीं खामियां?

पॉडकास्ट में हम बात कर रहे हैं उन पीड़ित महिलाओं से जिन्होंने इस कानून के तहत अपना केस दायर किया है.

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ट्रिपल तलाक या मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 दो साल पहले विपक्ष के विरोध के बीच पारित किया गया था. विपक्ष ने सरकार पर जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के आरोप लगाए थे. 30 जुलाई 2019 को संसद में इस कानून को पारित किया गया था.

तीन तलाक देना एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है, जिसका अर्थ है कि पुलिस को गिरफ्तारी के लिए वारंट की जरूरत नहीं होगी. पीड़िता को गुजारा भत्ता का अधिकार मिलेगा और मजिस्ट्रेट मामले का फैसला करेगा.

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यह कानून 'तलाक-ए-बिद्दत' नामक इस्लामी प्रथा का अपराधीकरण करता है, जिसके तहत एक पति अपनी पत्नी को तीन बार 'तलाक' शब्द बोलकर तुरंत तलाक दे सकता है.

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के दो साल पूरे होने के मौके पर हमने इस पॉडकास्ट के लिए उन दो महिलाओं से बात की, जिन्होंने इस कानून के तहत मामला दायर किया था.

पॉडकास्ट में सुनिए वकील और LCZF लॉ फर्म की मैनेजिंग पार्टनर, फिरदौस कुतुब वानी को, जो "राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली" में एमिकस क्यूरी भी रह चुकी हैं. हम भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड, वजीह शफीक से भी बात करेंगे, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के स्थायी वकील भी हैं.

उन्होंने रिट याचिका (सी) संख्या 118/2016 (शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य) (ट्रिपल तालक मामला) में शायरा बानो के पति रिजवान अहमद का भी प्रतिनिधित्व किया है.

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